सीरिया में जारी अमरीकी साम्राज्यवादी साजिशें

अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया में ‘हुकूमत परिवर्तन’ करने की साजिशों में अभी तक लगातार असफल हो रहे हैं। अभी हाल में सीरिया-तुर्की सीमा पर हुई झड़पों का इस्तेमाल करते हुए वे तुर्की द्वारा सीरिया पर सैनिक हमला करने को उकसा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा पाली-पोसी गई ‘स्वतंत्र सीरियाई सेना’ ने तुर्की की सीमा के भीतर मोर्टार के गोले दागे थे। इसके बाद तुर्की के प्रधानमंत्री ने सीरिया पर हमला करने की धमकी दे डाली है।
एक तरफ तुर्की की हुकूमत सीरिया पर हमला करने की धमकी दे रही है और दूसरी तरफ वह तुर्की की सीमा के भीतर सीरिया के विद्रोहियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और अमरीकी वित्तीय व हथियारों की मदद से सीरिया में विद्रोहियों की घुसपैठ करा रहे हैं। वे विद्रोही ‘स्वतंत्र सीरियाई सेना’ के नाम पर न सिर्फ अल असद हुकूमत के सैनिकों और उनके अड्डों पर हमला कर रहे हैं बल्कि नागरिकों का भी कत्लेआम कर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की हत्या कराने की साजिशें रच रहे हैं।
जुलाई महीने से अमरीकी साम्राज्यवादी पश्चिम एशिया में अपनी पिट्ठू सरकारों की मदद से सीरिया की हुकूमत को सैनिक ताकत से गिराने की कोशिश कर रहे हैं। 18 जुलाई को सीरिया की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के नेतृत्व की बम धमाके से हत्या कर दी गई। इसके बाद जार्डन, लेबनान, तुर्की और इराक से दसियों हजार भाड़े के सैनिक सीरिया की राजधानी में घुस आए। 26 सितम्बर को अल-कायदा के तथाकथित जिहादी सीरिया के रक्षामंत्रालय की इमारत में घुसने में तो सफल हो गए लेकिन मारे गए। एक दूसरी भाड़े के सैनिकों की टोली ने सीरिया के राष्ट्रीय टी.वी.स्टेशन पर कब्जा करने का प्रयास किया, लेकिन वह भी असफल रही। तीसरी टोली ने सरकार के मुख्यालय को निशाना बनाया और चैथी टोली ने हवाई अड्डे पर निशाना साधा। ये सभी असफल हुए।
इन दोनों - जुलाई और सितम्बर की - असफलताओं से अमरीकी साम्राज्यवादियों की बहुत ज्यादा किरकिरी हुई। इन दोनों अभियानों को नाटो ने तुर्की में स्थित अड्डे से संचालित किया था। अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया की सेना के कुछ भगोड़े जनरलों की मदद से असद हुकूमत को सैनिक ताकत से हटाना चाहते थे।
इन दो अभियानों की असफलताओं के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों की कुछ पिट्ठू सरकारों की हालत खराब हो रही है। यदि ये सैनिक हस्तक्षेप की साजिशें जारी रहती हैं तो इससे जार्डन की अर्थव्यवस्था चरमराने का खतरा पैदा होगा। लेबनान में अमरीकी साम्राज्यवादियों के सहयोगियों को पीछे हटना पड़ सकता है। खुद तुर्की के भीतर गृह युद्ध का खतरा बढ़ सकता है। तुर्की के भीतर कुर्द राष्ट्रीयता के लोग लम्बे समय से आत्म निर्णय के अधिकार के लिये संघर्ष कर रहे हैं। तुर्कों द्वारा सीरिया पर सैनिक हमला करने की धमकी के विरोध मंे तुर्की के भीतर दसियों हजार लोगों ने युद्ध-विरोधी प्रदर्शन किये हैं। यह इस बात का प्रयास है कि सभी देशों की तरह तुर्की की मजदूर-मेहनतकश जनता तुर्की सरकार द्वारा सीरिया के भीतर हस्तक्षेप करने और युद्ध छेड़ने की विरोधी है।
अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया पर हमला करने की योजना बहुत पहले यानी 2001 में बना चुके थे। 15 सितम्बर, 2001 को कैम्प डेविड में मीटिंग के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने सीरिया पर सैनिक हमला करने का निर्णय लिया था। पिछले दो वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस और चीन की हुकूमतों ने सीरिया पर नाटो की सैनिक कार्रवाई पर वीटो लगाकर अमरीकी साम्राज्यवादियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इसी के बाद, भाड़े के सैनिकों के इस्तेमाल करने की दूसरी योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अमल में लाना शुरू कर दिया। जब तथाकथित स्वतंत्र सीरियाई सेना भी सीरिया के हुकूमत के विरुद्ध एक भी बड़ी विजय हासिल करने में असफल हो गई तब अमरीकी साम्राज्यवादी कोफी अन्नान के नेतृत्व में जेनेवा समझौते पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर हो गए।
लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादियों की यह योजना भी कारगर इसलिये नहीं हो पाई क्योंकि इससे अमरीकी साम्राज्यवादियों की सीरिया की टकराहट से कोफी अन्नान को तत्काल इस्तीफा देना पड़ा था। बशर अल असद को सत्ता से हटाने के 18 जुलाई और 26 सितम्बर के भाड़े के टट्टुओं द्वारा किये गए बड़े सैनिक हमलों की असफलता के बाद अमरीकी साम्राज्यवादी फिर से जेनेवा समझौते को पुनर्जीवित करने और उसे लागू करने के लिये लश्कर ब्राहिमी की सेवाएं लेने को मजबूर हो गए हैं।
सीरिया में बशर अल असद की हुकूमत को गिराने में अभी तक मिली असफलता के बाद अमरीकी साम्राज्यवादी अभी भी साजिशें रच रहे हैं। लेकिन उनके रास्ते में रूस और चीन की हुकूमतें रोड़ा बनी हुई हैं। रूस और चीन के हित मांग करते हैं कि अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया में सैनिक हस्तक्षेप करके तख्ता पलट न करा सकें।
इस दौरान रूस की हुकूमत भी चुप नहीं बैठी थी। उसने सीरिया की हुकूमत में राष्ट्रीय सुलह-समझौते के मंत्रालय के गठन में मदद की तथा इसके साथ ही उसने दमिश्क में सीरिया की विरोधी पार्टियांे की मीटिंगों की सुरक्षा करने का इंतजाम करने में हुकूमत को तैयार किया। इसके साथ अमरीकी साम्राज्यवादियों और सीरिया के सैनिक मुख्यालय के बीच संपर्क करने का इंतजाम किया तथा शांति सेना की तैनाती की तैयारी की।
रूस की हुकूमत अमरीकी सेना को लगातार यह विश्वास दिलाती रही कि सीरिया के रसायनिक हथियार बशर अल-असद की हुकूमत के हाथ में सुरक्षित है और वे स्वतंत्र सीरियाई सेना के हाथों में नहीं जा सकते।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सामुहिक सुरक्षा संधि संगठन की परियोजनाओं की प्रक्रिया को तेज कर दिया। यह संगठन नाटो-विरोधी रक्षा गठबंधन है जिसमें आमेर्निया, बेलारुस, कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, ताजिकिस्तान और खुद रूस एकजुट हैं। सामुहिक सुरक्षा संधि संगठन के विदेशमंत्री सीरिया के मसले में साझी अवस्थिति रखते हैं। इस संगठन ने 50 हजार सैनिकों की तैनाती की योजना भी तैयार कर ली है। इसने संयुक्त राष्ट्र के शांति कायम करने वाले विभाग के साथ इस आशय का समझौता भी कर रखा है कि टकराव के इलाकों में वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आदेश के तहत इस शांति सेना की तैनाती कर सकते हैं। वे 8 से 17 अक्तूबर के बीच कजाकिस्तान में संयुक्त सैनिक अभ्यास भी कर रहे हैं।
रूस की इन कार्रवाइयों से अमरीकी साम्राज्यावादियों की सीरिया में तख्तापलट की कार्रवाई को धक्का लगा है।
तब आखिर सवाल यह उठता है कि सीरिया जैसे छोटे देश में अमरीकी साम्राज्यवादी क्यों तख्तापलट करना चाहते हैं? वस्तुतः समूचे पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में अमरीकी साम्राज्यवादी तेल और प्राकृतिक गैस भण्डार पर कब्जा करना चाहते हैं। सीरिया भी गैस पाइप लाइन के रास्ते पर पड़ता है। इसीलिये अफगानिस्तान और इराक पर उसने कब्जा किया। तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत की 1040 मील लम्बी पाइप लाइन की योजना पहले से प्रस्तावित है। इसके अलावा सीरिया अरब गैस पाइप लाइन का अभिन्न हिस्सा है। यह 1200 किमी. लम्बी योजना प्रस्तावित है। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने 20 वर्ष पहले सीरिया में हुकूमत परिवर्तन करने की योजना बना ली थी। उसी समय उसने इराक, लीबिया, लेबनान, सोमालिया, सूडान और ईरान की हुकूमत परिवर्तन की योजना तैयार कर ली थी।
सीरिया पर हमला करने से उसके घनिष्ठ सहयोगी ईरान और रूस को कमजोर करने में सीधे मदद मिलेगी तथा परोक्ष रूप से चीन को कमजोर करने में मदद मिलेगी। अमरीकी साम्राज्यवादी इसीलिये सीरिया पर हमला करने की मुहिम में लगे हुए हैं। इससे भी बढ़कर अरब गैस पाइप लाइन योजना में सीरिया की केन्द्रीय भूमिका बनती है। अभी लक्ष्य साधा जा रहा है। जिस प्रकार, यूनोकाल पाइप लाइन (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत लाइन) के लिये तालिबान को सत्ताच्युत करने में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने हमला किया था, उसी प्रकार वे अरब गैस पाइप लाइन के लिये सीरिया पर हमला कर रहे हैं क्योंकि सीरिया की हुकूमत विश्वसनीय नहीं है।
विशेषतौर पर, तुर्की, इजरायल और अमरीका सीरिया से होकर गैस पाइप लाइन की सुरक्षित गारण्टी चाहते हैं। यह तभी संभव है जब सीरिया में ऐसी हुकूमत हो जो इन देशों की गैस पाइप लाइन के रास्ते में बाधा न बने। या वह ऐसी मांग न करे जो उनके मुनाफे में बड़ा हिस्सा बनता हो।
यह तेल और गैस के लिये ईरान से लेकर प्रशांत महासागर तक फैला युद्ध क्षेत्र है जिसके नियंत्रण के लिये विभिन्न ताकतें विशेषतौर पर अमरीकी साम्राज्यवादी संघर्ष कर रहे हैं। इसके साथ ही यह यूरेशिया के नियंत्रण के लिये तरल युद्ध है। यह पाइपलाइनिस्तान के लिये युद्ध है।
इस युद्ध में अमरीकी साम्राज्यवादी एक तरफ पश्चिमी यूरोप की ताकतों और पश्चिम एशिया की अपनी पिट्ठू सरकारों के साथ लगे हुए हैं। दूसरी तरफ रूस मध्य एशिया के देशों के साथ लगा हुआ है। चीन की हुकूमत भी इस युद्ध में नयी भागीदार बन रही है। चीन भी मध्य एशिया-चीन पाइप लाइन से गैस आयात कर रहा है। इस पाइपलाइन को कुछ लोग इक्कीसवीं सदी का सिल्क रोड कहते हैं। इसी के साथ ही तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत के विकल्प के बतौर चीन एक दूसरी पाइप लाइन की योजना बना रहा है। यह तुर्कमेनिस्तान-अफगान-चीन पाइपलाइन की योजना है। ऐसे ही वह ईरान के साथ समझौता करके ईरान-पाकिस्तान पाइप लाइन को चीन तक ले जाने की योजना रखता है।
अमरीकी साम्राज्यवादियों की इन सारी काली करतूतों, विशेषतौर पर मौजूदा समय में सीरिया में हुकूमत परिवर्तन की साजिशों के पीछे तेल और गैस पाइप लाइन पर कब्जा करने की लड़ाई है। यही कारण है कि आने वाले समय में अमरीकी साम्राज्यवादियों के प्रतिद्वंद्वियों के बतौर रूस और चीन खड़े हो रहे हैं और वे अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा सीरिया में की गई कार्रवाइयों का विरोध कर रहे हैं।

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