
30 सितम्बर से जारी रूसी हवाई हमलों से सीरिया में ही नहीं समूचे पश्चिम एशिया, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनीतिक हलकों में समीकरण बदलने के आसार मिलने लगे हैं और शासक वर्गों के भीतर उथल-पुथल मची हुयी है। सीरिया की हुकूमत के साथ मिलकर और उसके बुलावे पर रूसी बमवर्षक विमानों ने आई.एस.आई.एस., अल-नुसरा और अन्य आतंकवादी ग्रुपों के ठिकानों को हमलों का निशाना बनाया है। कैस्पियन सागर से आतंकवादी ठिकानों पर रूसी मिसाइलें दागी गयी हैं। सी.आई.ए. और साऊदी अरब से सहायता पाने वाले आतंकवादी समूह तुर्की से लगातार सीरिया में आते रहे हैं। अभी तक मिल रही सूचनाओं के आधार पर आईएसआईएस और अन्य आतंकवादी समूहों के ठिकानों को अधिकांशतः ध्वस्त कर दिया गया है। सीरिया की सरकारी सेना के हौंसले बुलंद हो गये हैं और वह आतंकवादी अधिकृत क्षेत्रों में जमीनी हमले तेज कर चुकी है और उसको हवाई सुरक्षा रूसी बमवर्षक विमान मुहैय्या करा रहे हैं। आतंकवादी संगठनों के अपने को बचाने के लिए मस्जिदों और नागरिक आबादी के बीच शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। <br />
इस घटनाक्रम से अमरीकी साम्राज्यवादी बौखला गये हैं। वे रूसी हुकूमत के विरुद्ध जहर उगलने की मुहिम और तेज कर चुके हैं लेकिन इससे रूसी हमलों में कोई कमी नहीं आ रही है। अमरीकी साम्राज्यवादियों की बशर अल असद को सत्ता से हटाने की मुहिम कमजोर हो गयी है। अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादी तथा अरब देशों में मौजूद शेखशाहियां, विशेष तौर पर साऊदी अरब के शासक सुन्नी आतंकवादियों को हथियार, पैसा और प्रशिक्षण मुहैय्या कराके बशर अल असद की हुकूमत को हटाने के लिए उसके विरुद्ध आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे रहे थे। उत्तर में तुर्की को प्रशिक्षण शिविर के बतौर इस्तेमाल किया जा रहा था। तुर्की से आतंकवादी सीआईए से प्रशिक्षण लेकर सीरिया के अलेप्पो प्रांत में अधिकार जमा चुके थे। यह सब अमरीकी साम्राज्यवादी आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के नाम पर कर रहे थे। यह अब जानी हुई बात है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ही आईएसआईएस, अल नुसरा और ‘फ्री सीरियन आर्मी’ जैसे आतंकवादी संगठनों को खड़ा करने में मदद की थी और इस काम में उनके घनिष्ठ सहयोगी साऊदी अरब के बहावी शासक थे। <br />
30 सितम्बर के बाद सीरिया में स्थिति बदल गयी है। अमरीकी शासकों के सामने यह चुनौती खड़ी हो गयी है कि आतंकवादी गुटों को सचमुच में खतम करने वाले रूसी हवाई हमलों को किस तरह से गलत सिद्ध किया जाए। अमरीकी साम्राज्यवादी अब यह कह रहे हैं कि रूसी हवाई हमले बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध लड़ने वाले उदारवादी विरोधियों के विरुद्ध केन्द्रित हो रहे हैं। रूसी साम्राज्यवादी यह साफ तौर पर कह रहे हैं कि बशर अल-असद की हुकूमत के निमंत्रण पर वे सीरिया में आतंकवादियों का सफाया करने के मकसद से हवाई हमले कर रहे हैं। सीरिया में उनके द्वारा किया गया हवाई हमला कानूनी और न्यायसंगत है जब कि अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा आतंकवादी समूहों को दी जाने वाली मदद और प्रशिक्षण गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण है। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा अपनी नापसंद हुकूमतों को दुष्ट हुकूमतें कहने और उनके ‘हुकूमत परिवर्तन’ के अभियान का हिस्सा है। यह सिर्फ इसलिए चलाया जा रहा है कि अमरीकी साम्राज्यवादी इस क्षेत्र के तेल भंडारों और अन्य साधन स्रोतों पर कब्जा कर सकें। रूसी साम्राज्यवादी सीरिया में बशर अल असद की सरकार को कायम रखना चाहते हैं और अमरीकी साम्राज्यवादी उस हुकूमत को हटाकर अपनी मनपसंद सरकार कायम करना चाहते हैं। यह ज्ञात हो कि पश्चिम एशिया में सीरिया एकमात्र देश है जिसके साथ रूसियों के घनिष्ठ सम्बन्ध सोवियत संघ के जमाने से निरंतर रहे हैं। <br />
रूसी साम्राज्यवादी तुर्की की हुकूमत के साथ निरंतर सम्पर्क में <span style="font-size: 13px; line-height: 20.8px;">हैं</span>। वे तुर्की के शासकों को यह साफ-साफ संदेश दे रहे हैं कि सीरिया में उसका हस्तक्षेप बंद होना चाहिए। तुर्की नाटो का सदस्य देश है। अमरीकी साम्राज्यवादी तुर्की को इस बात के लिए उकसा रहे हैं कि वह रूस द्वारा उसके हवाई क्षेत्र का अतिक्रमण करने और तुर्की के क्षेत्र में बमबारी करने का विरोध करे और रूस के विरुद्ध लड़ाई में उतर जाए। इससे नाटो के देशों को रूस के विरुद्ध चौतरफा युद्ध छेड़ने में मदद मिलेगी क्योंकि नाटो संगठन के प्रावधान के अनुसार यदि नाटो के किसी देश पर कोई हमला करता है तो नाटो के सदस्य देश इसे अपने ऊपर हमला मानकर उसके विरुद्ध साझी कार्रवाई करेंगे। <br />
लेकिन तुर्की इसके परिणामों से परिचित है। तुर्की के शासकों को रूसी साम्राज्यवादी लगातार यह बता रहे हैं कि उनका तुर्की से लड़ने का कोई इरादा नहीं है। यदि तुर्की के क्षेत्र में कोई बम गिरा है तो यह आकस्मिक है। यह रूसी सेना का इरादा नहीं है। लेकिन तुर्की के शासक अपनी अभी तक की चली आ रही सीरिया विरोधी नीति को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। वे रूसी साम्राज्यवादियोें के विरुद्ध दूर तक जाने के लिए भी तैयार नहीं हैं। रूसी साम्राज्यवादियों ने उन्हें बता दिया है और चेतावनी भी दे दी है कि कुर्द लोगों के दमन के विरुद्ध लड़ाई तेज होने पर तुर्की के शासक कमजोर स्थिति में जा सकते हैं और स्वतंत्र कुर्द राज्य बन सकता है। रूसी हवाई हमलोें के दस दिन बाद तुर्की में एक बम विस्फोट उस समय हुआ जब एक कुर्द पार्टी की रैली हो रही थी। इस बम विस्फोट में 50 से ज्यादा लोग मारे गये और भारी तादाद में लोग घायल हुए। यह आतंकवादी कार्रवाई निश्चित तौर पर तुर्की हुकूमत की छत्र छाया में पलने वाले आतंकवादी संगठनों में से किसी ने की होगी। तुर्की जो अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादियों, साऊदी अरब और अन्य शेखशाहियों से मिलीभगत करके सीरिया की हुकूमत के विरुद्ध आतंकवादियों की मदद कर रहा था अब उसकी गति सांप-छछूंदर की हो गयी है। अभी तक वह अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर सीरिया की हुकूमत के लिए ‘नो फ्लाई जोन’ बनाना चाहता था, अब उसमें पानी फिर गया है। अब खुद अमरीकी साम्राज्यवादियों और तुर्की जैसे उसके सहयोगियों के लिए ‘नो-फ्लाई जोन’ सीरिया में बनने के आसार बन रहे हैं। <br />
इस समूचे घटनाक्रम के दौरान अमरीकी साम्राज्यवादियों के भीतर खुद अंतरविरोध तीव्र हो गये हैं। बराक ओबामा की ‘हुकूमत परिवर्तन’ की अभी तक चलने वाली नीति पर हमले हो रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियोें का एक धड़ा यह मांग करने लगा है कि आतंकवाद के खात्मे के लिए अमरीका को रूस के साथ सहयोग करना चाहिए क्योेंकि रूसी हवाई हमला आतंकवाद के विरुद्ध ही केन्द्रित है। एक दूसरा मजबूत धड़ा है जो रूसी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध युद्ध करने का नारा दे रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने नाटो के जरिए रूस को चारों तरफ से घेर रखा है। यूक्रेन में फासिस्ट हुकूमत के जरिए रूस को लगातार लड़ाई में डालने की कोशिश की है। यूरोपीय संघ के साथ मिलकर यूक्रेन के मसले पर रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। इस सबके बावजूद रूस ने सीरिया में हवाई हमला करके दुनिया भर के शासकों में अपनी साख को बढ़ाया है और अमरीकी साम्राज्यवादियों की दादागिरी पर लगाम लगाने में पहल की है। इससे अमरीकी साम्राज्यवादियों के बीच आपसी टकराहट और तेज हुयी है। फिलहाल ऐसा लगता है कि ओबामा को तात्कालिक तौर पर पीछे हटना पड़ेगा और बशर अल असद की हुकूमत के साथ किसी न किसी किस्म की समझौता वार्ता में अपने समर्थकों को बिठाना होगा। लेकिन दीर्घकालिक तौर पर अमरीकी साम्राज्यवादियों की नीति वही हुकूमत परिवर्तन की बनी रहेगी। <br />
पश्चिम एशिया में इस हवाई हमले ने एक नये गठबंधन को और मजबूती प्रदान की है। ईरान की हुकूमत पहले से ही सीरिया की हुकूमत का साथ दे रही थी लेकिन इस रूसी हवाई हमले ने ईरान की हुकूमत की अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ सौदेबाजी करने की ताकत को और बढ़ा दिया है। जैसा कि दुनिया भर के पूंजीवादी शासकों का चरित्र है कि वे हर मौके का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसी के अनुरूप ईरान के शासक भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। ईरान के शासकों को अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादियों की बंदरघुडकी और दबावों को ज्यादा झेलना पड़ रहा था, इस घटनाक्रम में उनकी स्थिति मजबूत हुई है और वे रूसी साम्राज्यवादियों के पक्ष में फिलहाल ज्यादा मजबूती से खड़े हो गये हैं। <br />
इराक में लम्बी तबाही के बाद जो अमरीका परस्त हुकूमत वहां मौजूद है, उसमें भी दरारें पड़ रही हैं। खुद इराक के भीतर अमरीकी साम्राज्यवाद की मौजूदगी उनके अंदर एक तरह की बैचेनी और असंतोष का कारण बन रही है। यह इस बात का सुबूत है कि आज की दुनिया में किसी देश को लम्बे समय तक गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता। इराक के शासक हलकों में सीरिया में हो रहे रूसी हवाई हमलों के समर्थन में लोग मौजूद हैं। बातें यहां तक हो रही हैं कि इराक, ईरान, सीरिया और रूस का इस इलाके में एक नया गठबंधन तैयार हो रहा है। इस गठबंधन में लेबनान के हिजबुल्ला छापामार भी शामिल होंगे। इस तरह, इस क्षेत्र में अमरीकी साम्राज्यवादियों के एक छत्र प्रभुत्व पर गहरा आघात लगा है। <br />
अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों की हुकूमत परिवर्तन की नीति का खामियाजा अभी तक वहां की अवाम भुगत रही है। लाखों लोगों की हत्याओं और इससे भारी तादाद में लोगों के घायल होने, घरों और सम्पत्ति की तबाही तथा शरणार्थियों की भारी तादाद खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। 2011 से सीरिया में जो आतंकवादी गतिविधियों का सिलसिला जारी रखा है उसने लाखों-लाख लोगों को शरणार्थी बना दिया है। ये शरणार्थी यूरोप के देशों में दर-दर भटक रहे हैं। यूरोप के देश उन्हें कोई ठिकाना नहीं दे रहे हैं। बच्चे और औरतें-बूढ़े कहीं समुद्र में मर रहे हैं तो कहीं बिना दवा के, बिना भोजन के और बिना ठिकाने के मरने को अभिशप्त हैं। इन लाखों-लाख लोगों की हत्याओं के लिए मुख्यतः अमरीकी साम्राज्यवादी जिम्मेदार हैं। इन देशों में हुई और होती जा रही तबाही और बर्बादी ने इन देशोें के शासक हलकों के भीतर भी अमरीकी साम्राज्यवाद की एक ध्रुवीय दुनिया के विरुद्ध अपनी आवाज शामिल करने की भावना को बढ़ाया है और सीरिया में रूसी हवाई हमले के समर्थन में कमोवेश खड़ा किया है, कम से कम इन सभी देशों के शासकों के बीच दरार को बढ़ाने में मदद की है। <br />
अगर पश्चिम एशिया में मजबूती से अमरीकी साम्राज्यवाद के पक्ष में कुछ हुकूमतें खड़ी हैं तो वे इजरायल के अलावा साऊदी अरब, संयुक्त राज्य अमीरात इत्यादि की शेखशाहियां हैं। साऊदी अरब खुद यमन में लगातार हूती विद्रोहियों के दमन में लगा हुआ है और भारी दमन के बावजूद वह उन्हें दबा नहीं पा रहा है। खुद इन शेखशाहियों के विरुद्ध इन देशों में आवाजें उठ रही हैं। ये खुद कुछ सुधार करने की ओर जाने की और अपने-अपने देशों के भीतर विवश होंगे। इस रूसी हवाई हमले के बाद इजरायल के विरुद्ध फिलिस्तीनी अवाम के संघर्ष को और ज्यादा बल मिलेगा। <br />
रूसी साम्राज्यवादी इस विश्व परिस्थिति को देखकर ही सीरिया में यह हवाई हमला करने की ओर गये हैं। सोवियत संघ के विघटन के लगभग 25 वर्षों बाद रूसी साम्राज्यवादियों ने यह कदम उठाया है। इसने पश्चिम एशिया के समीकरणों को बदलने में भूमिका निभायी है। इससे अमरीकी साम्राज्यवादियों की एक ध्रुवीय दुनिया बनाने के प्रयासों को धक्का लगा है। रूसी साम्राज्यवादियों ने नैतिक तौर पर अपने को ऊंचा खड़ा कर दिया है। <br />
आखिर अमरीकी साम्राज्यवादी इस हमले के बाद सीरिया में क्यों रक्षात्मक स्थिति में जाने को मजबूर हुए हैं? इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण तो खुद अमरीकी साम्राज्यवादियों की कमजोर होती जा रही स्थिति है। आज आर्थिक तौर पर अमरीकी साम्राज्यवादी उतने मजबूत नहीं हैं जितना कि दो दशक या एक दशक पहले तक थे। हालांकि उनकी सैन्य ताकत के आस-पास कोई भी देश नहीं है। दूसरे, रूसी साम्राज्यवादी फिर से आर्थिक तौर पर एक शक्ति के तौर पर उभर कर खड़े हो गये हैं। तीसरे, रूसी साम्राज्यवादियों ने अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए और अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा खड़ी की गयी विश्व संस्थाओं के समानान्तर अपने क्षेत्रीय संगठन खड़े किये हैं। ब्रिक्स द्वारा खड़ा किया गया बैंक तथा शंघाई सहकार संगठन जैसे संगठन इसमें अमरीकी वर्चस्व के विरुद्ध कारगर भूमिका निभाते हैं। चौथे, आज की दुनिया ऐसे मुकाम पर पहुंच गयी है जहां पर किसी देश में कठपुतली शासक बनाना लम्बे समय तक सम्भव नहीं है। अन्य कारकों के अलावा ये महत्वपूर्ण कारक हैं जो अमरीकी साम्राज्यवादियों को सीरिया में पीछे हटने के लिए मजबूर कर रहे हैं। <br />
लेकिन जैसा कि कहावत है कि सभी आतताइयों और अन्यायियों की तरह साम्राज्यवादी मूर्ख होते हैं। वे खुद ही भारी पत्थर उठाकर अपने ही पैरों में गिरा देते हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी भी इसका अपवाद नहीं हैं। <br />
अपनी एक ध्रुवीय दुनिया के सपने को साकार करने और विश्व प्रभुत्व की आकांक्षा में वे ऐसी मूर्खताएं करने को अभिशप्त हैं। <br />
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि इन सारे संघर्षों और लड़ाइयों में मजदूर-मेहनतकश अवाम मारी जा रही है और देश के भीतर विस्थापित और भारी पैमाने पर दूसरे देशों में दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो रही है। लेकिन इन लड़ाइयों व संघर्षों में हर देश के शासक वर्ग का कोई न कोई हिस्सा फायदा उठा रहा है और साम्राज्यवाद या उससे टकराने वाला दूसरा हिस्सा सत्ताच्युत हो रहा है। <br />
रूसी साम्राज्यवादियों के सीरिया के साथ सम्बन्ध लगभग उसी तरह के रहे हैं जिस तरह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के इजरायल के साथ रहे हैं। सीरिया में रूसी साम्राज्यवादियों का सैन्य अड्डा सोवियत संघ के पतन के पूर्व से है। सोवियत संघ के विघटन के बाद जब तक रूसी साम्राज्यवादी बेहद कमजोर थे तब तक वे अपने प्रभाव क्षेत्र को बनाये रखने में अक्षम थे। उन्हें नब्बे के दशक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान उठाना पड़ा। <br />
वर्ष 2004 से खास तौर पर वे इस स्थिति में आये कि अपने खोते प्रभाव क्षेत्र को बचाने की ओर जायें। अमेरिकी व यूरोपीय साम्राज्यवादियों को चुनौती दे अपने खोते हुए प्रभाव क्षेत्र को किसी भी कीमत पर बचायें। इसकी अभिव्यक्तियां पहले जार्जिया, फिर यूक्रेन और अब सीरिया में हो रही है। रूसी साम्राज्यवादी तेल और गैस के अपने प्राकृतिक संसाधनों सहित सैन्य, अंतरिक्ष सहित अन्य तकनीक पर अपने प्रभुत्व के चलते क्रमशः इस स्थिति में आ गये कि वे जार्जिया और यूक्रेन का बंटवारा कर सकें और सीरिया में एक हद तक स्वतंत्र रूप से कार्यवाही कर सकें। रूसी साम्राज्यवादियों को चीन, ईरान, सहित ताकतों का खुला-छिपा समर्थन भी हासिल है। <br />
गहराते विश्व आर्थिक संकट ने साम्राज्यवादियोें के आपसी अंतरविरोध को पहले से तीखा किया है। हालांकि आज भी उनके बीच सांठ-गांठ का पक्ष प्रधान है। यह सीरिया के मामले में भी कम या ज्यादा दिखायी देता है।