सीरिया में रूसी साम्राज्यवादियों को तात्कालिक सफलता

    सीरिया में अमरीकी साम्राज्यवादी तात्कालिक तौर पर ‘हुकूमत परिवर्तन’ के अपने अभियान में पीछे हट गये प्रतीत हो रहे हैं। पिछले 5 वर्षों से ज्यादा समय से वे असद को सत्ताच्युत करने में हर तरह के आतंकवादी समूहों की मदद कर रहे थे। उनके इस अभियान में तुर्की, साउदी अरब और कतर की हुकूमतें प्रत्यक्षतः मदद कर रही थीं। सीरिया में गृहयुद्ध भड़काकर लाखों लाख आबादी को यूरोप के विभिन्न देशों में शरणार्थी के बतौर पलायित होने के लिए मजबूर कर दिया गया था। एक तरफ अमरीकी साम्राज्यवादी आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध का नारा दे रहे थे और दूसरी तरफ इन्हीं आतंकवादी समूहों का इस्तेमाल असद की हुकूमत के विरुद्ध कर रहे थे। लेकिन इन्हीं आतंकवादी समूहों के विरुद्ध रूस की सेना के आ जाने से अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनकी इस साजिश में शामिल क्षेत्रीय ताकतों की योजना पर पानी फिर गया। रूसी साम्राज्यवादी सीरिया में आतंकवादी समूहों का सफाया करने के लिए सीरिया की हुकूमत की मदद में बड़े पैमाने पर कूद पड़े। अब स्थिति यह हो गयी है कि सीरिया की हुकूमत की सेना रूसी हवाई हमलों की मदद से आतंकवादी समूहों के कमान केन्द्रों को ध्वस्त कर रही है। वह उनकी आपूर्ति लाइन को बाधित कर रही है। जिन प्रांतों में विभिन्न आतंकवादी गुटों का कब्जा था, वहां पर उनके कब्जों को हटाकर सीरिया की असद हुकूमत का कब्जा हो गया है। <br />
    इस परिस्थिति ने अमरीकी साम्राज्यवादियों को तात्कालिक तौर पर पीछे हटने को बाध्य कर दिया है। तुर्की की हुकूमत इससे और ज्यादा बैचेन हो गयी है। पहले उसने रूसी युद्धक विमान को गिराकर रूस को भड़काने की कोशिश की थी। इसमें उसे अमरीकी साम्राज्यवादियों की पूरी शह मिली हुयी थी। लेकिन जब रूसी साम्राज्यवादी तुर्की से नहीं उलझे और उन्होंने सीरिया में अपनी हवाई बमबारी के जरिए आतंकवादियों के ठिकानों को तहस-नहस करना जारी रखा तो इससे तुर्की तो बौखलाया ही, अमरीकी साम्राज्यवादी भी परेशान हो गये। रूसी हवाई हमलों से तुर्की को आतंकवादियों द्वारा छिपे तौर पर तेल बेचने के रास्ते बंद हो गये। तुर्की के सत्ताधारी गुट के लोग इस तेल बिक्री से करोड़ों-करोड़ डाॅलर का मुनाफा बटोर रहे थे। तुर्की का यह मुनाफा ही नहीं रुका बल्कि आतंकवादियों की हथियारों, गोला-बारूद की आपूर्ति का रास्ता भी बाधित हुआ। <br />
    अब अलेप्पो प्रांत में सीरिया की असद हुकूमत का कब्जा हो जाने से तथा लटकिया प्रांत के अधिकांश भागों में उसके दखल से विभिन्न आतंकवादी समूहों के पांव उखड़ गये हैं। रूसी साम्राज्यवादी अपना हवाई हमला जारी रखे हुए हैं। <br />
    ऐसी परिस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में जब सीरिया के मसले पर वार्ता शुरू हुई तो विभिन्न विरोधी गुट जो वास्तव में आतंकवादी गुट थे, ने यह कहकर भाग लेने से मना कर दिया कि जब तक रूस हवाई हमले बंद नहीं करेगा तब तक वार्ता का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादी उनके इस खोखले तर्क को समझते थे, इसलिए वे इससे सहमत नहीं हुए और उन आतंकवादी समूहों को धमकी दी कि यदि वे वार्ताओं में नहीं शामिल होंगे तो उनकी मदद बंद कर दी जायेगी। इससे मजबूर होकर वे वार्ता में शामिल हुए लेकिन वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला।<br />
    अब अमरीकी साम्राज्यवादी नयी योजनाओं के साथ अपनी साजिश में लगे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने यूरोप में नाटो की शक्तियों को आधुनिक करने के लिए बड़े पैमाने पर सैनिक खर्च को बढ़ा दिया है। रूस के पश्चिम में सटे हुए देशों- लिथुआनिया, लाटविया, बाल्कन देशों, पोलेण्ड, बुल्गारिया, आदि में नाटो की सैन्य टुकडि़यों को बढ़ाने की मुहिम तेज हो गयी है। रूस के पश्चिम में अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों को तैनात किया जा रहा है। यूक्रेन में 2014 में सत्ता पलट कराने के बाद वहां की हुकूमत स्थिर नहीं हो पा रही है। रूसी भाषी लोगों का एक हिस्सा यूक्रेन से अलग होकर रूस में शामिल हो गया है। बाकी यूक्रेन के पूर्वी व पूर्वोत्तर हिस्सों में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुयी है। अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके नाटो के सहयोगी यूक्रेन के जरिए रूसी साम्राज्यवादियों पर हमला करने में तथा उसे अपने प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत लाने में अभी तक असफल रहे हैं। अब नाटो की सेनाओं को रूस की पश्चिमी सीमा में बढ़ाकर तथा उसे आधुनिक हथियारों से लैस करके अमरीकी साम्राज्यवादी रूस को वहां घेरने में लगे हुए हैं।<br />
    उस पर तुर्रा यह कि अमरीकी साम्राज्यवादी इसके विस्तार के लिए यह तर्क दे रहे हैं कि रूस मनचाहे तरीके से सीमाओं को बदलता रहा है। रूसी आक्रामकता का सामना करने के लिए नाटो की फौजों को बढ़ाने तथा उनको आधुनिक हथियारों से लैस करने का तर्क दिया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यह रही है कि अमरीकी साम्राज्यवादी नाटो का विस्तार करके रूस की सीमा तक ले गये हैं। <br />
    सीरिया के अलेप्पो प्रांत में आतंकवादी गुटों के सफाया हो जाने तथा सीरिया की हुकूमत का कब्जा हो जाने के बाद तुर्की, साउदी अरब और कतर जैसे देश जो आतंकवादियों को हथियार और पैसे की मदद कर रहे थे, बौखला गये हैं। साउदी अरब की हुकूमत सीरिया में अपनी फौज भेजने की बात कर रही है। साऊदी अरब यमन में बड़े पैमाने पर तबाही मचाने के बावजूद वहां हूती विद्रोहियों के संघर्ष को कुचलने में नाकामयाब रहा है। बल्कि सच्चाई तो यह है कि हूती विद्रोही साऊदी अरब के एक इलाके में अपना अधिकार तात्कालिक तौर पर कायम करने में सफल रहे हैं। ऐसी स्थिति में साऊदी अरब की सेना सीरिया में जाकर कुछ खास नहीं कर पायेगी। यह साऊदी अरब के शासक भी जानते हैं। उनकी यह बंदरघुड़की सिर्फ अपने को और अपने समर्थकों को सांत्वना देने के लिए है। <br />
    तुर्की का मामला साऊदी अरब की तुलना में ज्यादा संगीन है। वह पूर्व में कुर्द विद्रोहियों से परेशान है। कुर्द विद्रोहियों का तुर्की की हुकूमत ने निर्ममता से दमन किया है और कर रही है। कुर्द लोग सीरिया में हैं। वे इराक और ईरान में हैं। तुर्की की हुकूमत जहां सीरिया पर रूसी हवाई हमले का जिक्र करके लाखों लोगों की तबाही कर घडि़याली आंसू बहा रही है, वहीं वह अपने पूर्व और दक्षिण के इलाके में कुर्दों के दमन पर चुप्पी साधे हुए है। अभी जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने तुर्की की यात्रा के दौरान तुर्की के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलकर यह बयान दिया कि रूसी हवाई हमले से लाखों नागरिक बेघर हो गये हैं। रूस निर्दोष नागरिकों पर बमबारी कर रहा है। वे इसका बहाना बनाकर नाटो की सेनाओं को तुर्की और उससे लगे भूमध्यसागर व अन्य सागरों में तैनात करना चाहती हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी नाटो के इस अनुच्छेद का इस्तेमाल करके कि नाटो के किसी भी देश पर यदि कोई बाहरी शक्ति हमला करती है तो इसे नाटो के सभी देशों पर हमला समझा जायेगा, वे तुर्की के जरिए सीरिया में रूस से युद्धरत होने का बहाना ढूंढ रहे हैं। इस मामले में जर्मनी और नाटो के अन्य सदस्य देशों को अमरीकी साम्राज्यवादी अपने रूस विरोधी अभियान में शामिल कर रहे हैं बल्कि वे कर चुके हैं। <br />
    तब भी, अमरीकी साम्राज्यवादियों की परेशानी कम नहीं हो रही है। इधर ईरान पर प्रतिबंध खत्म होने के बाद अमरीकी साम्राज्यवादी सोच रहे थे कि उसे सीरिया के मसले पर कम से कम निरपेक्ष किया जा सकेगा लेकिन वे इस पर कतई कामयाब नहीं हुए। इधर ईरान की हुकूमत ने घोषणा की है कि वह अपने पेट्रोल का व्यापार डाॅलर में करने के बजाय यूरो में करेगी। इससे भी अमरीकी साम्राज्यवादी परेशान हो गये हैं। अब यह जानी हुयी बात है कि इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता को इसलिए भी हटाया गया था क्योंकि सद्दाम हुसैन ने तेल का व्यापार डाॅलर में करने के बजाय यूरो को अपनाने की बात की थी। अब ईरान ने गिरते हुए डाॅलर के प्रभाव को और कमजोर करने की योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। <br />
    अमरीकी साम्राज्यवादी अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में तख्तापलट करके, वहां पर कब्जा करके अब सीरिया में उतना भी करने में सफल नहीं हो रहे हैं। हालांकि अरबों-खरबों डाॅलर फूंक कर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार कर तथा लाखों-लाख लोगों को बेघर करके उन्हें यतीम बनाकर भी अमरीकी साम्राज्यवादी ऊपर बताये गये देशों में अपने आधिपत्य को स्थायी नहीं बना सके हैं। वे अफगानिस्तान में और फौज उतारने जा रहे हैं और वह लम्बे समय के लिए होगी। इराक में उन्हें आई.एस. के लोगों से लगातार लड़ना पड़ रहा है। लीबिया में शांति कहीं दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ती। इन तीनों देशों में हुकूमत परिवर्तन की तथाकथित सफलता के बाद अब सीरिया में वह यह नहीं कर पा रहे हैं। उनके इस रास्ते में रूस एक बड़ी बाधा के रूप में खड़ा दिखाई पड़ता है। <br />
    लेकिन उनके सामने सिर्फ रूस ही बाधा नहीं है। अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए ईरान, सीरिया, लेबनान और फिलस्तीन ये पूरे इलाके बाधास्वरूप खड़े हैं। दरअसल, रूसी साम्राज्यवादी तो अमरीकी साम्राज्यवादियों का सहयोगी बनने को आतुर हैं लेकिन इसमें वे अपनी कीमत चाहते हैं। यह कीमत न देनी पड़े इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादी रूस को अपने अधीन लाने के लिए हथियारों और नाटो की मदद ले रहे हैं। <br />
    सीरिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों को रूसी साम्राज्यवादियों के समक्ष पीछे हटना पड़ रहा है। वे इसे पूरा करने के लिए रूस को खुद उसके क्षेत्र में घेरने में लग गये हैं। <br />
    लेकिन आज अमरीकी साम्राज्यवादी यह कर सकेंगे, इसमें संदेह है। क्योंकि रूस के साथ अन्य इलाकाई शक्तियां खड़ी हो रही हैं। क्योंकि अमरीकी साम्राज्यवादी हर जगह अन्याय का झण्डा बुलंद किये हुए हैं। क्योंकि रूसी साम्राज्यवादी ऊपर से ऐसा दिखावा कर रहे हैं कि वे अन्याय के विरुद्ध हैं इसलिए उन्हें व्यापक न्यायप्रिय लोगों का साथ मिल रहा है। <br />
    लेकिन ये सारी लड़ाईयां और टकराहट विभिन्न साम्राज्यवादी गुटों और विभिन्न पूंजीवादी शक्तियों के बीच है। इन लड़ाइयों और टकराहटों में मजदूर-मेहनतकश लोग मारे जा रहे हैं, बेघर हो रहे हैं और तबाह हो रहे हैं। लेकिन वे एक राजनीतिक शक्ति के बतौर इन लड़ाइयों में सचेत होकर हिस्सा नहीं ले रहे हैं। <br />
    जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक चाहे सीरिया में हो या अन्यत्र उन्हें शासकों के षड्यंत्रों और युद्धों का नुकसान उठाना होगा। यही उनकी कठोर नियति रहेगी।   

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