सीरिया में साम्राज्यवाद का बढ़ता हस्तक्षेप

    सीरिया में पश्चिमी साम्राज्यवादियों की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप लगातार बढ़ता जा रहा है। सीरिया को घेरने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादी एक के बाद एक झूठ गढ़ रहे हैं। पिछले दिनों इस बात का खूब हल्ला मचाया गया कि सीरिया के शासक विद्रोहियों और विद्रोहियों का साथ देने वाली जनता पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने जा रहे हैं। बिना किसी प्रमाण के इस तरह के साम्राज्यवादी प्रचार को दुनिया दस साल पहले इराक में भी देख चुकी है। अतः किसी ने भी इस कुत्सा प्रचार को महत्व नहीं दिया। अब एक दूसरे किस्म का हल्ला तुर्की के प्रधानमंत्री इरडोगेन मचा रहे हैं कि सीरिया की असद सरकार शीघ्र ही गिरने वाली है और सीरिया के सत्तर फीसदी हिस्से पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया है। यद्यपि तुर्की के प्रधानमंत्री के उलट जार्डन के राजा का मानना है कि ऐसा निकट भविष्य में सम्भव नहीं है।<br />
    सीरिया को घेरने के लिए अमेरिका के शासकों ने तुर्की की सीमा पर घातक पेट्रोयिट मिसाइलें तैनात कर दी हैं। ये मिसाइलें नाटो द्वारा सीरिया के द्वारा तुर्की पर किये जाने वाले तथाकथित हमले से तुर्की की रक्षा के लिए तैनात की गयी हैं। झूठ और पाखण्ड की इस पराकाष्ठा के पीछे वास्तविक उद्देश्य असद सरकार को धमकाना तथा पश्चिमी सेनाओं द्वारा प्रशिक्षित विद्रोहियों को सुरक्षा प्रदान करना है। दस वर्ष पूर्व इराक पर हमले के समय भी तुर्की में इन मिसाइलों को तैनात किया गया था। जो देश भयानक ढंग से गृहयुद्ध में उलझा हुआ हो और जहां की सरकार बाहरी हस्तक्षेप की गम्भीर चुनौती से जूझ रही हो उसके द्वारा तुर्की और इजरायल पर हमले की बात करना बेहद धूर्तता की निशानी है। तुर्की के साथ-साथ इजरायल भी सीरिया से लगने वाली अपनी सीमाओं पर युद्ध की तैयारियों में लगे हुए हैं। फिलहाल इजरायल के शासकों के हो-हल्ले में इसलिए थोड़ी कमी आयी हुयी है कि वहां पर आम चुनाव हो रहे हैं।<br />
    ईरान, ईराक, सीरिया, उत्तरी कोरिया को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अपने कार्यकाल के दौरान शैतानी धुरी घोषित किया हुआ था तथा यहां सत्ता परिवर्तन का लक्ष्य घोषित किया हुआ था। तब से वे सीरिया में इसी जुगत में लगे हुए हैं। इराक में तो उन्हें किसी तरह से कामयाबी मिल गयी थी परन्तु ईरान, सीरिया व उत्तरी कोरिया अभी अमेरिकी साम्राज्यवादियों की आंखों में गढ़ रहे हैं। ईरान के शासक अच्छी तरह से जानते हैं कि सीरिया में पश्चिमी साम्राज्यवादी जैसे ही कामयाब होंगे वैसे ही वे ईरान में सैन्य हस्तक्षेप की ओर बढ़ेंगे अतः उन्होंने घोषित कर दिया है कि सीरिया पर हमला ईरान पर हमला माना जायेगा। ईरान की इस घोषणा के साथ पश्चिम एशिया के हालात उस दिशा में आगे बढ़ रहे  हैं जहां पर एक क्षेत्रीय युद्ध भड़क सकता है। वस्तुतः पश्चिमी साम्राज्यवादी पश्चिम एशिया में अपने घनिष्ठ सहयोगियों तुर्की, इजरायल, सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, आदि के साथ इस बात की तैयारी भी कर रहे हैं। इस क्षेत्रीय युद्ध में ईरान से लेकर पश्चिमी अफ्रीका तक के देश आ सकते हैं। इस समय सीरिया, फिलीस्तीन, सोमालिया, लीबिया, अल्जीरिया, माली में साम्राज्यवादियों की घृणित साजिशों को देखा जा सकता है। पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा पैदा किये जा रहे ये हालात पश्चिम एशिया सहित पूरी दुनिया के लिए बेहद खतरनाक और बड़ी मानवीय त्रासदी की ओर धकेलने वाले हो सकते हैं। इसलिए यह एक तरह से सभी साम्राज्यवाद विरोधी व शांतिप्रिय मजदूर व मेहनतकश लोगों का कार्यभार बन जाता है कि वे सीरिया को घेरने के हर षड्यंत्र व हस्तक्षेप के हर बहाने का पुरजोर विरोध करें।<br />
    सीरिया की असद सरकार को सैन्य व आर्थिक मदद ईरान व रूस से प्रमुखता से हासिल हो रही है। ईरान के शासकों के साथ सीरिया की सरकार ने कई सैन्य व आर्थिक समझौते किये हैं। रूस के सीरिया में आर्थिक व सैन्य हित दशकों से सधते रहे हैं। सीरिया शीतयुद्ध के जमाने से ही रूस का अति  निकट सहयोगी रहा है। सीरिया में अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों को इसलिए आसानी से मनचाही सफलता नहीं मिल रही है। लीबिया, अल्जीरिया, मिस्र के बिगड़े हालातों ने भी अमेरिका सहित पश्चिमी साम्राज्यवादियों के मंसूबों पर पानी फेरा हुआ है। लीबिया में अमेरिकी राजदूत के हत्यारों को महीनों गुजर जाने के बाद भी अमेरिकी शासक अपनी सारी घोषणाओं के बावजूद नहीं पकड़ पाये हैं।<br />
    पिछले दिनों एक नयी स्थिति सीरिया में यह उभर कर आयी है कि सीरिया में कट्टरपंथी इस्लामिक उग्रपंथियों के द्वारा किये जाने वाली नृशंस हत्याओं व आतंकवादी हमलों के कारण असद सरकार के आम विरोधियों का भी रुझान पुनः असद सरकार की ओर बढ़ा है। वे खुलेआम कहने लगे हैं कि असद सरकार इनसे कहीं अधिक अच्छी है। वास्तव में पिछले दो वर्षों में पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा प्रायोजित गृहयुद्ध में सीरिया के आर्थिक व सामाजिक हालात काफी गम्भीर हो गये हैं। उद्योग व कृषि क्षेत्रों को भारी क्षति पहुंच रही है। प्रोफेसर माइकेल चोस्सूदोवस्की ने सीरिया के उद्योग व कृषि के नष्ट होने के पीछे अमेरिका व नाटो के ‘‘आर्थिक आतंकवाद’’ को बताया है। एक समय कृषि के मामले में आत्मनिर्भर देश अपने नागरिकों की खाद्य जरूरतों के लिए बाहरी सहायता के लिए विदेशों व अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सियों से सहायता की गुहार लगा रहा है। सामान्य जीवन इस कदर अस्त-व्यस्त हो गया है कि लाखों की संख्या में लोग पलायन को मजबूर हुये हैं। जार्डन, इराक, तुर्की, लेबनान, जैसे पड़ौसी देशों में शरण लेने वालों की सख्या बड़ी है। असद सरकार को इस सबके बावजूद पिछले दो वर्षों में साम्राज्यवादी जब हटा नहीं पा रहे हैं तो वे सीधे सैन्य कार्यवाही का बहाना ढूंढ रहे हैं। सीरिया में सैन्य कार्यवाही के लिए अमेरिका सहित पश्चिम साम्राज्यवादियों ने अपने अरब व अफ्रीका में मौजूद समर्थक सरकारों के जरिये एक के बाद एक बडे़ सम्मेलन किये हैं। इन सम्मेलनों के जरिये जहां एक ओर मानवीय हस्तक्षेप की मांग की जा रही है वहीं विद्रोहियों की सेना व सरकार को मान्यता प्रदान की जा रही है। अमेरिका के शासकों ने अमेरिकी कांग्रेस में सीरिया को घेरने व हस्तक्षेप करने के लिए एक तरह से पूरी फिजा बना ही ली है। इराक, फिलीस्तीन, लीबिया, अल्जीरिया, मिस्र, सोमालिया व माली में साम्राज्यवादियों के घृणित षड्यंत्रों का नतीजा जब रोज ब रोज सामने आ रहा हो तब सीरिया की जनता का असद सरकार की ओर पुनः उन्मुख होना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता है।<br />
    कुल मिलाकर सीरिया की जनता पिछले दो वर्षों में और भी बुरी हालत में, साम्राज्यवादियों की साजिशों व हस्तक्षेप के कारण, पहुंच गयी है। यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो शायद सीरिया की जनता असद सरकार की तानाशाही का बेहतर ढंग से मुकाबला करके ज्यादा जनवादी अधिकार प्राप्त कर सकता थी। आज सीरिया की जनता के सामने अभूतपूर्व संकट खड़ा है। इस संकट का मुकाबला करने के लिए उसे मजदूर वर्ग के नेतृत्व में अपनी एकजुटता के साथ दुनिया की साम्राज्यवाद व पूंजीवाद विरोधी मेहनतकश जनता का साथ व पूर्ण सहयोग चाहिए। फिलवक्त सीरिया के वर्तमान संकट के समाधान की पहली शर्त अमेरिका सहित सभी साम्राज्यवादी शक्तियों के षड्यंत्र व हस्तक्षेप का तुरन्त बंद होना है। जिसके लिए साम्राज्यवादी आसानी से तैयार नहीं होंगे। अमेरिका व यूरोप के मजदूरों व आम नागरिकों के द्वारा जब तक अपने शासकों को मजबूर नहीं किया जायेगा तब तक वे नहीं मानेंगे। एक तरह से सीरिया को पिछली सदी के वियतनाम की जनता के महान संघर्षों व हो-ची-मिन्ह जैसे नेता व कम्युनिस्ट पार्टी की आवश्यकता है। 

आलेख

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सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।