सीरिया में साम्राज्यवादियों का बढ़ता तांडव

    तुर्की ने 24 नवम्बर को रूसी लड़ाकू विमान को मार गिराया। रूसी लड़ाकू जहाज सीरिया के भीतर पूर्वी क्षेत्र में सीरिया की विद्रोही सेना पर हमले कर रहा था। तुर्की का कहना है कि रूसी लड़ाकू जहाज कुछ सेकेण्ड के लिए तुर्की के अंदर सीमा से 1 से 2 मील के बीच में था। इतने कम समय तक लड़ाकू जहाज के तुर्की के सीमा के बहुत छोटे हिस्से में घुसने पर तुर्की के द्वारा रूसी विमान को गिरा दिया जाना अमरीकी प्रोत्साहन के बगैर संभव नहीं है। <br />
    तुर्की नाटो का सदस्य देश है। रूस के द्वारा तुर्की पर कोई दबाव नाटो पर हमला माना जायेगा। रूस अभी तुर्की के साथ सीधे युद्ध में उलझने से बच रहा है। लेकिन उसने सीरिया में अपनी मिसाइल प्रतिरक्षात्मक प्रणाली लगाने का फैसला लिया है। <br />
    2011 से शुरू हुआ सीरिया में सरकार विरोधी प्रदर्शन अपने फलक में विस्तारित होता गया है। ट्यूनीशिया से शुरू हुआ अरब विद्रोह अरब के दूसरे देशों में फैलने लगा। इसी कड़ी में यह सीरिया पहुंचा। शुरू में सीरिया के प्रदर्शनकारियों की मांग आर्थिक सुधार, राजनैतिक कैदियों की रिहाई, आपातकालीन प्रावधानों की समाप्ति, भ्रष्टाचार की समाप्ति इत्यादि थी। कुछ समय बाद प्रदर्शनकारियों के निशाने पर असद सरकार का खात्मा आ गया। <br />
    इस दौरान अमरीका और यूरोपीय साम्राज्यवादी अरब बसंत का इस्तेमाल अरब के देशों में अपने मनोनुकूल शासकों को गद्दी पर बैठाने के लिए करने लगे। सीरिया की बशर अल-असद की सरकार रूसी साम्राज्यवादियों के ज्यादा करीब थी। इसलिए जब जून 2011 में असद शासन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन होने लगे तो पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने इसमें मदद करना शुरू किया। असद की सेना को छोड़कर निकले अधिकारियों और सैनिकों से बनी ‘फ्री सीरियन आर्मी’ को उन्होंने मदद करना शुरू किया। अब सीरिया के भीतर भीषण गृहयुद्ध शुरू हो गया। सीरिया को इस लड़ाई में हिजबुल्ला लड़ाके, ईरान की सरकार और रूसी साम्राज्यवादियों से मदद मिल रही थी। सीरिया में विद्रोहियों को पश्चिमी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली मदद के बावजूद लड़ाई लम्बी खिंचती गयी। इस दौरान ‘फ्री सीरियन आर्मी’ के अलावा इस्लामिक स्टेट समेत अन्य विद्रोही संगठन भी लड़ाई में शामिल हो गए। इन सभी को पश्चिमी साम्राज्यवादी मदद पहुंचा रहे थे। यह कहना ज्यादा सही होगा कि फ्री सीरियन आर्मी की मदद के लिए अमेरिका की शह पर साऊदी अरब और कतर के शासकों के सहयोग से इस्लामिक स्टेट को खड़ा किया गया। इसे हथियार और प्रशिक्षण मुहैय्या कराये गये। यह सब असद सरकार को अपदस्थ करने के लिए किया गया। <br />
    2014 में इस्लामिक स्टेट ने अपने निशाने पर ईराक को भी लेना शुरू कर दिया। बाद में इसने पश्चिमी देशों के नागरिकों को बंधक बनाकर उनकी क्रूरतापूर्वक हत्या करनी शुरू कर दी। सीरिया में असद की सेना पर हमला करने के साथ-साथ इसने फ्री सीरियन आर्मी और अन्य विद्रोही गुटों के कब्जे के इलाकों पर भी हमला बोल दिया। अब पश्चिमी साम्राज्यवादियों को भस्मासुर बन रहे इस्लामिक स्टेट पर हमला करना मजबूरी बन गया। लेकिन इस्लामिक स्टेट इस दौरान बहुत मजबूत बन गया था। इसे साऊदी अरब और कतर से मदद मिलना जारी था। तुर्की उसे मदद करने के साथ-साथ उससे तेल भी खरीद रहा था। इन सभी चीजों ने इस्लामिक स्टेट को पराजित करना कठिन बना दिया। <br />
    सितम्बर 2015 से रूसी साम्राज्यवादी प्रत्यक्ष रूप से सीरिया के भीतर हस्तक्षेप करने लगे। अपने एक विमान को गिराये जाने को उसने बहाने के बतौर इस्तेमाल किया। रूसी लड़ाकू जहाजों ने इस्लामिक स्टेट के साथ-साथ असद की सरकार का विरोध कर रहे सभी गुटों के कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला किया। पश्चिमी साम्राज्यवादियों समेत तुर्की को यह हमले नागवार गुजर रहे थे। कोई आश्चर्य नहीं कि तुर्की ने रूसी लड़ाकू विमान को मार गिराने की हिम्मत जुटा ली। <br />
    इस बीच फ्रांस पर आतंकी हमला होने व इस्लामिक स्टेट द्वारा उसकी जिम्मेदारी लेने ने सभी साम्राज्यवादियों को तात्कालिक तौर पर इस्लामिक स्टेट के खिलाफ खड़ा कर दिया। रूसी साम्राज्यवादियों ने इस मौके का लाभ उठाते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास करा अपने हमलों को वैधानिकता भी दिला दी। अब इस्लामिक स्टेट के खिलाफ साझी सेना की बातें भी होने लगीं। रूस के साथ फ्रांस भी सीरिया में बमबारी करने लगा। ऊपरी तौर पर सीरिया में इस्लामिक स्टेट के खात्मे के लिए बमबारी के मामले में साम्राज्यवादियों की तात्कालिक एकता दिख रही है पर अंदरखाने उनकी बमबारी में निशाने अलग-अलग हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी व यूरोपीय साम्राज्यवादी इस्लामिक स्टेट के साथ असद से भी निपटना चाहते हैं तो रूसी साम्राज्यवादी असद सरकार को बचाने में जुटे हैं। तुर्की द्वारा रूसी विमान को मार गिराना साम्राज्यवादियों के इसी झगड़े का परिणाम है। <br />
    सीरियाई गृहयुद्ध में अब तक ढाई से तीन लाख लोगों की मौत हो चुकी है। एक लाख से ज्यादा लोग या तो बंदी हैं या लापता हैं। 76 लाख लोग आंतरिक तौर पर विस्थापित हुए हैं। 50 लाख लोग देश छोड़ने को मजबूर हुए हैं। साम्राज्यवादियों की बंदरबांट अभी भी पूरी नहीं हुयी है। जब तक साम्राज्यवाद का अंत नहीं किया जायेगा मानवता ऐसे ही व्यर्थ में रक्त रंजित होती रहेगी।  

आलेख

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।