
संघी फासीवादी दोहरी बातें करने में माहिर हैं और ऐसा वे बिना किसी शरम-लिहाज के करते हैं। नवंबर के शुरू में एक ऐसा ही नजारा उन्होंने पेश किया। <br />
इंडियन एक्सप्रेस समूह द्वारा आयोजित पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरूस्कार वितरित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरमाया कि अब देश का कोई भी प्रधानमंत्री नहीं होगा जो आपातकाल लगाये और प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त करे। प्रधानमंत्री के इस साधु वचन के ठीक अगले दिन सरकार ने फैसला सुनाया कि एन.डी.टी.वी. हिन्दी 9 नवंबर को बंद रहेगा। <br />
एन.डी.टी.वी. हिन्दी का एक दिन के लिए बंद करने का फैसला उसके इस सरकारी अपराध के मद्देनजर सुनाया गया कि उसने जनवरी में पठानकोट आतंकवादी हमले के समय ऐसी सूचनाएं प्रसारित कीं जिसका इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते थे। एन.डी.टी.वी. हिन्दी के इस तर्क का सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा कि ये जानकारियां आम थीं और बाकी चैनल भी इसे प्रसारित कर रहे थे। <br />
एन.डी.टी.वी. हिन्दी सेवा को एक दिन के लिए प्रतिबंधित करने की विज्ञापन को अलग टैब या विंडो में न खोलें सीधे क्लिक कर देखें, 2 मिनट विज्ञापन देख कर सहयोग कर सकते हैं तरफा निंदा हुई। पत्रकारिता जगत के सारी संस्थानों ने अकेले-अकेले और समूह में इसका विरोध किया, पर इसका सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। <br />
इतना ही नहीं कि सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा बल्कि सरकार की तरफ से ये बाकायदा अधिकारिक बयान आया कि राष्ट्रीय हित प्रेस की स्वतंत्रता से ऊपर है। सभी को इसका ध्यान रखना होगा। इसके पहले सरकार फरमा चुकी थी कि हालांकि बोलने की आजादी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा रहा है, पर हर किसी को राष्ट्र हित को सबसे ऊपर रखना चाहिए। इतने सब के बाद सरकार ने प्रतिबंध स्थगित कर दिया। <br />
मजे की बात यह है कि यह वही भाषा है जो कभी इंदिरा गांधी बोला करती थी और जिसके आधार पर उन्होंने आपातकाल लगाया था। आपातकाल लगाने का कारण राष्ट्र विरोधी प्रतिक्रियावादी शक्तियों से देश की रक्षा करना था। संघी फासीवादी अब उसी को बार-बार दुहरा रहे हैं। <br />
राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने की बात करने वाली सरकार राष्ट्र हित को स्वयं परिभाषित करती है और फिर मांग करती है कि हर कोई स्वयं को इसके अधीन करे। यही काम इंदिरा गांधी करती थी और अब यह काम मोदी-शाह की संघी मंडली कर रही है। <br />
संघी मंडली ने आज मुसलमान-आतंकवाद- कश्मीर-पाकिस्तान का एक समीकरण बनाया है और घोषित किया है कि इस मुनाफे में सरकार की नीति राष्ट्र हित को परिभाषित करती है। जो इस नीति का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो आतंकवाद को मुसलमानों से जोड़ने का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो मुसलमानों की फर्जी मुठभेड़ों में हत्या का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो कश्मीर की राष्ट्रीयता की समस्या को मुसलमानों से जोड़ने का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा हत्या- बलात्कार का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो कश्मीरी राष्ट्रीयता के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करेगा वह देशद्रोही होगा। जो पाकिस्तान को शैतान राष्ट्र घोषित करने का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप (वहां आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने सहित) का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। जो फर्जी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का पर्दाफाश करेगा वह देशद्रोही होगा। जो पाकिस्तान के साथ युद्ध के बदले शांति की बात करेगा देशद्रोही होगा। जो देश में युद्धोन्माद फैलाने का विरोध करेगा देशद्रोही होगा। जो सेना को पूजा की वस्तु बनाकर सैनिक तानाशाही मानसिकता बनाने के प्रयास का विरोध करेगा वह देशद्रोही होगा। इत्यादि-इत्यादि। <br />
संघी सरकार चाहती है कि देश के सारे लोग उसके द्वारा पेश की गयी राष्ट्र हित और देशद्रोह की परिभाषा स्वीकार करें। वे इसे स्वयं करें। यदि वे इसे स्वयं स्वीकार नहीं करते तो सरकार को इसे करवाना होगा। <br />
देश के पत्रकारिता जगत ने कमोवेश इसे स्वीकार किया है। पिछले महीने भर में एन.डी.टी.वी. समूह ने भी इसे खूब स्वीकार किया है। पर सरकार की नजरों में यह अभी पर्याप्त नहीं है। संघी सरकार चाहती है कि उसकी आवाज से बेमेल कोई भी सुर निकलना नहीं चाहिए। ऐसी जो भी आवाज निकलेगी सरकार उसका गला घोंट देगी। <br />
संघी सरकार की नजर में इसे बोलने की आजादी पर प्रतिबंध नहीं माना जायेगा क्योंकि यह राष्ट्रहित में जरूरी है। संघियों का हिन्दू राष्ट्र हित।