पत्र

भोजनमाता यूनियन का सम्मेलन

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भोजनमाता यूनियन का पहला सम्मेलन हरिद्वार में 2-3, जनवरी को सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में उत्तराखंड के अलग-अलग जगह जैसे रामनगर, हल्द्वानी, हरिद्वार, गौला पार, गरमपानी और अन्य प

हम मजदूर कितने आजाद हैं?

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साथियो, मौजूदा दौर में मजदूरों के हालात किसी से छुपे नहीं हैं। जहां कम वेतन, काम के घंटों में बढ़ोत्तरी, बढ़ती महंगाई, अस्थाई नौकरी से मजदूर के हालात बद से बदतर होते जा रहे

चुनाव आयोग का नया पैंतरा

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पिछले दिनों जब हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे उम्मीद के मुताबिक एकदम उलट भाजपा की बड़ी जीत के रूप में सामने आये तभी से चुनाव आयोग की मिलीभगत से ईवीएम में छेड़खानी की आशं

देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख

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समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ किसी का जिक्र किया जाता है तो वे हैं फातिमा शेख जो कि हमारे भारत देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका और सामाजिक कार्यक

बुजुर्गों की बातें

‘करोगे याद तो हर बात याद आयेगी’ की तर्ज पर बुजुर्गों की बातें भी याद आती हैं। वो बुजुर्ग इस दुनिया में तो नहीं हैं लेकिन फिर भी उनको कहना चाहता हूं कि तुम्हारी बतायी हुई बातें या तो गलत थीं या दुनि

गरीब भाजपा कार्यकर्ता की बेटी बनाम अमीर भाजपा नेता का बेटा

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दो साल से अधिक होने को हैं। अंतर्राष्ट्रीय योग और धर्मनगरी, ऋषिकेश (उत्तराखंड) के पास स्थित वनंतरा रिजार्ट में कार्य करने वाली अंकिता भंडारी की बेहद संदेहास्पद परिस्थितियों में हत्या कर दी जाती है।

नकली नोट आखिर आते कहां से हैं ?

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संसद में एक प्रश्न के उत्तर में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया 2018-19 के 2,18,650 लाख (संख्या में) 500 रुपये के नकली नोटों के मुकाबले 2022-23 में 9,11,

पितृसत्ता

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पितृसत्ता की जंजीरों में बंधी,
सपनों की दुनिया से अंधी।
आसमान छूने की ख्वाहिश,
धरती पर गिराई जाती हैं।

सेन्चुरी मिल के मजदूरों की पहलकदमी

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लालकुंआ/ उत्तराखण्ड राज्य के लालकुआं में स्थित सेन्चुरी पल्प एण्ड पेपर मिल में इन दिनों मजदूरों की पहलकदमी देखने को मिल रही है, ऐसी पहलकदमी सेन्चुरी मिल

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।