मणिपुर में राष्ट्रपति शासन

लगभग 2 वर्ष तक मणिपुर को जातीय हिंसा की आग में धकेलने के बाद अंततः राज्य के संघी मुखिया बीरेन सिंह को इस्तीफा देना पड़ा और केन्द्र सरकार को न चाहते हुए भी राज्य में राष्ट्
लगभग 2 वर्ष तक मणिपुर को जातीय हिंसा की आग में धकेलने के बाद अंततः राज्य के संघी मुखिया बीरेन सिंह को इस्तीफा देना पड़ा और केन्द्र सरकार को न चाहते हुए भी राज्य में राष्ट्
उन्नीस सौ पच्चीस में सिर्फ ऐसी घटनाएं व ऐसे संगठन ही जन्म नहीं ले रहे थे जो भारत के भविष्य की दिशा तय रहे थे बल्कि ऐसे व्यक्ति भी जन्म ले रहे थे जिन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना व्यापक अच्छा-बुरा प्रभाव छोड़ा। 9 जुलाई को एक बड़े फिल्म अभिनेता-निर्देशक गुरूदत्त का जन्म हुआ जिनकी बनाई फिल्में विश्व क्लासिक में शामिल हो गईं। 15 जुलाई को एक बड़े नाट्यकर्मी बादल सागर का जन्म हुआ तो 7 अगस्त को एम.एस.स्वामीनाथन नाम के पूंजीवादी कृषि वैज्ञानिक का जन्म हुआ। ऐसे अनेकोनेक व्यक्तियों की चर्चा की जा सकती है। ये व्यक्ति अपने युग की पैदाइश थे और ये आज के भारत की तस्वीर के एक हिस्से हैं।
बांग्लादेश शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही लगातार अशांत है। वहां नयी गठित अंतरिम सरकार में मौजूद भांति-भांति के तत्व देश को शांति की ओर नहीं बढ़ने दे रहे हैं। इस
आज के भारत में मुसलमानों को भांति-भांति से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। राज्य और संघ-भाजपा द्वारा प्रायोजित हिंसा इसका सबसे क्रूर रूप है। लेकिन इसके अलावा समाज में बढ़
मोहन भागवत, मोदी, शाह, योगी, सरमा धार्मिक ध्रुवीकरण के माहिर खिलाड़ी हैं। कोई भी ऐसा मौका नहीं होता है जहां ये अपनी चाल से बाज आते हैं।
उ.प्र की योगी सरकार फासीवादी कदमों के मामले में केन्द्र सरकार को कड़ी टक्कर दे रही है। मोदी-शाह से चार कदम आगे बढ़कर योगी सरकार ने सारे जनवादी अधिकारों को खत्म करने की ठान
हाल ही में सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा के साथ ही इसके एजेण्डे को लेकर पूंजीवादी हलकों में तरह-तरह के अनुमान लगाये जाते रहे हैं। इसी बीच सरकार द्वारा ‘
हिन्दू फासीवादियों की केन्द्रीय सरकार ने भारत के आपराधिक कानूनों को बदलने की घोषणा कर दी है। भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदल
मार्क ट्वेन के हवाले से एक कहावत है- ‘झूठ, महाझूठ और आंकड़े’। इसका आशय यह है कि आंकड़ों के जरिये कुछ भी साबित किया जा सकता है। इसीलिए आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।
पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।
उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है।
1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।