मध्य अमेरिका के एक छोटे से देश डोमिनिकन गणराज्य में राफेल ट्रुजिलो की तानाशाही थी। राफेल ट्रुजिलो को अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा पाला-पोषा गया था। 1930 से 1961 तक उसकी सैनिक तानाशाही डोमिनिकन गणराज्य में कायम थी। उस देश की तीन बहनों ने वहां की जनता के साथ मिलकर उस तानाशाह शासक की तानाशाही के खिलाफ संघर्ष किया था। इन तीन बहनों का नाम पैट्रीया मर्सिडीज मीराबल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मीराबल व एंटोनिया मारिया टेरेसा मीराबल था। इनको मिराबल बहनों के नाम से भी जाना जाता है।
मिराबल बहनें अपने देश में हो रही तानाशाही के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बनीं। इन्होंने निडर होकर तानाशाही का पुरजोर विरोध किया। जब इनका विरोध तानाशाह शासक को चुभने लगा तब राफेल ट्रुजिलो ने 25 नवंबर 1960 को इन मिराबल बहनों की निर्मम हत्या करवा दी। बाद में उस तानाशाह शासक की भी किसी हत्यारे गिरोह ने हत्या कर दी।
ये मिराबल बहनें अपने देश में तानाशाही के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गईं। ये तीन बहनें तानाशाही के खिलाफ लड़ने वाली शहीद थीं लेकिन आज इनकी राजनीतिक हत्या को आम महिला हिंसा से जोड़ दिया गया है। 1981 से ही कुछ नारीवादी संगठनों द्वारा मांग उठाई गई कि इस दिन महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाना चाहिए।
इसके बाद 7 फरवरी 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 54/134 को अपनाया और आधिकारिक तौर पर 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित कर दिया। तब से दुनिया भर के शासक औपचारिक तौर पर इसे मनाते हैं। हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र इस दिन के लिए एक थीम घोषित करता है और उसके इर्द-गिर्द दुनिया भर में तमाम आयोजन किये जाते हैं। वर्ष 2023 के लिए थीम है- ‘‘एकजुट हो! महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ हिंसा रोकने में निवेश करो।’’ इस थीम का तात्पर्य है कि महिला हिंसा को रोकने के लिए महिला अधिकार संगठनों को फंड प्रदान करो। इसी के लिए संयुक्त राष्ट्र 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर (अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस) तक 16 दिनों का कैम्पेन महिला हिंसा के खिलाफ चलाता है।
आज पूरी दुनिया में 25 नवंबर को महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। मजे की बात यह है कि जिस तानाशाही के खिलाफ लड़ते हुए मिराबल बहनों की हत्या हुई उसी तरह की तानाशाही दुनिया के तमाम देशों में थोपने वाले साम्राज्यवादी, तानाशाह शासक मिराबल बहनों की याद में महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाने का ढकोसला भी कर रहे हैं।
दुनिया के साम्राज्यवादियों, तानाशाहों ने जिस तरह 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय मजदूर महिला दिवस की अंर्तवस्तु को, उसके संघर्ष के पक्ष को खत्म कर केवल उस दिन को महिलाओं के मनोरंजन के दिन के रूप में बदलने का प्रयास किया है उसी प्रकार मिराबल बहनों के संघर्ष के पहलू को छोड़, तानाशाह द्वारा की गई हत्या को छिपाकर मिराबल बहनों की हत्या को आम महिला हिंसा के तौर पर दिखाने की कोशिश की जा रही है। जबकि यह कोई आम हिंसा नहीं बल्कि शासक द्वारा अपनी तानाशाही को बरकार रखने के लिए की गई राजनैतिक हत्या थी।
जिस प्रकार जर्मनी में पूंजीवादी शासकों के खिलाफ रोजा लग्जमबर्ग और अन्य लोग लड़ रहे थे तब शासकों द्वारा रोजा की निर्मम हत्या कर दी गई थी। लेकिन उस घटना को महिला हिंसा नहीं माना जाता है। उसी प्रकार मिराबल बहनें भी तानाशाही के खिलाफ लड़़ने वाली बहादुर योद्धा रही हैं।
आज दुनिया भर के पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासक अपनी लूट बनाये रखने के लिए अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए जो नीतियां बना रहे हैं, जो पतित उपभोक्तावादी संस्कृति समाज पर थोप रहे हैं, वो दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ाने का काम कर रही है। एक ओर शासक अपने कारनामों से मेहनतकश महिलाओं के जीवन को हर रोज दुःखमय बना रहे हैं दूसरी ओर वे महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाने का पाखण्ड कर रहे हैं। ये वही बात हो गई कि जख्म देने वाले मरहम लगाने की नौटंकी कर रहे हैं। महिला हिंसा को खत्म करने के नाम पर तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। नारे उछाल रहे हैं। ‘‘25 नवम्बर’’ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘‘महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’’ के रूप में मनाने के पीछे महिला हिंसा को खत्म करना नहीं बल्कि इसका दिखावा करना ही इनका मकसद है। जहां महिला हिंसा की समस्या इतनी विकराल है कि मात्र एक दिन ‘‘महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’’ मनाने से यह हल नहीं हो सकती। महिला हिंसा को खत्म करने का ढकोसला करने वाले महिला हिंसा के कारणों को न केवल बना कर रखे हुए हैं बल्कि उनको खाद-पानी देकर बढ़ा भी रहे हैं।
मजदूर-मेहनतकश आबादी की महिलाएं तमाम हिंसा झेलने को मजबूर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2021 की महिलाओं पर रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में हर तीन में से एक महिला अपने जीवन काल में किसी न किसी हिंसा की शिकार होती है। सबसे ज्यादा हिंसा महिलाओं को घरों में ही झेलनी पड़ती है। कई तरह की हिंसा तो ऐसी है जिनको हिंसा माना ही नहीं जाता है बल्कि वह महिलाओं के दायित्वों का हिस्सा माना जाता है।
तमाम कानून बने होने के बावजूद कन्या भ्रूण हत्यायें, पारिवारिक प्रतिष्ठा के नाम पर हत्या, दहेज हत्यायें हो रही हैं। खुद इस पूंजीवादी समाज की संस्थायें इन आंकड़ों को पेश करती हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यू एन वीमेन की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में लगभग 45,000 महिलाओं की हत्या उनके अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गयी जो कि प्रति घण्टे में पांच से अधिक महिला या लड़की की उनके घर में की जा रही हत्या के बराबर है। क्या दुनिया की सरकारें महिलाओं की इस घरेलू हिंसा के आधार को खत्म करने का काम कर रही हैं? नहीं।
तमाम महिलायें/लड़कियां अपने घरों से काम करने के लिए बाहर निकल रही हैं जहां आये दिन उनको राह चलते व अपने कार्यस्थलों पर छेड़छाड़, गालियां, भद्दी बातें सुननी पड़ती हैं। हम देख रहे हैं कि तमाम ऐसी घटनायें हो रही हैं जिसमें महिलायें/लड़कियों के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार, एसिड अटैक व निर्मम हत्यायें की जा रही हैं।
साम्राज्यवादी देश अपनी लूट-खसोट को बढ़ाने के लिए गरीब मुल्कों पर युद्ध थोपते हैं। ऐसे में उन युद्धों का दंश सबसे ज्यादा वहां की महिलाओं और बच्चों को ही झेलना पड़ता है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के सैनिकों के लिए ‘‘कम्फर्ट वूमैन’’ का इंतजाम किया गया। जिसमें सैनिकों द्वारा दिन भर युद्ध करके अपनी थकान को दूर करने तथा मनोरंजन करने के लिए उन महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता था।
भारत में राज्य खुद कई तरीकों से महिला हिंसा को न केवल शह देता है बल्कि कई दफा खुद भी राज्य के कारकून उसमें लिप्त पाये जाते रहे हैं। उ.पूर्व से लेकर कश्मीर तक भारतीय सैन्य बल महिलाओं के साथ हिंसा करते रहे हैं। देश की पुलिस महिलाओं की सुरक्षा करने के बजाय खुद थानों में महिलाओं के साथ हिंसा करती रही है। संघ-भाजपा से जुड़े नेता-विधायक सांसद तक महिला हिंसा के आरोपी रहे हैं। दंगों में महिलाओं के साथ बलात्कार की तमाम घटनायें घटती रही हैं। खेल संघों से लेकर सरकारी-निजी विभागों तक में महिलायें यौन हिंसा झेलने को मजबूर रही हैं।
इसके अलावा पूंजीपतियों को महिलाओं का सस्ता श्रम उपलब्ध कराने के लिए सरकार कानून बनाती है। महिलाओं की सुरक्षा के इंतजाम किये बिना महिलाओं से रात की पाली में काम करने का कानून पास कर दिया गया। और तो और सरकार खुद अपने सरकारी संस्थानों में महिलाओं से एक प्रकार की बेगारी करवा रही है। भोजनमाता (मिड डे मील वर्कर, रसोईया), आशा वर्कर, आंगनबाड़ी, उपनलकर्मी आदि को अपनी योजनाओं को लागू करवाने में नाम मात्र के मानदेय पर लगा रखा है।
ऐसे ही ऐसी अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति को पाला-पोषा व बढ़ावा दिया जा रहा है जो कि महिला विरोधी है। पोर्न साइट, फिल्में-गाने, अश्लील वीडियो आदि पर रोक लगाने के बजाय उनको और बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके कारण महिला हिंसा की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है। इसमें एक बात और स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है कि आम तौर पर शासक वर्ग की महिलायें इस हिंसा की शिकार नहीं होती हैं। हां, शासक वर्ग की होने के नाते ये खुद महिला उत्पीड़़न करने का काम करती हैं।
महिला हिंसा के मूल में वह मानसिकता है जो मजदूर-मेहनतकश महिलाओं को इंसान न मानकर एक वस्तु समझती है, वह वस्तु जो केवल उपभोग के लिए बनी है। हम इतिहास के हवाले से जानते हैं कि कैसे एक ऐतिहासिक प्रक्रिया में निजी सम्पत्ति पैदा हुई और उसी के साथ ऐतिहासिक प्रक्रिया में महिलाओं की गुलामी की शुरूआत हुई और गुलामी के साथ हिंसा हमेशा से जुड़ी रही है। उसी प्रकार महिला गुलामी के साथ महिला हिंसा भी जुड़ी हुई है। जब तक महिला गुलामी को खत्म नहीं किया जायेगा तब तक महिला हिंसा से मुक्ति नहीं मिल सकती। और महिलाओं की गुलामी को तभी खत्म किया जा सकता है जब निजी सम्पत्ति का खात्मा कर दिया जाये। और निजी सम्पत्ति तब तक खत्म नहीं की जा सकती जब तक इस पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त न कर दिया जाये।
इस प्रकार महिला हिंसा से मुक्ति के लिए महिलाओं को इस पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे की लड़ाई लड़नी होगी और एक नये समाज के निर्माण के लिए संघर्ष करना होगा। वह समाजवादी समाज ही है जो निजी सम्पत्ति को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ता है। महिलाओं को उजरती गुलामी, घरेलू गुलामी, सामंती व धार्मिक मूल्य-मान्यताओं की गुलामी से मुक्त कर सकता है। वही एक ऐसा समाज है जो महिलाओं को पूर्ण बराबरी व सम्मान का जीवन दे सकता है।
महिला हिंसा : कुछ आंकड़े
* दुनिया में सभी महिला हत्याओं में 56 प्रतिशत अंतरंग साझेदार या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जाती है जबकि सभी पुरुष हत्याओं में केवल 11 प्रतिशत परिवार के भीतर की जाती हैं।
* दुनिया में महिला हिंसा का अनुभव करने वाली 40 प्रतिशत से कम महिलायें ही किसी से इसका उद्घाटन या मदद लेती हैं। पुलिस व स्वास्थ्य विभाग तक जाने वाली महिलायें कुल मदद लेने वालों में 10 प्रतिशत से भी कम होती हैं। यानी 4 प्रतिशत से कम महिलायें महिला हिंसा के कानूनी उपायों तक जाती हैं।
* 2020 में दुनिया में मानव तस्करी के प्रति 10 पीड़ितों में 4 वयस्क महिलायें व 2 लड़कियां थीं। यौन शोषण के लिए तस्करी की 91 प्रतिशत पीड़ित महिलाएं थीं।