इजरायल और पश्चिमी साम्राज्यवादी
अक्सर यह सवाल उठता रहता है कि पश्चिमी साम्राज्यवादी इतनी दृढ़तापूर्वक इजरायल के समर्थन में क्यों खड़े रहते हैं?
अक्सर यह सवाल उठता रहता है कि पश्चिमी साम्राज्यवादी इतनी दृढ़तापूर्वक इजरायल के समर्थन में क्यों खड़े रहते हैं?
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया के किसी देश की संसद या राजनेताओं ने किसी नाजी हत्यारे के स्वागत का काम नहीं किया था। यहां तक कि नव फासीवादी ताकतें भी नाजी हत
अफ्रीकी देशों से लुटेरे फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों को एक-एक कर खदेड़ा जा रहा है। अब हालिया सैन्य तख्तापलट के शिकार हुए नाइजर से 1500 की संख्या में फ्रांसीसी सेना की वापसी
बुरकीना फासो, माली और नाइजर के बाद गैबन में सैनिक तख्तापलट हो गया है। ये सभी देश फ्रांस के उपनिवेश रह चुके हैं। आज भी इन देशों में फ्रांसीसी साम्राज्यवादी प्रभुत्व की स्थ
उत्तरी अफ्रीका के देश मोरक्को में 8 सितम्बर (शुक्रवार) की रात को आये भूकम्प से अब तक 3 हजार से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। हर दि
जी-20 शिखर सम्मेलन से भारत से लौटते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन वियतनाम गये। वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति की किसी देश की यात्रा सामान्य बात होती है पर वियतनाम की उनकी यात
जी-20 का दिल्ली शिखर सम्मेलन सम्पन्न हो चुका है। भारत की राजधानी दिल्ली में जनता को कैद कर सम्पन्न हुए सम्मेलन की सफलता की घोषणायें की जा रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी इसे अ
26 जुलाई के सैनिक तख्तापटल के बाद नाइजर में कई तरह ही ताकतें सक्रिय हो गयी हैं। एक तरफ, अमरीकी साम्राज्यवादी, फ्रांस और यूरोपीय संघ है। ये साम्राज्यवादी ताकतें इकोवास (पश
आज के आधुनिक तकनीक के दौर में अमेरिका सरीखे विकसित देश का एक शहर आग से खाक हो जाये और सैकड़ों लोग मारे जायें, इस बात
27 जुलाई, 1953 में अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ कोरिया लोक गणराज्य (उत्तरी कोरिया) का युद्ध विराम हो गया था। 70 वर्ष के बाद भी अभी युद्ध विराम चल रहा है। उस युद्ध का खा
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को