बेलसोनिका यूनियन को कारण बताओ नोटिस : एक राजनीतिक हमला

<p style="text-align: justify;">गुडगांव-मानेसर-धारूहेडा औद्योगिक क्षेत्र में एक कम्पनी है बेलसोनिका, जो कि मारुति सुजुकी के लिये कल-पुर्जे बनाती है। अभी हाल ही में इस कंपनी की यूनियन- बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेन्ट इंडिया एम्प्लायज यूनियन को रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा द्वारा यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की चेतावनी के साथ एक कारण बताओ नोटिस भेजा गया है, जो कि खासी चर्चा का विषय बना हुआ है।</p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल मामला यह है कि बेलसोनिका यूनियन द्वारा अगस्त, 2021 में कंपनी में कार्यरत एक ठेका मजदूर केशव राजपुर को यूनियन की सदस्यता प्रदान की गई और 2021 के आयकर रिटर्न, जो कि जुलाई, 2022 में दाखिल किया गया, में यूनियन की सदस्यता में एक मजदूर की बढ़ोत्तरी का उल्लेख भी कर दिया गया। इस पर कम्पनी प्रबंधन द्वारा यूनियन के इस कदम को गैरकानूनी बताते हुये 23 अगस्त, 2022 को रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा को एक शिकायती पत्र लिखा गया। जिस पर रजिस्ट्रार महोदय द्वारा तत्काल अमल करते हुये 5 सितम्बर, 2022 को यूनियन को एक पत्र जारी किया गया और ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने की इस कार्यवाही को यूनियन के संविधान का उल्लंघन बताते हुये यूनियन से इस पर स्पष्टीकरण मांगा गया।</p>
<p style="text-align: justify;">तदुपरान्त यूनियन ने 27 सितम्बर, 2022 को रजिस्ट्रार महोदय को जवाब दाखिल कर अपने कदम को कानून सम्मत बताया। यूनियन ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि भारत के संविधान का आर्टिकल 19 देश के सभी नागरिकों को संगठित होने का अधिकार देता है और ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 में भी यूनियन की सदस्यता में स्थाई और ठेका मजदूर का कोई विभाजन नहीं है। इसके अलावा अपने स्पष्टीकरण में यूनियन ने यह भी कहा कि यूनियन का संविधान भी कंपनी में कार्यरत किसी भी मजदूर को निर्धारित शुल्क अदा करने पर यूनियन का सदस्य बनने का अधिकार देता है और इसी के तहत ठेका मजदूर केशव राजपुर द्वारा यूनियन की सदस्यता हेतु आवेदन करने पर उन्हें यूनियन की सदस्यता प्रदान की गई है।</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन रजिस्ट्रार महोदय बेलसोनिका यूनियन द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुये और उन्होंने 26 दिसम्बर को यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की चेतावानी के साथ यूनियन को एक कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया जिसमें वे बेलसोनिका यूनियन द्वारा ठेका मजदूर को यूनियन का सदस्य बनाने की कार्यवाही को ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 की धारा 4 (1), 6 (म) और 22 का हवाला देते हुये साथ ही यूनियन के संविधान के नियम 5 का उल्लेख करते हुये गैरकानूनी करार दे रहे हैं।</p>
<p style="text-align: justify;">आइये सबसे पहले ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 के उक्त प्रावधानों पर ही एक नजर डालते हैं कि इनमें क्या लिखा है। इस अधिनियम की धारा 4 (1) कहती है कि ‘‘किसी ट्रेड यूनियन के कोई भी सात अथवा अधिक सदस्य उस ट्रेड यूनियन के नियमों पर अपने नामों के हस्ताक्षर करके तथा इस अधिनियम के रजिस्ट्रेशन सम्बन्धी प्रावधानों का अनुपालन करके इस अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन कर सकते हैं।’’ इसके बाद यह धारा कहती है कि ‘‘परन्तु किसी ट्रेड यूनियन का तब तक रजिस्ट्रेशन नहीं किया जायेगा जब तक कि ऐसे संस्थान अथवा उद्योग में जिससे वह सम्बंधित है, काम में लगे हुये अथवा नियोजित मजदूरों के कम से कम दस प्रतिशत या एक सौ, इनमें से जो भी कम हों, रजिस्ट्रेशन के लिये आवेदन किये जाने की तारीख को ट्रेड यूनियन के सदस्य न हों।’’</p>
<p style="text-align: justify;">और धारा 6(e) कहती है कि ‘‘जिस उद्योग से ट्रेड यूनियन सम्बन्धित है, उसमें वास्तव में काम में लगे हुये अथवा नियोजित मजदूर यूनियन के साधारण सदस्य होंगे। और पदाधिकारियों के रूप में उतने मानद अथवा अस्थायी सदस्य होंगे जितने ट्रेड यूनियन की कार्यकारिणी बनाने हेतु धारा 22 के तहत अपेक्षित हैं।’’
और धारा 22 कहती है कि ‘‘रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन के पदाधिकारियों की कुल संख्या के कम से कम आधे ऐसे होंगे जो कि उस उद्योग में वास्तव में काम में लगे हुये अथवा नियोजित हों’’।</p>
<p style="text-align: justify;">आइये अब यूनियन के संविधान के नियम 5 को देखते हैं कि वह क्या कहता है। नियम 5 में दर्ज है कि ‘‘मै. बेलसोनिका आटो कम्पोनेन्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड प्लाट नंबर 1, फेज 3।, आई एम टी मानेसर, गुड़गांव-122057 में कार्यरत कोई भी मजदूर यूनियन का साधारण सदस्य बन सकता है जो कि यूनियन को 50 रु. प्रतिमाह चंदा एवं 100 रु. प्रवेश शुल्क केवल एक बार यूनियन की सदस्यता के समय अदा करता हो।’’</p>
<p style="text-align: justify;">हम देखते हैं कि ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 की धारा 4(1), 6(e), 22 एवं यूनियन के संविधान के नियम 5 में कहीं कोई ऐसी बात नहीं लिखी है कि कंपनी में कार्यरत ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता नहीं दी सकती। तब फिर रजिस्ट्रार महोदय क्यों ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 का हवाला देते हुये यूनियन के कदम को गैरकानूनी बता रहे हैं और यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की धमकी दे रहे हैं?</p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल रजिस्ट्रार महोदय ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 की मनमानी एवं गलत व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं। बेलसोनिका यूनियन को जारी नोटिस में वे तर्क दे रहे हैं कि चूंकि ठेका मजदूर और स्थायी मजदूर अलग-अलग संस्थानों के मजदूर हैं इसलिये वे किसी एक यूनियन के सदस्य नहीं बन सकते और न ही उनकी कोई संयुक्त यूनियन अस्तित्व में आ सकती है। उनके अनुसार बेलसोनिका कंपनी में काम करने वाले ठेका मजदूर वास्तव में बेलसोनिका कंपनी में काम में लगे हुये नहीं हैं, कि वे मुख्य नियोक्ता द्वारा नियोजित नहीं हैं, इसलिये वे कंपनी के मजदूर नहीं हैं और कंपनी से सम्बंधित बेलसोनिका यूनियन के सदस्य नहीं बन सकते।</p>
<p style="text-align: justify;">यहां सवाल उलटे रजिस्ट्रार महोदय से बनता है कि कंपनी के गेट के भीतर, कंपनी की छत के नीचे, कंपनी की मशीनों पर कंपनी के लिये उत्पादन करने वाले ठेका मजदूर यहां तक कि सालों साल से कंपनी में काम कर रहे ठेका मजदूर भला किस कानून के तहत कंपनी के मजदूर नहीं है?</p>
<p style="text-align: justify;">दूसरे बेलसोनिका कंपनी में 693 स्थायी मजदूरों के अलावा जो करीब 700 अस्थायी मजदूर हैं, वे सभी मशीनों पर काम करते हैं। इनमें 125 ऐसे ठेका मजदूर हैं जो कि सालों-साल से ठेके के तहत काम कर रहे हैं और करीब 300 ऐसे ठेका मजदूर हैं जिन्हें कि 6 माह के लिये ही भर्ती किया जाता है, लेकिन काम मशीनों पर ही लिया जाता है। क्या स्थायी प्रकृति के कामों पर, मशीनों पर मुख्य उत्पादन में ठेका मजदूरों को नियोजित करना गैरकानूनी नहीं है? क्या यह ठेका श्रम (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम, 1970 का खुला उल्लंघन नहीं है। बेलसोनिका प्रबन्धन ठेका मजदूरों का अतिशय शोषण करता है और उन्हें स्थायी मजदूरों की तुलना में करीब एक तिहाई वेतन ही देता है। क्या यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले- समान काम का समान वेतन का सीधे सीधे उल्लंघन नहीं है? और क्या रजिस्ट्रार महोदय ने जापानी मारुति सुजुकी की जापानी वेंडर बेलसोनिका के प्रबंधन को उसके द्वारा भारत में किये जा रहे इस गैरकानूनी श्रम अभ्यास पर कभी कोई नोटिस भेजने की हिमाकत की है?</p>
<p style="text-align: justify;">यहां बेलसोनिका यूनियन के संविधान पर भी कुछ बात करना महत्वपूर्ण रहेगा। 2014 में जब बेलसोनिका यूनियन अस्तित्व में आई थी तब उसके संविधान का नियम 5 वही था जो कि आज है। लेकिन 2016 में जब यूनियन और प्रबंधन के बीच पहला समझौता हुआ, जिसमें स्थायी मजदूरों ने अपनी वेतन बढ़ोत्तरी को छोड़कर और उसके बदले 168 ठेका मजदूरों को स्थायी कराकर स्थायी और ठेका मजदूरों की एकता का शानदार उदाहरण पेश किया था, तब यूनियन ने अपनी अपरिपक्वता के चलते प्रबंधन की शर्त को स्वीकार करते हुये अपने संविधान के नियम 5 में बदलाव कर ‘‘कोई भी मजदूर.....’’ की जगह स्थायी मजदूर कर दिया था।</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन अनुभव के साथ यूनियन को अपनी गलती का अहसास हुआ और तब अक्टूबर, 2020 में यूनियन ने प्रबंधन के हमलों के विरुद्ध स्थायी एवं ठेका सभी मजदूरों के साथ लघु सचिवालय, गुड़गांव पर आठ घंटे की भूख हड़ताल कर ठेका मजदूरों को भी यूनियन का सदस्य बनाने की घोषणा की और इस हेतु यूनियन के संविधान के नियम 5 में बदलाव कर ‘‘स्थायी मजदूर...... की जगह पुनः कोई भी मजदूर दर्ज कर अनुमोदन हेतु रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा को भेजा लेकिन रजिस्ट्रार महोदय ने इसे अनुमोदित नहीं किया। लेकिन यूनियन ने हार नहीं मानी 2021 में पुनः उसी बदलाव के साथ रजिस्ट्रार महोदय को भेजा और इस बार उन्होंने इसे अनुमोदित कर दिया।</p>
<p style="text-align: justify;">अर्थात यूनियन के संविधान के जिस नियम 5 का हवाला देकर रजिस्ट्रार महोदय यूनियन के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की धमकी दे रहे हैं वह खुद उन्हीं के द्वारा अनुमोदित है और उसमें दो टूक लिखा है कि कम्पनी में काम करने वाला कोई भी मजदूर यूनियन का सदस्य बन सकता है।</p>
<p style="text-align: justify;">रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा द्वारा दिसम्बर, 2020 में बेलसोनिका यूनियन को कारण बताओ नोटिस भेजने से पहले सितम्बर, 2022 में पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगा गया था और जिस पर अपने जवाब में यूनियन ने ठेका मजदूर केशव राजपुर को यूनियन का सदस्य बनाने को भारत के संविधान के आर्टिकल 19 के तहत भी जायज ठहराया था। लेकिन अब बेलसोनिका यूनियन को भेजे कारण बताओ नोटिस में रजिस्ट्रार महोदय ने इस पर कोई बात नहीं की है। अब यह तो संभव नहीं है कि वे इससे वाकिफ न हों कि देश के संविधान के आर्टिकल 19(1)(ब) के तहत देश के सभी नागरिकों को संगठन एवं यूनियन बनाने अर्थात संगठित होने का अधिकार है। रजिस्ट्रार महोदय इससे भली-भांति वाकिफ हैं लेकिन फिर भी चुप हैं। आज जब देश की सत्ता पर काबिज फासीवादी ताकतों के निशाने पर सभी राजकीय संस्थाओं से लेकर संविधान तक सभी कुछ आ चुका है तब इतने महत्वपूर्ण मसले पर रजिस्ट्रार महोदय की यह चुप्पी समझ में आने वाली बात है।</p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल बेलसोनिका यूनियन को भेजे गये कारण बताओ नोटिस के पीछे मुख्य वजह किसी नियम-कानून का उल्लंघन न होकर मोदी सरकार की नीतियां और फैसले हैं, जिनमें मोदी सरकार द्वारा संसद से पारित कराये जा चुके घोर मजदूर विरोधी 4 नये लेबर कोड्स को लागू कराना सर्वप्रमुख है।</p>
<p style="text-align: justify;">ये 4 नये लेबर कोड्स अभी घोषित तौर पर लागू नहीं हुये हैं लेकिन विभिन्न राज्य सरकारों खासकर भाजपाई राज्य सरकारों द्वारा पिछले दरवाजे से इन्हें लागू किया जा रहा है। नये लेबर कोड्स के तहत प्रबंधन द्वारा एकतरफा छंटनी-तालाबंदी की सीमा को 100 मजदूरों से कम वाली फैक्टरियों से बढाकर 300 से कम मजदूरों वाली फैक्टरियों तक किया गया है। लेकिन नये लेबर कोड्स के लागू होने से पहले ही एकतरफा छंटनी-तालाबंदी के इस नये क़ानून को हरियाणा समेत विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लागू कर दिया गया है। इसके तहत मालिक-प्रबंधन कंपनी में स्थायी मजदूरों की संख्या किसी तरह 300 से नीचे लाकर स्थायी मजदूरों की छंटनी कर रहे हैं और यूनियनें तोड़ रहे हैं। पिछले तीन-चार साल में गुड़गांव-मानेसर-धारूहेडा औद्योगिक क्षेत्र में कई कम्पनियों में मालिक-प्रबंधन अपने इस षड्यंत्र में कामयाब हो चुके हैं। बेलसोनिका का प्रबंधन भी मजदूरों के प्रति यही षड्यंत्र कर रहा है और बेलसोनिका की यूनियन स्थायी और ठेका मजदूरों की व्यापक एकता कायम कर इस षड्यंत्र को विफल करने की कोशिशों में जुटी है।</p>
<p style="text-align: justify;">एकतरफा छंटनी-तालाबंदी की सीमा को बढ़ाना तो इन लेबर कोड्स का महज एक अंश है असल में तो ये लेबर कोड्स पूरी बीसवीं सदी में मजदूर वर्ग द्वारा अकूत संघर्षों और बलिदानों के बल पर हासिल श्रम कानूनों पर भारी आघात हैं। यह आजाद भारत में मजदूर वर्ग पर बोला गया सबसे बड़ा हमला है।</p>
<p style="text-align: justify;">इन लेबर कोड्स के लागू होने के बाद फिक्सड टर्म एम्प्लायमेंट के तहत स्थायी प्रकृति के कामों पर अस्थायी मजदूर रखे जायेंगे और प्रशिक्षुओं को कानूनन मजदूर नहीं माना जायेगा। परिणामस्वरूप स्थायी मजदूरों की यूनियनें और अधिक कमजोर हो जायेंगी। स्थायी मजदूरों की कार्यस्थल पर विशेष स्थिति और नौकरी की सुरक्षा समाप्त हो जायेगी। कानूनी तौर पर वैध हड़ताल करना असंभव प्रायः हो जायेगा और गैरकानूनी घोषित हड़तालों में शामिल मजदूरों एवं उनका सहयोग करने वाले लोगों पर भारी जुर्माने लगाये जायेंगे और उन पर गैर जमानती धाराओं में मुकदमे दर्ज होंगे।</p>
<p style="text-align: justify;">उपरोक्त के मद्देनजर एक ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देने पर रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन, हरियाणा द्वारा यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की धमकी के साथ दिया गया कारण बताओ नोटिस असल में बेलसोनिका यूनियन पर एक राजनीतिक हमला है। यदि बेलसोनिका यूनियन पर बोला गया यह हमला सफल हो गया तो यह हरियाणा और देश की बाकी जुझारू यूनियनों के हौसलों को भी प्रभावित करेगा। अतः सभी यूनियनों एवं मजदूर संगठनों को एकजुट होकर इस हमले का विरोध करना होगा। मजदूरों को स्थायी-ठेका-ट्रेनी के विभाजन को खारिज कर एवं एक फैक्टरी की एकता से ऊपर उठकर पूरे औद्योगिक क्षेत्र के स्तर पर व्यापक वर्गीय एकता कायम करने की ओर बढ़ना होगा। ठेका एवं भांति-भांति के अस्थायी मजदूरों के संगठित होने के अधिकार को व्यापक मुद्दा बनाना होगा और कारपोरेट परस्त नये लेबर कोड्स के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन विकसित करना होगा।</p>

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।