बंधकों के बहाने शरणार्थी शिविर पर क्रूर हमला

8 जून को इजराइल ने गाजा स्थित नुसेरात शरणार्थी शिविर पर अब तक का सबसे क्रूर हमला किया। इस हमले में लगभग 280 फिलिस्तीनी मारे गये व 600 घायल हो गये। गौरतलब है कि 7 अक्टूबर 23 के हमास हमले में बंधक बनाये गये लोगों की रिहाई के नाम पर यह आपरेशन इजरायली-अमेरिकी सैनिकों ने अंजाम दिया। बताया जा रहा है कि 4 बंधकों को हमास के कब्जे से रिहा कराने में इजरायली हमलावर सफल रहे। हालांकि 3 बंधकों के मारे जाने की भी बातें आ रही हैं। 
    
इस हमले के लिए इजरायली-अमेरिकी सेना ने पर्याप्त तैयारी की हुई थी। हमलावर सैनिकों ने एक शरणार्थी वाहन में छिपकर स्वास्थ्यकर्मियों की वेशभूषा में कैम्प में प्रवेश किया। उनका कैम्प में प्रवेश किसी को नजर न आये इसलिए उसी वक्त हवाई बमबारी के साथ टैंक से गोले बरसाये गये। वाहन से निकलते ही सैनिकों ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी और लगातार गोली चलाते हुए बंधकों के पास पहुंचने में कामयाब हुए। 
    
हवाई बमबारी के साथ यह जमीनी हमला इतने खतरनाक ढंग से अचानक किया गया कि गाजा के कैम्पवासियों को सचेत होने का वक्त ही नहीं मिला। 90 से अधिक इमारतें हमले में जमींदोज हो गयीं। सड़कों पर लाशों के अम्बार लग गये। ढेरों लोग जिन्दा ही बमों द्वारा पैदा किये मलबे में दब गये। मलबे से लाशें अभी भी निकाली जा रही हैं। फटेहाल व संसाधनों का अभाव झेल रहे अस्पताल में क्षमता से 4 गुना मरीज इलाज को पहुंच गये। अस्पताल की गलियों में मरीजों को लिटाने के बाद भी जब घायल मरीज बचे रहे तो उन्हें टेंट में लिटा दिया गया। अब तक लगभग 280 लोगों के मारे जाने की खबर आ रही है। 
    
इजरायली हत्यारी हुकूमत 4 बंधकों की रिहाई पर इसे सफल आपरेशन करार देकर आगे भी इसे दोहराने की बात कर रही है। जाहिर है बंधकों की रिहाई तो उसके लिए बहाना है वह किसी भी कीमत पर पूरे गाजा को खण्डहर बनाना चाहती है। 35 हजार से ऊपर लोगों का खून कर, लगभग 1 लाख लोगों को घायल कर भी उसे संतोष नहीं हुआ है वह और खून खराबे की योजना बना रहा है। 
    
इजरायल के इस खूंखार आपरेशन में अमेरिकी विमानों के साथ सैनिकों की मौजूदगी के ढेरां प्रमाण मिले हैं। पर अमेरिकी शासक इस अभियान में अमेरिकी संलिप्तता से लगातार इनकार कर रहे हैं। वे बंधकों की रिहाई पर खुशी जाहिर कर रहे हैं पर मारे गये निर्दोष फिलिस्तीनियों के प्रति एक भी संवेदना के बोल उनके मुंह से नहीं फूट रहे हैं। 
    
अमेरिकी शासक इजरायल के इस नरसंहार के पहले दिन से ही भागीदार रहे हैं। वे अभी भी लगातार इजरायल को हथियारों की खेप भेज रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वे निर्लज्जता से इजरायल का साथ दे रहे हैं। हालांकि कुछ कड़ी बातें इजरायली शासकों के प्रति कह वे अपनी जनता में यह भ्रम भी फैला रहे हैं कि वे तो दरअसल युद्ध विराम चाहते हैं। जो बाइडेन चुनावी वर्ष में अब तक न तो बंधक बनाये अमेरिकियों को छुड़वाने में सफल हुए हैं और न ही युद्ध विराम करने में ही वे सफल हुए हैं। ऐसे में उन्हें आगामी चुनाव में इसका खामियाजा उठाने का भय सता रहा है। 
    
इसी भय के चलते अमेरिकी शासक नये सिरे से युद्ध विराम का प्रस्ताव तैयार कर दोनों पक्षों से बात चला रहे हैं। स्पष्ट है कि अमेरिकी शासक दरअसल कोई युद्ध विराम नहीं चाहते। वे बस युद्ध विराम के लिए प्रयासरत नजर आना चाहते हैं। 
    
अमेरिकी शासकों की बयानबाजी के उलट वास्तविकता यही है कि वे और इजरायली शासक हमास को जड़ से खत्म कर देना चाहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि एक भी फिलिस्तीनी नागरिक जब तक जिन्दा रहेगा तब तक फिलिस्तीन का मुक्ति संघर्ष किसी न किसी रूप में जिन्दा रहेगा। अभी भले ही वे कितने निर्दोष बच्चों, महिलाओं का कत्लेआम रच लें, भविष्य में उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी।  

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।