बांग्लादेश : चिन्मय कृष्णदास की गिरफ्तारी और सैफुल इस्लाम की हत्या

/banglaadesh-chinmay-krishnadaas-ki-giraphtaari-aur-saiphul-islaam-ki-hatyaa

बांग्लादेश शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से ही लगातार अशांत है। वहां नयी गठित अंतरिम सरकार में मौजूद भांति-भांति के तत्व देश को शांति की ओर नहीं बढ़ने दे रहे हैं। इस अशांति में भारत की हिन्दू फासीवादी सरकार अपने ही ढंग से भूमिका निभा रही है। 
    
हसीना के तख्तापलट के बाद वर्षों से उसके शासन से त्रस्त लोगों ने उसकी पार्टी अवामी लीग के नेताओं, जिनमें कई हिन्दू भी थे पर हमला बोला। कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी की ओर से कुछ हमले जानबूझकर भी हिन्दुओं पर बोले गये। भारतीय मीडिया ने इसे कुछ हद तक बढ़ा चढ़ा कर पेश किया। नतीजा यह निकला कि भारत में मुसलमानों का दमन करने पर उतारू संघी सरकार बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की कहानियों को हवा देकर भारत में हिन्दू गोलबंदी में इसका इस्तेमाल करने लगी। उसकी इस हरकत से भारत-बांग्लादेश के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गये। 
    
अब बांग्लादेश में इस्कान मंदिर के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास भी भारत के प्रचार को बढ़ चढ़कर बांग्लादेश में करने लगे। हिन्दुओं के असुरक्षित होने, से लेकर अलगाववादी बातें वे बांग्लादेश में करने लगे। नतीजतन बांग्लादेश में उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया। पर वे मुकदमा दर्ज होने पर भी शांत नहीं हुए व अपना नफरती प्रचार उन्होंने जारी रखा। वे बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोत के प्रवक्ता भी थे। अंततः पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। बीते दिनों चटगांव की अदालत ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी तो कोर्ट परिसर के पास मौजूद कृष्णदास के हिन्दू समर्थक बेकाबू हो गये। पहले उन्होंने कृष्णदास को कोर्ट से जेल ले जाने में बाधा पैदा की और फिर सरकारी वकील सैफुल इस्लाम की उनके चैम्बर से खींच कर हत्या कर दी। पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की हिंसक झड़प में कई प्रदर्शनकारी भी घायल हुए हैं।   
    
दरअसल बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी व हिन्दू कट्टरपंथी ताकतें वैसे तो एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलती नजर आती हैं पर वास्तव में वे एक-दूसरे को खाद-पानी मुहैय्या करा उन्हें बढ़ने का मौका दे रही होती हैं। भारत सरकार की बयानबाजी भी अप्रत्यक्ष ढंग से इन साम्प्रदायिक ताकतों की मदद कर रही होती हैं। 
    
एक बार फिर चिन्मय कृष्णदास की गिरफ्तारी पर भारत ने नाखुशी जाहिर करते हुए वहां हिन्दू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग की है। उधर जमात-ए-इस्लामी ने सैफुल इस्लाम की हत्या की कड़ी निन्दा करते हुए इसे बांग्लादेश की सरकार को अस्थिर करने वाला कदम बताया है। सरकार पर सैफुल इस्लाम के हमलावरों पर कार्यवाही हेतु दबाव बढ़ता जा रहा है। इस तरह बांग्लादेश में साम्प्रदायिक ताकतें मजबूती ग्रहण कर रही हैं। 
    
बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार की कहानियां प्रसारित कर भारत के हिन्दू फासीवादी शासक यहां हिन्दू गोलबंदी के लिए प्रयासरत हैं। जो मोदी सरकार भारत में मुसलमान अल्पसंख्यकों पर दिन-रात अत्याचार में जुटी हो वह बांग्लादेश सरकार को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का उपदेश दे रही है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।