‘दो राज्य समाधान’ का फर्जीबाड़ा

आजकल सारी दुनिया के पैमाने पर ‘दो राज्य समाधान’ मोदी वाला जुमला बन गया है यानी एक ऐसा जुमला जो मासूम लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए दोहराया जाता है। आज इजरायल के जियनवादी शासकों के साथ खड़े दुनिया भर के शासक अपनी बेशर्म स्थिति को छिपाने के लिए कहते हैं कि वे ‘दो राज्य समाधान’ के हामी हैं यानी इजरायल के साथ फिलिस्तीन राज्य भी कायम होना चाहिए। इस जुमले को दोहराने के बाद वे कभी नहीं बताते कि यह ‘दो राज्य समाधान’ कब और कैसे हासिल होगा। 
    
जमीनी हकीकत यही है कि इजरायल एक राज्य समाधान की ओर बढ़ चुका है, और वह भी यहूदियों के लिए विशेष राज्य की ओर। उसने सारे फिलिस्तीन पर कब्जा कर रखा है। गाजा पट्टी के छोटे से इलाके को उसने कैदखाने की तरह घेर रखा था और अब उसे पूरी तरह से मिटा रहा है। वेस्ट बैंक के चप्पे-चप्पे पर उसका कब्जा है और उस इलाके में उसने साढ़े सात लाख यहूदी बसा दिये हैं। जब 1993 में ओस्लो समझौता हुआ तब भी फिलिस्तीन के हिस्से में 1948 के विभाजन का भी महज 22 प्रतिशत हिस्सा आया- गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के रूप में। अब उसका भी यह हाल है। 
    
ओस्लो समझौता कराने वाले पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने कभी भी यह कोशिश नहीं की कि यह समझौता व्यवहार में लागू हो। इस समझौते को लागू कराने की कोशिश कराने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारियों का कहना है कि इजरायल के साथ अमरीकी इसके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा रहे हैं। वे कभी नहीं चाहते थे कि यह टूटा-फूटा फिलिस्तीनी राज्य अस्तित्व में आये। 
    
असल में पिछले पचहत्तर सालों का इतिहास यह दिखाता है कि इजरायल के जियनवादी शासक तथा पश्चिमी साम्राज्यवादी शुरू से ही यह चाहते रहे हैं कि समूचे फिलिस्तीन पर इजरायल का कब्जा हो जाये। वे चाहते रहे हैं कि फिलिस्तीनियों को वहां से बाहर खदेड़ दिया जाये। इसमें वे कामयाब भी हुए हैं। आज जितने फिलिस्तीनी फिलिस्तीन में हैं लगभग उतने ही पड़ोसी मुल्कों और दुनिया भर में शरण लिए हुए हैं। अब यह साफ हो चुका है कि इजरायल का फिलिस्तीन पर वर्तमान हमला असल में गाजा पट्टी के करीब बाइस लाख फिलिस्तीनियों को वहां से सेनाई के रेगिस्तान में खदेड़ने तथा गाजा पट्टी पर पूरी तरह कब्जा करने के लिए है। हमास के हमले को इसके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसीलिए यह शक जाहिर किया जा रहा है कि नेतन्याहू ने यह हमला जान-बूझकर होने दिया। 
    
इजरायल के जियनवादी शासकों के इस मंसूबे को देखते हुए जब कोई बाइडेन, कोई सुनक या कोई मोदी यह कहता है कि वह ‘दो राज्य समाधान’ का पक्षधर है तो वह परले दरजे का फर्जीबाड़ा कर रहा होता है। वह एक ओर इजरायल के जियनवादी शासकों के एक राज्य के खूनी कदम का समर्थन कर रहा होता है तो दूसरी ओर ‘दो राज्य समाधान’ का जुमला उछाल रहा होता है। इस समय बाइडेन और सुनक जैसे शासक दृढ़तापूर्वक युद्ध विराम का विरोध कर रहे हैं। मोदी जैसे इस पर तथाकथित तटस्थता का रुख अपना रहे हैं। जियनवादी शासक जनसंहार करते हुए फिलिस्तीन पर पूर्ण कब्जा करने के लिए बढ़े जा रहे हैं और ये सब उसका समर्थन करते हुए ‘दो राज्य समाधान’ का जुमला दोहरा रहे हैं। 
    
ऐसा अक्सर होता है कि कोई अच्छी बात, कोई अच्छा विचार भयंकर अत्याचार को ढंकने का साधन बन जाता है। फिलिस्तीन के मामले में ‘दो राज्य समाधान’ इस समय यही बन गया है। इसी से क्षुब्ध होकर स्वयं इजरायल में कुछ लोग यह कहने लगे हैं कि पिछले पचहत्तर सालों से चल रहे इस ताडंव का समाधान एक ही लेकिन धर्म निरपेक्ष जनतांत्रिक राज्य में है जिसमें सभी नागरिकों को बराबर अधिकार हों।  

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।