उत्तर प्रदेश के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) आई आई टी की दूसरे साल की छात्रा के साथ छेड़छाड़ व सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक घटना हुई। छात्रा 1 नवंबर की रात को अपने एक दोस्त के साथ कालेज परिसर में घूमने निकली थी। इसी बीच बाइक पर सवार तीन अजनबी युवक उनके कैंपस में घुस आए। ये तीनों युवक डरा-धमका कर छात्रा को उसके दोस्त से अलग ले गए। बाइक सवार युवकों ने छात्रा के साथ बदसलूकी की, और उसे काफी देर तक बंधक भी बना कर रखा, उसके कपड़े उतार कर उसकी वीडियो बनाई और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया।
आई आई टी की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना से बीएचयू के छात्र दहल गए हैं। सुरक्षा के नाम पर करीब 11 करोड़ रुपये सालाना खर्च करने वाले बीएचयू में छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने समूचे पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार के छात्र-छात्राओं को हिला दिया है क्योंकि बीएचयू में सर्वाधिक छात्र-छात्राएं इसी इलाके से पढ़ने आते हैं।
इस घटना की जानकारी मिलते ही बीएचयू के हजारों आई आई टी छात्र आक्रोशित हो उठे और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन के जरिए प्रदर्शनकारी छात्रों ने छात्रा के साथ बलात्कार करने वाले युवकों की गिरफ्तारी व कालेज परिसर में सुरक्षा के इंतजाम करने आदि मांगें बीएचयू प्रशासन के सामने रखीं। काफी जद्दोजहद के बाद पीड़ित छात्रा की तहरीर पर तीन अज्ञात बाइक सवारों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई। लगभग 15 घंटे तक चले आंदोलन के बाद छात्रों की मांगें मानने का आश्वासन दिया गया जिसके बाद प्रदर्शनकारी छात्रों ने आंदोलन स्थगित कर दिया।
आंदोलन में शामिल छात्राओं के अनुसार यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी इस परिसर में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। कालेज परिसर में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। न तो स्ट्रीट लाइट ठीक रहती है, न ही सी सी टी वी कैमरे लगे हैं, न ही यहां एक भी महिला सुरक्षाकर्मी है और यहां जो सिक्योरिटी गार्ड हैं, उनसे शिकायत करो तो वे कुछ करते ही नहीं हैं।
अब बीएचयू परिसर और आई आई टी जैसे शीर्ष संस्थान भी सुरक्षित नहीं हैं। जबकि बीएचयू जैसे संस्थानों के लिए करोड़ों रुपए का बजट हर साल जारी होता है। इसके बावजूद भी छात्राओं का अपने ही शिक्षण-संस्थानों के भीतर निर्भय होकर पैदल चलना अब सुरक्षित नहीं रहा है।
इस घटना को हुए इतना समय बीत जाने के बाद भी पुलिस प्रशासन अभी तक अपराधियों को पकड़ पाने में नाकाम रहा है। इससे बीएचयू के छात्र-छात्राएं बेहद गुस्से में हैं। आठ नवंबर को हजारों छात्रों ने पुलिस प्रशासन के खिलाफ प्रतिरोध मार्च निकाला। मौके पर पहुंचे पुलिस अफसरों ने अपराधियों को पकड़ने का वादा भी किया, लेकिन जांच जहां की तहां पड़ी है।
एक तरफ तो पुलिस प्रशासन अपराधियों को पकड़ने में नाकाम है। दूसरी तरफ आईआईटी और बीएचयू परिसर को अलग कर बीच में दीवार करने की बात की जा रही है। छात्र संगठनों को आपस में लड़ाने की कोशिश की जा रही है। पुलिस बीएचयू के निर्दोष आंदोलनकारियों पर झूठे मुकदमे दर्ज कर रही है। दरअसल बीएचयू में इस घटना के बाद तीन नवंबर से लंका गेट पर कुछ जनवादी संगठनों से जुड़े छात्रों ने धरना शुरू किया था। यह आंदोलन पीड़िता को न्याय दिलाने के अलावा बीएचयू कैंपस में छात्राओं की सुरक्षा के लिए एक कमेटी का गठन करने के लिए किया जा रहा था। लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों ने आंदोलनकारियों के साथ मारपीट की। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे छात्रों के साथ पुलिस की मौजूदगी में हिंसा हुई। विद्यार्थी परिषद के अराजक तत्व छात्रों के साथ मारपीट करते रहे और सुरक्षाकर्मी चुपचाप देखते रहे। मारपीट के बाद दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बजाय निर्दोष आंदोलनकारी छात्रों पर ही संगीन धाराओं में झूठे मुकदमे दर्ज कर दिये गये।
इस तरह की कार्यवाही से छात्र काफी गुस्से में हैं। छात्रों ने पुलिस आयुक्त को एक मांग-पत्र भी दिया जिसमें छात्रों ने आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग के साथ छात्रों के खिलाफ दर्ज झूठे मामलों को रद्द करने की मांग भी उठाई और आईआईटी और बीएचयू में किसी तरह के विभाजन का विरोध किया है।
भाजपा सरकार महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देती है। लेकिन आज आए दिन लड़कियों/महिलाओं के साथ तमाम घटनाएं हो रही हैं। अगर लड़कियां ऐसे बड़े कालेज संस्थानों में भी सुरक्षित नहीं हैं, तो पढ़ेंगी कैसे? तरह-तरह के झूठे नारे देकर भाजपा सरकार देश की जनता को भरमाने की कोशिश कर रही है। दरअसल संघ-भाजपा को महिलाओं की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं है। ऐसा नहीं होता तो ब्रजभूषण, चिन्मयानंद, कुलदीप सिंह सेंगर आदि अपराधियों को संरक्षण देने का काम नहीं करती।
इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले अपराधियों को कठोर से कठोर सजा मिलनी चाहिए। लेकिन महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को महज कठोर सजा देकर नहीं रोका जा सकता है। जब तक पुरुष प्रधान मानसिकता व महिलाओं के साथ अपराध करने वाले अपराधियों को पैदा करने और उनको पालने-पोषने वाली इस पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाएगा तब तक महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा को भी नहीं रोका जा सकता है।
इसके लिए आम छात्रों, मजदूरों, महिलाओं को एकजुट होकर पुरुष प्रधान मानसिकता व पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करने की जरूरत है और ऐसे समाज को बनाने की जरूरत है जिसमें महिलाओं को बराबरी व सम्मान मिले।
कालेज परिसर में छात्राओं का यौन उत्पीड़न
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।