इजरायल द्वारा नरसंहार और अमेरिकी अरबपतियों का मीडिया कैम्पेन

गाजा शहर के अल शिफा अस्पताल में बिजली आपूर्ति बाधित होने के कारण इन्क्यूबेटर्स में नवजात एक ही बिस्तर पर, 12 नवम्बर 2023

इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी अवाम का नृशंस नरसंहार लगातार जारी है। फिलिस्तीन के अस्पतालों, स्कूलों और शरणार्थी कैम्पों में मारे जाने वाले और घायल बच्चों की तस्वीरें और वीडियो लगातार ही बाहर आ रही हैं। ये आम इंसाफ पसंद लोगों को विचलित कर रही हैं। इसकी शुरूआत तभी से हो गयी थी जब 17 अक्टूबर के इजरायली हमले में एक अस्पताल में बच्चों समेत 500 लोग मारे गए थे। इसके चलते इजरायली शासकों के खिलाफ दुनिया भर में आम जनता में नफरत काफी बढ़ी।
    
अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, रूस, पश्चिमी एशिया समेत दुनिया के कई मुल्कों में इजरायली शासकों के नरसंहार के खिलाफ जनता सड़कों पर उमड़ आयी। युद्ध बंद करने, नरसंहार रोकने तथा फिलिस्तीन को आजाद करने की मांग इन प्रदर्शनों में थी। प्रदर्शन में लाखों की तादाद में जनता सड़कों पर थी। प्रदर्शन अभी भी हो रहे हैं।
    
इजरायली शासकों के इस नरंसहार के खुले समर्थन के चलते अमेरिकी और यूरोपीय साम्राज्यवादी भी न्यायप्रिय जनता के बीच बेनकाब हुए हैं। 
    
पश्चिमी सम्राज्यवादियों जिन्होंने शुरू से ही इजरायल (इजरायली शासकों) के पीड़ित होने, अपनी आत्मरक्षा के अधिकार में हमले करने और हमास के आतंकवादी और बर्बर होने की जो फर्जी कहानी गढ़ी है वह इस बीच धुंधली हो गयी है। ये यह देखकर चिंतित हैं कि इजरायल के पक्ष में समर्थन और सहानुभूति कमजोर पड़ती जा रही है। इजरायली शासकों द्वारा किये जा रहे नरसंहार के खिलाफ अमेरिका के वाशिंगटन में 3 लाख लोगों के प्रदर्शन ने इनकी चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
       
एक बार फिर से, पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों के कई अरबपतियों ने इजरायल के पीड़ित होने और हमास के आतंकी और बर्बर होने तथा मौजूदा नरसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराने की मुहिम चला दी है। फिर से फर्जी कहानी (नैरेटिव) को स्थापित करने के लिए लाखों डालर खर्च किये जा रहे हैं।
    
इस मुहिम के लिए वालस्ट्रीट और हॉलीवुड के अरबपतियों ने 500 लाख डालर ‘मीडिया अभियान’ के लिए खर्च किये जाने की योजना बनाई है। रियलस्टेट-अरबपति बैरी स्टर्नलिच ने इजराइल में 7 अक्टूबर के हमलों के कुछ दिनों बाद अभियान शुरू कर दिया था और इसने व्यापार जगत के दर्जनों सबसे धनी लोगों में से प्रत्येक से 10 लाख डालर का चंदा मांगा।
    
अमेरिकी अरबपति बैरी स्टर्नलिच ने 50 से अधिक लोगों को ईमेल किया था जिनमें मीडिया मुगल डेविड गेफेन, निवेशक माइकल मिलकेन और नेल्सन पेल्ट्ज और तकनीकी दिग्गज एरिक श्मिट और माइकल डेल शामिल थे। ब्लूमबर्ग और फोर्ब्स के आंकड़ों के अनुसार, इन सभी की कुल संपत्ति लगभग 500 अरब डालर है। अपने ईमेल में उन्होंने लिखा, ‘‘जनता की राय निश्चित रूप से बदल जाएगी क्योंकि नागरिक फिलिस्तीनी पीड़ा के दृश्य, वास्तविक या हमास द्वारा गढ़े गए, निश्चित रूप से विश्व समुदाय में (इजराइल की) वर्तमान सहानुभूति को नष्ट कर देंगे।’’ ‘‘हमें इस व्याख्या को बदलना होगा’’।
    
इस अभियान के लिए कई मिलियन डालर जुटाए जा चुके हैं, इसे सलाह देने के लिए शीर्ष अमेरिकी सीनेटर चक शूमर और गवर्नर एंड्रयू कुओमो के पूर्व सहयोगी जोश व्लास्टो को काम पर रखा गया है और इनके द्वारा एक वेबसाइट लान्च की गयी है जिसका नाम ‘शांति के लिए तथ्य’ (िंबज वित चमंबम) है। यहूदियों की चैरिटी संस्था द्वारा भी फंड मिल रहा है। हमास को ‘इजरायल के दुश्मन के रूप में ही नहीं बल्कि अमेरिका के दुश्मन’ के बतौर दिखाने के भरपूर प्रयास हैं।
    
इस वेबसाइट से सम्बद्ध फेसबुक पेज पर इजरायल के समर्थन में और हमास के विरोध में अनर्गल वीडिया प्रसारित किये जा रहे हैं। एक वीडियो में फिलिस्तीनी लोगों को यहूदी की हत्या पर गर्व करते दिखाया गया है। एक अन्य वीडियो में इजरायल में 20 प्रतिशत अरब लोगों को समान अधिकार के साथ जीते हुए बताया गया है। एक वीडियो में हमास को महिला विरोधी साबित करने का प्रयास किया गया है। एक वीडियो में बताया गया है कि दुनिया की 8 अरब आबादी में यहूदी महज 0.2 प्रतिशत हैं व उनके इकलौते देश इजरायल को हमास खत्म करना चाहता है। एक वीडियो में हमास को बच्चों को आतंक की ट्रेनिंग देते दिखाया गया है। ऐसे ही गाजा के अस्पताल पर खुद हमास द्वारा हमले की झूठी कहानी दोहरायी गयी है। 
    
अमेरिकी अरबपति और हेज फंड प्रबंधक बिल एकमैन और अपोलो के सीईओ मार्क रोवन ने फिलिस्तीनी समर्थक छात्र प्रदर्शनों से निपटने के लिए विश्वविद्यालयों को दिए जाने वाले फंड को रोक देने की बात की और माइकल ब्लूमबर्ग ने इजराइल की गैर-लाभकारी आपातकालीन चिकित्सा सेवा को 440 लाख डालर का दान दिया। कुछ लोगों ने इजरायली सरकार की दिखावे के लिए आलोचना भी की हैः अमेरिकी अरबपति इमानुएल ने हमलों के कुछ ही दिनों बाद बेंजामिन नेतन्याहू की निंदा करते हुए कहाः ‘‘मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम इस आदमी से छुटकारा पा लें।’’ वास्तव में इस आलोचना का कोई अर्थ नहीं है।
    
अमेरिकी अरबपतियों की इजरायली शासकों के नरसंहार के पक्ष में ‘व्याख्या’ (नैरेटिव) को मनमाने ढंग से स्थापित करने की मुहिम अमेरिकी सम्राज्यवादियों के रुख को ही दिखाती है। 
    
पश्चिमी एशिया में अपने प्रभाव क्षेत्र को किसी भी कीमत पर बनाये रखने के लिए अमेरिकी शासक शुरुआत से ही इजरायली शासकों के साथ खड़े हैं और हर तरह से उसका समर्थन करते रहे हैं। यदि कुछ विशेष नहीं घटता है तो इनका आर्थिक, सामरिक और नैतिक समर्थन इजरायली शासकों के साथ आगे भी बना रहेगा।  
    
इजरायली शासक इसे जानते हैं। इजरायली शासक इसी अमेरिकी शासकों के समर्थन के दम पर फिलिस्तीन को रौंदते रहे हैं और नरसंहार करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ जो अपनी शुरूवात से ही इसी तरह के अन्य मामलों में लगभग निष्प्रभावी रहा है, उसे इजरायली शासक ठेंगा दिखाते हैं। आक्रामक ढंग से, इजरायल की मामूली आलोचना करने पर यूएन महासचिव एंतोनियो गुतारेस के इस्तीफे की मांग करते हैं।
 

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।