इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी अवाम का नृशंस नरसंहार लगातार जारी है। फिलिस्तीन के अस्पतालों, स्कूलों और शरणार्थी कैम्पों में मारे जाने वाले और घायल बच्चों की तस्वीरें और वीडियो लगातार ही बाहर आ रही हैं। ये आम इंसाफ पसंद लोगों को विचलित कर रही हैं। इसकी शुरूआत तभी से हो गयी थी जब 17 अक्टूबर के इजरायली हमले में एक अस्पताल में बच्चों समेत 500 लोग मारे गए थे। इसके चलते इजरायली शासकों के खिलाफ दुनिया भर में आम जनता में नफरत काफी बढ़ी।
अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, रूस, पश्चिमी एशिया समेत दुनिया के कई मुल्कों में इजरायली शासकों के नरसंहार के खिलाफ जनता सड़कों पर उमड़ आयी। युद्ध बंद करने, नरसंहार रोकने तथा फिलिस्तीन को आजाद करने की मांग इन प्रदर्शनों में थी। प्रदर्शन में लाखों की तादाद में जनता सड़कों पर थी। प्रदर्शन अभी भी हो रहे हैं।
इजरायली शासकों के इस नरंसहार के खुले समर्थन के चलते अमेरिकी और यूरोपीय साम्राज्यवादी भी न्यायप्रिय जनता के बीच बेनकाब हुए हैं।
पश्चिमी सम्राज्यवादियों जिन्होंने शुरू से ही इजरायल (इजरायली शासकों) के पीड़ित होने, अपनी आत्मरक्षा के अधिकार में हमले करने और हमास के आतंकवादी और बर्बर होने की जो फर्जी कहानी गढ़ी है वह इस बीच धुंधली हो गयी है। ये यह देखकर चिंतित हैं कि इजरायल के पक्ष में समर्थन और सहानुभूति कमजोर पड़ती जा रही है। इजरायली शासकों द्वारा किये जा रहे नरसंहार के खिलाफ अमेरिका के वाशिंगटन में 3 लाख लोगों के प्रदर्शन ने इनकी चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
एक बार फिर से, पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों के कई अरबपतियों ने इजरायल के पीड़ित होने और हमास के आतंकी और बर्बर होने तथा मौजूदा नरसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराने की मुहिम चला दी है। फिर से फर्जी कहानी (नैरेटिव) को स्थापित करने के लिए लाखों डालर खर्च किये जा रहे हैं।
इस मुहिम के लिए वालस्ट्रीट और हॉलीवुड के अरबपतियों ने 500 लाख डालर ‘मीडिया अभियान’ के लिए खर्च किये जाने की योजना बनाई है। रियलस्टेट-अरबपति बैरी स्टर्नलिच ने इजराइल में 7 अक्टूबर के हमलों के कुछ दिनों बाद अभियान शुरू कर दिया था और इसने व्यापार जगत के दर्जनों सबसे धनी लोगों में से प्रत्येक से 10 लाख डालर का चंदा मांगा।
अमेरिकी अरबपति बैरी स्टर्नलिच ने 50 से अधिक लोगों को ईमेल किया था जिनमें मीडिया मुगल डेविड गेफेन, निवेशक माइकल मिलकेन और नेल्सन पेल्ट्ज और तकनीकी दिग्गज एरिक श्मिट और माइकल डेल शामिल थे। ब्लूमबर्ग और फोर्ब्स के आंकड़ों के अनुसार, इन सभी की कुल संपत्ति लगभग 500 अरब डालर है। अपने ईमेल में उन्होंने लिखा, ‘‘जनता की राय निश्चित रूप से बदल जाएगी क्योंकि नागरिक फिलिस्तीनी पीड़ा के दृश्य, वास्तविक या हमास द्वारा गढ़े गए, निश्चित रूप से विश्व समुदाय में (इजराइल की) वर्तमान सहानुभूति को नष्ट कर देंगे।’’ ‘‘हमें इस व्याख्या को बदलना होगा’’।
इस अभियान के लिए कई मिलियन डालर जुटाए जा चुके हैं, इसे सलाह देने के लिए शीर्ष अमेरिकी सीनेटर चक शूमर और गवर्नर एंड्रयू कुओमो के पूर्व सहयोगी जोश व्लास्टो को काम पर रखा गया है और इनके द्वारा एक वेबसाइट लान्च की गयी है जिसका नाम ‘शांति के लिए तथ्य’ (िंबज वित चमंबम) है। यहूदियों की चैरिटी संस्था द्वारा भी फंड मिल रहा है। हमास को ‘इजरायल के दुश्मन के रूप में ही नहीं बल्कि अमेरिका के दुश्मन’ के बतौर दिखाने के भरपूर प्रयास हैं।
इस वेबसाइट से सम्बद्ध फेसबुक पेज पर इजरायल के समर्थन में और हमास के विरोध में अनर्गल वीडिया प्रसारित किये जा रहे हैं। एक वीडियो में फिलिस्तीनी लोगों को यहूदी की हत्या पर गर्व करते दिखाया गया है। एक अन्य वीडियो में इजरायल में 20 प्रतिशत अरब लोगों को समान अधिकार के साथ जीते हुए बताया गया है। एक वीडियो में हमास को महिला विरोधी साबित करने का प्रयास किया गया है। एक वीडियो में बताया गया है कि दुनिया की 8 अरब आबादी में यहूदी महज 0.2 प्रतिशत हैं व उनके इकलौते देश इजरायल को हमास खत्म करना चाहता है। एक वीडियो में हमास को बच्चों को आतंक की ट्रेनिंग देते दिखाया गया है। ऐसे ही गाजा के अस्पताल पर खुद हमास द्वारा हमले की झूठी कहानी दोहरायी गयी है।
अमेरिकी अरबपति और हेज फंड प्रबंधक बिल एकमैन और अपोलो के सीईओ मार्क रोवन ने फिलिस्तीनी समर्थक छात्र प्रदर्शनों से निपटने के लिए विश्वविद्यालयों को दिए जाने वाले फंड को रोक देने की बात की और माइकल ब्लूमबर्ग ने इजराइल की गैर-लाभकारी आपातकालीन चिकित्सा सेवा को 440 लाख डालर का दान दिया। कुछ लोगों ने इजरायली सरकार की दिखावे के लिए आलोचना भी की हैः अमेरिकी अरबपति इमानुएल ने हमलों के कुछ ही दिनों बाद बेंजामिन नेतन्याहू की निंदा करते हुए कहाः ‘‘मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम इस आदमी से छुटकारा पा लें।’’ वास्तव में इस आलोचना का कोई अर्थ नहीं है।
अमेरिकी अरबपतियों की इजरायली शासकों के नरसंहार के पक्ष में ‘व्याख्या’ (नैरेटिव) को मनमाने ढंग से स्थापित करने की मुहिम अमेरिकी सम्राज्यवादियों के रुख को ही दिखाती है।
पश्चिमी एशिया में अपने प्रभाव क्षेत्र को किसी भी कीमत पर बनाये रखने के लिए अमेरिकी शासक शुरुआत से ही इजरायली शासकों के साथ खड़े हैं और हर तरह से उसका समर्थन करते रहे हैं। यदि कुछ विशेष नहीं घटता है तो इनका आर्थिक, सामरिक और नैतिक समर्थन इजरायली शासकों के साथ आगे भी बना रहेगा।
इजरायली शासक इसे जानते हैं। इजरायली शासक इसी अमेरिकी शासकों के समर्थन के दम पर फिलिस्तीन को रौंदते रहे हैं और नरसंहार करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ जो अपनी शुरूवात से ही इसी तरह के अन्य मामलों में लगभग निष्प्रभावी रहा है, उसे इजरायली शासक ठेंगा दिखाते हैं। आक्रामक ढंग से, इजरायल की मामूली आलोचना करने पर यूएन महासचिव एंतोनियो गुतारेस के इस्तीफे की मांग करते हैं।
इजरायल द्वारा नरसंहार और अमेरिकी अरबपतियों का मीडिया कैम्पेन
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को