गाजा में डोनट पकाना एक जीत क्यों है? -वेजदान बाजदी अबू शम्माला

मैं जिस शहर में रहता हूं वह युद्ध नहीं लड़ रहा है। उस पर नरसंहार और अत्याचार हो रहे हैं। 
    
ये नरसंहार हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गये हैं। आज मैं सिर्फ एक दिन के बारे में लिख रहा हूं, हालांकि दर्द इतना बड़ा है कि यह एक साल जैसा लगता है। मेरा दिन सुबह सात बजे शुरू होता है। जब मैं जागता हूं, तभी से यह एक संघर्ष है। 
    
हमें पीने के लिए और खुद की साफ-सफाई करने के लिए पानी की तलाश करनी चाहिए। यह एक ऐसी चीज है जो हर दिन के साथ और अधिक थका देने वाली होती जा रही है। 
    
पानी की तलाश से होने वाली थकान का वर्णन करने के लिए मैं चाहे जिस भी शब्द का इस्तेमाल करूं, वे पर्याप्त नहीं हैं। 
    
हम बाल्टियां भरते हैं, हम बोतलें भरते हैं, हम उन्हें घर ले आते हैं। हम इसे हर दिन दोहराते हैं। 
    
हमारा दूसरा काम रोटी सेंकना है, हम आपस में काम बांट लेते हैं। 
    
हममें से एक आटा तैयार करता है, दूसरा उससे रोटियां बनाता है। हम आग में डालने के लिए रोटियां तैयार करते हैं। 
    
हमारे पास ईंधन नहीं है, इसलिए हमें बाहर आग पर खाना बनाना पड़ता है। धुंआ हमारी त्वचा और फेफड़ों को जला देता है। इससे हमारी आंखों में पानी आ जाता है और हमारा गला खराब हो जाता है। 
    
यह काफी चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन हमें इजरायली गोलाबारी से भी बचना होता है। ऐसे लगता है जैसे इजरायली बमों की आवाज कभी बंद नहीं होगी। 
    
डर एक निरंतर साथी है, हम छर्रे लगने से बचने की उम्मीद में सिर झुकाकर काम करते हैं। 
    
गोलाबारी की आवाजें सभी दिशाओं से आती हैं और हम कभी भी नहीं जानते कि अगला बम कहां गिरेगा। 
    
हम अपना काम जल्द से जल्द पूरा करने के लिए उत्साह के साथ लगे रहते हैं ताकि हम घर लौट सकें और बच्चों को खाना खिला सकें। बच्चे भूखे हैं और हमें जो भी खाना मिले, वे उसका इंतजार कर रहे हैं। 
    
पेट भरने के लिए हम अक्सर डिब्बाबंद भोजन पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि हमारे पास यही सब कुछ है। 
डोनट्स
    
उस दिन, जब हमने रोटी खा ली तो मेरी 5 वर्षीय बहन मेरी मां की ओर मुड़़ी और बोली,‘‘मैं डोनट खाना चाहती हूं। कृपया मेरे लिए एक, यहां तक कि केवल एक ही बना दीजिए।’’
    
मेरी मां ने चुपचाप हमारी ओर देखा। भोजन की कमी के कारण डोनट असम्भव लग रहा था। 
    
कुछ सेकंड के बाद, उसने कहा,‘‘हम बच्चों के लिए कुछ डोनट्स बनायेंगे। 
    
यह सुनकर हम सभी को खुशी हुई। हमने डेढ़ महीने से कोई मिठाई, कुकीज या चाकलेट नहीं खाई थी। 
    
जब हमने सामान इकट्ठा किया और खाना पकाना शुरू किया तो हम बहुत उत्साहित थे। ऐसे लगा जैसे हम किसी जिन्न द्वारा हमारी इच्छा पूरी होने की आशा कर रहे थे। 
    
बेकिंग का काम हल्का लगा और हम जल्दी से आगे बढ़ गये। 
    
हवा ताजे आटे और चीनी की गंध से भर गयी थी। 
    
हम डोनट्स पकाना लगभग खत्म ही कर चुके थे कि तभी एक इजरायली गोलाबारी से घर की नींव हिल गयी। 
    
हवा में धूल भर गयी और बच्चे चिल्लाने लगे। हम सब एक साथ इकट्ठे हुए। 
    
फिर जब हमें अहसास हुआ कि लोग किराने की दुकान पर घर से बाहर थे तो डर वास्तव में कम हो गया। 
    
हमने उन्हें ढूंढने के लिए अपने कपड़े पहने। हम दहशत में थे, हमारे चेहरों पर डर जम गया था। 
    
हम उनकी तलाश में सड़कों पर घूमते रहे। 
    
जब हमने उन्हें पाया तो हम सभी को राहत महसूस हुई। हम खुद को शांत करने की कोशिश करते हुए घर लौट आये।     
    
बच्चे अभी भी डोनट्स चाहते थे। हमने उन्हें खुशी देने के लिए अपने डर और दुख को दफनाने की कोशिश की। 
    
हमने डोनट्स खत्म कर दिया और उनकी खुशी ने हमारी आत्मा को संतुष्ट कर दिया। 
    
गाजा में अब ऐसी है जिंदगी, छोटी-छोटी चीजें, जीवन की मूलभूत आवश्यकतायें, अब अलंघ्य इच्छायें लगने लगी हैं। 
    
यह तो बस एक झलक है कि आज गाजा में कितना दर्द है, लोग कितनी तकलीफें हर दिन झेल रहे हैं।       

(5 जनवरी, 2024 द इलेक्ट्रोनिक इंतिफादा से साभार) 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को