अमेरिकी कर्ज संकट

संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सरकार के कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाने की संभावना पर काफी चर्चा हो रही है। स्वयं अमेरिका की वित्तमंत्री जैनेट मेलेन दुनिया पर एक बड़े खतरे के मंडराने को लेकर चेतावनी दे रही हैं। वह कह रही हैं कि इतिहास में पहली बार अमेरिका के कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाने पर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए काफी बुरे दुष्प्रभाव पैदा होंगे। वे कह रही हैं कि इससे सरकार अपने खर्चों को उठाने में असमर्थ हो जाएगी जिससे सरकारी कर्मचारियों की बड़ी संख्या के लिए जीविकोपार्जन का संकट पैदा हो जाएगा। साथ ही सरकारी काम काज ठप पड़ जाने की वजह से ढ़ेर सारी अन्य समस्याएं पैदा होंगी। 

इतनी सारी डरावनी बातें करने के साथ उन्हें उम्मीद है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी से कोई समझौता हो जाएगा और यह संकट टल जाएगा। इसी तरह की उम्मीद स्वयं राष्ट्रपति बाइडेन और हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव के रिपब्लिकन अध्यक्ष केविन मैकार्थी ने जताई है। इन दोनों के बीच वार्ता जारी है। इनके बीच समझौता हो जाने पर सरकार द्वारा लिए जा सकने वाले कर्ज की सीमा बढ़ा दी जाएगी और दुनिया पर मंडरा रहे खतरों से दुनिया को बचा लिया जाएगा। बस इसकी कीमत जनता को अपने पर होने वाले खर्चों में कटौती के रूप में चुकानी पड़ेगी। 
    

अमेरिकी कर्ज संकट है क्या? अमेरिकी सरकार कितना कर्ज ले सकती है इसकी सीमा तय होती है। वर्तमान में यह सीमा 31,400 अरब डॉलर है। इस वर्ष की शुरूआत में अमेरिकी सरकार के कर्जे इस सीमा तक पहुंच गये। लेकिन सरकार के आय के व्यय से कम होने की वजह से सरकार का काम और कर्ज लिए बिना नहीं चल सकता। अनुमान है कि अगले दस वर्ष तक अमेरिकी सरकार पर कर्जे 1300 अरब डालर प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ेंगे। ऐसे में 1 जून से पहले कर्ज लेने की सीमा को या तो बढ़ाया जाना या निलंबित किया जाना आवश्यक हो गया है। 
    

सरकारी कर्ज की सीमा को बढ़ाना अमेरिका में कोई नयी बात नहीं है। आम तौर पर अमेरिकी कांग्रेस की दोनों पार्टियां डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी आपसी सहमति से अनेकों बार इस सीमा को बढ़ा चुकी हैं। ऐसे मामलों में गतिरोध यदा-कदा कभी पैदा हुआ है जब राष्ट्रपति एक पार्टी का हो और कांग्रेस के किसी सदन में बहुमत दूसरी पार्टी का हो। ऐसा ही एक गतिरोध 1995-96 में राष्ट्रपति क्लिंटन के काल में पैदा हुआ था। रिपब्लिकन पार्टी द्वारा सरकारी कर्ज की सीमा बढ़ाने से इंकार करने की वजह से इस दौरान दो बार 5 दिन और 21 दिन का शटडाउन हुआ था। पहली बार 8 लाख सरकारी कर्मचारियों और दूसरी बार 2 लाख 84 हजार सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा गया। इस शटडाउन की वजह से रिपब्लिकन पार्टी की छवि खराब हुई और इसका फायदा उठाकर क्लिंटन दुबारा राष्ट्रपति बने। 
    

2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव होना है। ऐसे में कम ही संभावना है कि रिपब्लिकन पार्टी कर्ज सीमा को बढ़ाने में बहुत ज्यादा अड़ंगा डाले। रिपब्लिकन पार्टी कर्ज सीमा बढ़ाने के लिए जो शर्तें रख रही है वे राष्ट्रपति बाइडेन के लिए भी कोई परेशानी नहीं पैदा करने वाली हैं। रिपब्लिकन पार्टी की मांग है कि भोजन और आवास भत्तों में कटौती की जाए, कोरोना काल में शुरू किए गये राहत कार्यक्रमों में कटौती की जाए आदि। डेमोक्रेटिक पार्टी को इन कटौतियों से कोई गुरेज नहीं है, बशर्ते कि इसका चुनावी नुकसान उन्हें न उठाना पड़े। इस दौरान वित्त मंत्री ने पहले से ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पेंशन फंड को भुगतान बंद कर रखा है। बैंक बेलआउट, कर्जों पर ब्याज और रक्षा खर्च जो कि सरकारी खर्चों का बड़ा हिस्सा हैं, इनमें कटौती करने की बात करने की उम्मीद किसी भी शासक वर्गीय पार्टी से नहीं की जा सकती। 
    

अमेरिका का बढ़ता सरकारी कर्ज तमाम हो हल्ले के बावजूद तात्कालिक तौर पर अमेरिकी शासकों के लिए कोई वास्तविक चिंता का विषय नहीं है। इसका इस्तेमाल वे जनता को और ज्यादा निचोड़ने के लिए कर रहे हैं। लेकिन दूरगामी तौर पर बढ़ता सरकारी कर्ज अमेरिकी व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। 
    

2001 के बाद से सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के बतौर अमेरिकी सरकार का कर्ज लगातार बढ़ता गया है। पहले अफगानिस्तान और इराक के खिलाफ युद्ध, फिर 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट और फिर कोरोना महामारी ने इस कर्ज को अत्यन्त ऊंचे स्तर पर पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई है। 2020 में सरकारी कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 129 प्रतिशत तक पहुंच गया। 2022 में यह कुछ कम होकर 123 प्रतिशत पर है, पर अभी भी द्वितीय विश्व युद्ध के अत्यन्त ऊंचे स्तर से भी ऊंचा है। 
    

अमेरिकी सरकारी कर्जों का यह ऊंचा स्तर कभी भी वैश्विक वित्त व्यवस्था को संकट में डाल सकता है। तात्कालिक तौर पर भी अमेरिकी जनता को महंगाई और कटौतियों के रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। 

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