अमेरिका में मैने प्रांत के लिविस्टन में एक बंदूकधारी ने सड़क पर उतर कर 16 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार डाला। पुलिस बंदूकधारी की तलाश में जुटी है। हमलावर अमेरिकी सेना के रिजर्व प्रशिक्षण केन्द्र में आग्नेय अस्त्र प्रशिक्षक के रूप में तैनात था।
अमेरिका में किसी व्यक्ति द्वारा बगैर किसी वजह लोगां पर गोलियां चला उनकी जान लेना एक परिघटना बन चुकी है। इस वर्ष इस तरह की 565 घटनायें हो चुकी हैं। हर 5 वयस्क अमेरिकियों में से एक का कोई न कोई परिजन इस तरह की गोलीबारी या आत्महत्या का शिकार हो चुका है। कभी कोई व्यक्ति बाजार-सार्वजनिक जगहों पर गोली बरसाने लगता है। कभी कोई अपनी व्यक्ति अपनी ही कनपटी पर बंदूक रख अपनी जान ले लेता है।
अमेरिकी समाज में इस तरह की बढ़ती गोलीबारी की घटनाओं पर बहस भी मौजूद रही है। पर यह बहस ज्यादातर ऊपर लक्षणों पर केन्द्रित रही है। समस्या के मूल तक जाने की हिम्मत कोई नहीं करता रहा है। अमेरिका में बंदूकों की बिक्री व लाइसेंस लेना अपेक्षाकृत आसान है। ऐसे में बहस इस पर केन्द्रित रही है कि आत्मरक्षा के लिए लोगों को बंदूक रखने का अधिकार है या ऐसी घटनायें रोकने के लिए नागरिकों के लिए बंदूक की उपलब्धता कठिन बना दी जानी चाहिए। अमेरिकी मीडिया हर ऐसे गोलीकांड के वक्त बंदूक आसानी से मिले या कठिनाई से इस पर बहस चला मूल समस्या पर पर्दा डालता रहा है।
अमेरिकी साम्राज्यवाद दुनिया का सबसे बड़ा हथियार उद्योग चलाता है। अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक काम्पलैक्स द्वारा हर वर्ष अरबों डालर के नये हथियार-तोपें-गोला बारूद उत्पादित होता है। अमेरिका द्वारा इनका न केवल दुनिया भर में निर्यात होता है बल्कि इन हथियारों के जरिये सामरिक धमकी के जरिये अमेरिकी साम्राज्यवादी अपना वैश्विक वर्चस्व बचाये रखना चाहते हैं। इतना ही नहीं वे दुनिया में हर वर्ष कहीं बम गिराकर, किसी देश पर हमला करके अनगिनत निर्दोष लोगों को मारते रहते हैं। कभी-कभी तो वे युद्धरत दोनों पक्षों को हथियार सप्लाई करते पाये जाते हैं। कुल मिलाकर वे हथियार बना दबंगई व धंधा दोनों करते हैं।
जो काम अमेरिकी शासक बाकी दुनिया के साथ करते हैं यानी अपने हित में कहीं भी बम बरसा देना- युद्ध छेड़ देना- निर्दोषों का कत्लेआम रचना; वही काम अमेरिकी-छात्र-युवा-नागरिक बगैर किसी वजह यूं ही अपने ही नागरिकों पर दोहराने लगते हैं। कभी कोई छात्र स्कूल में गोली चलाने लगता है तो कोई शापिंग माल को ही गोलीकांड करने की जगह बना लेता है।
इण्टरनेट में हिंसा पर आधारित वीडियो गेम, बंदूक की आसान उपलब्धता, अमेरिकी समाज में बढ़ रहा व्यक्तिवाद, अकेलापन हर रोज नागरिकों-युवा पीढ़ी को अवसाद की ओर ले जाता है। इसी अवसाद के शिकार लोग बंदूक उठा दूसरों को या खुद को बेवजह मारने लगते हैं। अमेरिका द्वारा छेड़े युद्धों को टीवी चैनल मनोरंजन के बतौर पेश करते हैं उसमें हो रही जनता की मौतों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं पैदा करते। तो ऐसे में अमेरिकी युवा टीवी के मनोरंजन को अपनी आंखों के सामने खुद पैदा करने की ओर बढ़ जाते हैं।
जब तक अमेरिकी साम्राज्यवादियों के रक्तरंजित कारनामे दुनिया में खून बहाते रहेंगे तब तक पलट कर खून के छींटे अमेरिका पर भी बरसते रहेंगे। कभी वह ट्विन टावर हमले के रूप में तो कभी अपने ही नागरिकों पर गोलीबारी के रूप में होते रहेंगे।
ऐसे में अमेरिकी साम्राज्यवाद के नाश के बगैर ये हमले नहीं रुक सकते। अमेरिकी जनता ही अमेरिका को क्रांति के जरिये बेहतर समाज की ओर बढ़ा सकती है साथ ही ऐसे हमलों को स्थायी तौर पर रोक सकती है।
अमेरिकी साम्राज्यवादी और बंदूक संस्कृति
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को