शहीद अशफाक उल्ला खां अमर रहे!

रुद्रपुर/ 22 अक्टूबर को रुद्रपुर में काकोरी काण्ड के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की 123 वीं जयंती के अवसर पर खेड़ा स्थित शहीद अशफाक उल्ला खां पार्क में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र एवं प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र के बैनर तले मजदूर, महिलाएं, बच्चे एवं क्षेत्रवासी उक्त कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे और हर्षोल्लास के साथ उनकी जयंती मनाई।
    
कार्यक्रम की शुरुआत में अमर शहीद अशफाक उल्ला खां के फोटो पर माल्यार्पण किया गया और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।
    
श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने बताया कि भारत की आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए धन जुटाने के उद्देश्य के तहत अशफाक उल्ला खां, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी समेत 10 क्रांतिकारियों ने काकोरी नामक स्थान पर अंग्रेजों द्वारा ट्रेन से ले जाये जा रहे सरकारी खजाने को लूटा था। जिसके आरोप में अंग्रेज सरकार द्वारा 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी थी, जिनमें 17 दिसंबर 1927 को राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को व 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खां, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिह को फांसी पर चढ़ा दिया था। अशफाक उल्ला खां ने महज 27 साल की उम्र में भारत की आजादी के संघर्ष में हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इस प्रकार से एक मुसलमान अशफाक उल्ला खां एवं एक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को एक ही दिन सूली पर चढ़ाया गया और दोनों की दोस्ती हमेशा के लिए अमर हो गई। और हिन्दू-मुस्लिम एकता की एक मिशाल बन गई।
    
वक्ताओं ने कहा कि एक समय शाहजहांपुर में मंदिर पर हमला कर रही भीड़ को अशफाक उल्ला खां ने अपनी जान पर खेलकर खदेड़ा था। भारत को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने में जुटे अशफाक उल्ला खां एवं पंडित रामप्रसाद को एक ही कमरे में पूजा करने एवं नमाज पढ़ने में कोई समस्या न थी। किन्तु आज पूरे देश भर में मंदिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम एवं सिख आदि के नाम पर उन्माद फैलाया जा रहा है। सांप्रदायिक दंगे आये दिन करवाये जा रहे हैं और इंसानियत को शर्मसार किया जा रहा है।
    
आज अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों के हित में भाजपा-आरएसएस नीत सरकार द्वारा मजदूरों, किसानों, बेरोजगारों, छात्रों, अल्पसंख्यकों आदि के खिलाफ काले कानूनों का अंबार लगाया गया है। वहीं जनता अपने रोजी-रोटी रोजगार एवं सम्मानजनक जीवन के अधिकार के लिए एकजुट न हो सके, इसलिए मंदिर-मस्जिद एवं हिन्दू-मुस्लिम आदि के नाम पर उन्माद पैदा कर शासक संघर्ष की दिशा को भटका रहे हैं। इसलिए हमें इससे सावधान होना होगा और उन शैतानी ताकत को नेस्तनाबूत करना होगा और अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की क्रांतिकारी विरासत पर चलना होगा।
    
सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि 19 दिसंबर 2023 को अशफाक उल्ला खां जी के बलिदान दिवस पर जुझारू कार्यक्रम किया जायेगा।
    
श्रद्धांजलि सभा का संचालन क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के शिवदेव सिंह ने किया। सभा को इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मजदूर सहयोग केन्द्र, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, इन्टरार्क मजदूर संगठन पंतनगर, ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर, इन्टरार्क मजदूर संगठन किच्छा, यजाकि वर्कर यूनियन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं, समाजसेवी सुब्रत विश्वास, साजिद, अख्तर अली, आदि लोगों ने संबोधित किया। -रुद्रपुर, संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।