अयोध्या : एक रियल इस्टेट नगरी

औद्योगिक घरानों से लेकर धर्म गुरुओं तक और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से लेकर नौकरशाहों तक सभी आजकल सरयू में नहाकर भारी पुण्य कमा रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार नवंबर, 2019 में राम मंदिर के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से लेकर मार्च, 2024 के बीच राम मंदिर के 15 किलोमीटर के दायरे में जमीनों की खरीद-फरोख्त के मामलों में 30 प्रतिशत तक उछाल आया है, जो कि संभव है और भी अधिक हो। धार्मिक नगरी अयोध्या तेजी से एक रियल इस्टेट नगरी के रूप में विकसित हो रही है।
    
जिस अयोध्या में 14 किलोमीटर लम्बा रामपथ बनाने के लिये कई हजार मकानों और दुकानों को बुलडोजर से ढहाकर गरीब जनता के सिर की छत और आजीविका को सरकार ने छीन लिया, उसी अयोध्या में अब अमीर लोगों द्वारा     कृषि और आवासीय भूमि को खरीदने की होड़ मची है। इसका कारण एकदम स्पष्ट है और वह यह कि सरकार अयोध्या को धार्मिक पर्यटन के केन्द्र के रूप में विकसित कर रही है। ऐसे में यहां होटल-रिसोर्ट खुलेंगे एवं पर्यटन से जुड़ी अन्य गतिविधियां भी बढ़ेंगी, तो जाहिर है जमीनों के दाम भी बढ़ेंगे और रियल इस्टेट का धंधा भी फलेगा-फूलेगा।
    
इसलिये मौके का फायदा उठाते हुये पूंजीपति वर्ग के विभिन्न लोग अयोध्या में जमीन की खरीद-फरोख्त की इस होड़ में शामिल हो चुके हैं। इनमें शामिल हैं- अडानी समूह, लोढ़ा समूह, गलगोटिया होटल एंड रिसोर्ट, व्यक्ति विकास केंद्र के श्री श्री रवि शंकर, हरियाणा सरकार द्वारा संचालित योग-आरोग्य के चेयरमैन जयदीप आर्या, जो कि बाबा रामदेव के पुराने सहयोगी हैं और राकेश मित्तल, जो कि बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान ट्रस्ट में शामिल हैं। इसके अलावा इस सूची में अरुणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और उनके सुपुत्र, भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह के सुपुत्र, उत्तर प्रदेश एस टी एफ के चीफ अमिताभ यश की माताजी, उत्तर प्रदेश के गृह उपसचिव संजीव गुप्ता की धर्मपत्नी, उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक अरविन्द पांडेय और उनकी पत्नी ममता पांडेय, जो कि बस्ती से भाजपा की नेता हैं और अयोध्या में 2022 में खुले होटल रामायना की मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं। साथ ही, अलीगढ के एस पी के पिताजी, जो कि कांग्रेस के नेता हैं और उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व डी जी पी यशपाल सिंह की पत्नी, जो कि समाजवादी पार्टी से विधायक रह चुकी हैं एवं बहुजन समाज पार्टी के पूर्व विधायक जितेन्द्र कुमार उर्फ बबलू भैया के भाईजान इत्यादि-इत्यादि भी शामिल हैं।
    
चूंते मंदिर में छतरी लगाकर बैठे रामलला बहुत हैरानी भरी निगाहों से पूंजी के इन छोटे-बड़े मालिकों को अपना धंधा चमकाते देख रहे हैं।
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।