बेल्जियम में किसानों का ट्रैक्टर मार्च

अक्सर हम भारत में किसानों के अपने आंदोलन के लिए ट्रैक्टर मार्च की खबरें सुनते रहते हैं। पर किसानों या खेती की दुर्दशा केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। हर उस जगह जहां किसान अपेक्षाकृत छोटी जोतों पर खेती कर रहे हैं, परेशान हाल हैं। यूरोप के किसानों की स्थिति भी दयनीय बनी हुई है वे बड़ी पूंजी से प्रतियोगिता के साथ पर्यावरण सम्बन्धी प्रावधानों के दबाव को झेलने को मजबूर हैं। बीते कुछ वक्त से यूरोप के अलग-अलग देशों में किसानों के संघर्ष की खबरें आती रही हैं। इस बार बेल्जियम में बंदरगाहों पर किसानों ने ट्रैक्टर मार्च के साथ प्रदर्शन किया। इससे बंदरगाहों का यातायात बाधित हो गया। 
    
ये किसान यूरोपीय संघ के किसानों पर अनावश्यक कड़े नौकरशाही नियमों का विरोध कर रहे थे। ये हवा व मिट्टी स्वच्छ रखने के लक्ष्य और विदेशों से अनुचित प्रतिस्पर्धा में झोंके जाने का भी विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि विदेशों से प्रतिस्पर्धा व पर्यावरण रक्षा सम्बन्धी प्रावधान किसानों को दिवालिया बना रहे हैं। वे उद्योगों पर पर्यावरणीय उपायों में कड़ाई करने व अपने लिए छूटों की मांग कर रहे थे। 
    
इससे पूर्व पोलैण्ड में कुछ दिन पूर्व किसानों का प्रदर्शन तब हिंसक हो उठा था जब किसानों ने उनकी राह रोके खड़ी पुलिस पर पथराव कर दिया था। वे संसद भवन तक जाना चाह रहे थे जबकि पुलिस ने उन्हें रोक लिया था। एक माह पूर्व यूरोपीय संघ के मुख्यालय पर भी पुलिस व प्रदर्शनकारियों का टकराव हुआ था। किसानों के इन प्रदर्शनों के दबाव में सरकारों ने कुछ रियायतों की घोषणा की है पर किसान इतने से संतुष्ट नहीं हैं वे और उपायों की मांग कर रहे हैं। हालांकि इन रियायतों पर भी पर्यावरणवादी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। 
    
जाहिर है दुनिया के स्तर पर छुट्टे पूंजीवाद की नीतियों ने दुनिया भर में बड़ी एकाधिकारी पूंजी को लाभ पहुंचाया है। इससे हर जगह कृषि प्रभावित हुई है। छोटी किसानी जहां तबाही की ओर बढ़ी है वहीं सम्पन्न किसानों को भी लाभ की गिरती दर को झेलना पड़ रहा है। वे उद्योगों की एकाधिकारी पूंजी से खुद को प्रतियोगिता में कमजोर पा रहे हैं। भारत से लेकर यूरोप तक किसान इसी पीड़ा के खिलाफ सड़कों पर हैं।   

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता