चुनावी वायदे

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दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होने वाले हैं। 8 फरवरी को चुनाव नतीजे सामने आएंगे।
    
इस चुनाव में मुख्य लड़ाई आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है पर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने भी खूब जोर लगाया हुआ है।
    
तीनों ही बड़ी पार्टियां एक-दूसरे को कोसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव को सांप्रदायिक करने का पूरा प्रयास किया। इसके लिए मोदी-शाह-योगी की तिकड़ी ने कई प्रयास किए हैं पर दिल्ली चुनाव पर जनता को दी जाने वाली सुविधाओं के वादों का जोर ज्यादा है इसलिए चुनाव जीतने के लिए तीनों ही पार्टियां बड़े-बड़े वायदे कर रही हैं। एक पार्टी वायदों को रेवड़ी बता रही है तो दूसरी पार्टी जुमले। तीनों ही पार्टियां चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।  
    
महिलाओं के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने 2,500 रुपये, आम आदमी पार्टी ने 2,100 रुपये हर महीने देने का वायदा किया है। तीनों ही पार्टियों ने 500 रुपये में सिलेंडर देने का वादा किया है। बुजुर्गों को पेंशन देने का वायदा किया है। छात्र-नौजवानों को भी कुछ देने का इन योजनाओं में वायदा किया गया है। इसके अलावा और भी कई बड़े वायदे किए गए हैं।
    
पर सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण बात स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर किए गए वायदों की है। आम आदमी पार्टी ने बुजुर्गों के इलाज के लिए संजीवनी योजना का ऐलान किया है, जिसमें 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग को दिल्ली के किसी भी प्राइवेट और सरकारी अस्पताल में मुफ्त में इलाज मिलेगा। बीजेपी ने ऐलान किया है कि वह आयुष्मान योजना को लागू करेगी जिसके तहत 5 लाख का इलाज मिल सकेगा। वहीं, दिल्ली सरकार की तरफ से अतिरिक्त 5 लाख रुपये इलाज के लिए दिया जाएगा यानी 10 लाख रुपये तक का इलाज दिल्ली के किसी भी अस्पताल में हो सकेगा। वहीं कांग्रेस ने 25 लाख रुपए का वायदा किया है।
    
स्वास्थ्य संबंधी किए गए वायदे स्वास्थ्य सुविधा के महंगे होने व इन पर होने वाले खर्चों को ही अभिव्यक्त करते हैं। यह स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर करने के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी अस्पतालों के निर्माण और स्वास्थ्य सुविधाओं के राष्ट्रीयकरण/सरकारीकरण की मांग करता है।
    
ये वायदे बता रहे हैं कि आज जनता के मुख्य मुद्दे बढ़ती महंगाई व रोजगार का सवाल है। जिनका समाधान यह सरकारें नहीं कर रही हैं और चुनाव जीतने के लिए उन्हें इन मुद्दों पर वायदे करने पड़ रहे हैं।         -हरीश, गुड़गांव

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता