
दिल्ली विधानसभा चुनावों में हिन्दू फासीवादी भाजपा का मुकाबला करते हुए आम आदमी पार्टी को इसके अलावा कुछ नहीं सूझा कि हिन्दू मतदाताओं को लुभाने के लिए उससे प्रतियोगिता करे। ‘आप’ ने जोर-शोर से घोषणा की कि उसने दिल्ली के सारे विद्यालयों को आदेश दिया है कि कोई रोहिंग्या शरणार्थी बच्चा उनमें भर्ती न हो जाये। उसने भाजपा पर यह आरोप लगाया कि वह केन्द्र सरकार की योजनाओं के तहत रोहिंग्या शरणार्थियों को मकान आवंटित कर रही है।
हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में ‘आप’ का यह व्यवहार किसी नरभक्षी व्यवहार से कम नहीं है। और यह एक ऐसी महिला मुख्यमंत्री के शासन में हो रहा है जिसके मां-बाप सारी जिन्दगी सारी मानवता की खातिर लड़ते रहे, जिन्होंने सारे वर्गीय, नस्ली, जातीय और धार्मिक भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न का हमेशा विरोध किया। यह महिला मुख्यमंत्री चंद दिन पहले एक प्रेस वार्ता में इस बात पर घड़ियाली आंसू बहा रही थी कि उसके बूढ़े और अशक्त बाप का एक बदजुबान भाजपाई लंपट नेता ने अपमान किया। पर वह स्वयं अपने इस घृणित कारनामे के द्वारा अपने मां-बाप के सारी जिन्दगी के संघर्ष पर जो कालिख पोत रही है वह बदजुबान भाजपाई नेता के गाली-गलौच से कहीं ज्यादा बड़ा अपमान है।
म्यांमार (बर्मा) के रोहिंग्या मुसलमान इस समय दुनिया के सबसे ज्यादा उत्पीड़ित लोगों में से एक हैं। कुल करीब चौदह लाख रोहिंग्या में से 2015 के बाद करीब दस लाख लोग शरणार्थी बन चुके हैं (करीब 9 लाख अकेले बांग्लादेश में)। 2017 में म्यांमार की सेना ने बीसियों हजार रोहिंग्या की हत्या कर दी और करीब इतनी ही महिलाओं से बलात्कार किया। भारत में करीब चालीस हजार रोहिंग्या शरणार्थियों के होने का अनुमान है जो बहुत बुरी परिस्थितियों में जम्मू, हैदराबाद, नूंह और दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में रह रहे हैं।
दुनिया के सबसे ज्यादा उत्पीड़ित लोगों में से एक रोहिंग्या शरणार्थी हर तरह की मानवीय सहायता पाने के हकदार हैं। यदि मानवता के आधार पर किसी को सहायता की जरूरत है तो उनमें रोहिंग्या भी होंगे।
पर सत्ता के भूखे भेड़ियों को ऐसा नहीं लगता। हिन्दुओं का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर उनका वोट पाने की होड़ में लगे ‘आप’ और भाजपा दोनों रोहिंग्या शरणार्थियों को निशाना बना रहे हैं। 140 करोड़ वाले भारत में कुल चालीस हजार गरीब-मोहताज रोहिंग्या शरणार्थी, जो खुद मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह जिन्दा हैं, उनके अनुसार देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। वे उन्हें आतंकवादी की तरह पेश करते हैं हालांकि आज तक किसी आतंकवादी गतिविधि में किसी रोहिंग्या का नाम नहीं आया है। ऐसा करते हुए ‘आप’ और भाजपा दोनों स्वयं को खुद को म्यांमार के नरसंहार करने वाले शासकों की पांतों में खड़ा कर लेते हैं।
जब कोई कौम इस कदर नरसंहार और उत्पीड़न की शिकार हो, जैसे कि रोहिंग्या हैं, तो उनको वोट की खातिर निशाना बनाना नरभक्षी व्यवहार से कम नहीं है। यह इस बात का भी ज्वलंत प्रमाण है कि सत्ता की खातिर ये भेड़िये किस हद तक जा सकते हैं।
ज्यादा बुरी बात है कि नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने का ढिंढोरा पीटने वाली कांग्रेस पार्टी भी इस मसले पर चुप लगाये बैठी है। उसे डर है कि यदि वह मुंह खोलेगी तो हिन्दू मतदाता उससे नाराज हो जायेंगे। रोहिंग्या के मामले में उसने अपनी मोहब्बत की दुकान का शटर गिरा दिया है। यह दिखाता है कि भारत की पूंजीवादी राजनीति कितनी हिन्दू साम्प्रदायिक हो गयी है, वह भी देश की राजधानी दिल्ली में। हिन्दू साम्प्रदायिक और फासीवादी भेड़िये दनदनाते घूम रहे हैं और दूसरे उनके सामने दुबक जा रहे हैं।
वक्त आ गया है कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ‘भेड़िये’ शीर्षक कविता का हर गली-नुक्कड़ और चौराहे पर उच्च स्तर का पाठ किया जाये।