‘मिट्टी में माफिया’ की हकीकत क्या है?

पिछले दिनों पूर्वांचल ही नहीं बल्कि प्रदेश के गैंगस्टर माफिया और पांच बार लगातार विधायक रहे मुख्तार अंसारी की उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में मौत हो गयी। उसकी मौत के बाद लगभग सप्ताह भर टी वी चैनलों और अखबारों में ‘मिट्टी में माफिया’ शीर्षक से खबर प्रसारित होती रही। दिन-रात उसके अपराधिक इतिहास, कारनामे आदि पर बहस चलती रही। खबरिया चैनलों द्वारा यह भी प्रचारित-प्रसारित होता रहा कि प्रदेश में एक-एक करके सभी अपराधी, माफियाओं को खत्म कर दिया गया है। प्रदेश में अब कानून का राज चल रहा है। प्रदेश अपराध व माफिया मुक्त हो चुका है। इन खबरों में हकीकत क्या है? इसकी बिन्दुवार बात की जाये।

1. जिस तरह से, मुख्तार अंसारी सहित अपराधिक छवि के चलते अतीक अहमद, उसका भाई अशरफ हो, मुन्ना बजरंगी, संजीव माहेश्वरी उर्फ जीपा, हनुमान पाण्डेय आदि की हत्या हुई है वह किसी भी सभ्य समाज में सही तरीका नहीं कहा जा सकता। पुलिस अभिरक्षा में कोई व्यक्ति कितना ही बड़ा अपराधी हो उसकी जान की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। यहां तक कि युद्धबंदी की भी जान की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है और न्यायिक प्रक्रिया के तहत उसको सरकार सजा दिलवाती है। इसके लिए सरकारी अधिवक्ता से लेकर पूरा अभियोजन पक्ष होता है जिस पर करोड़ों-करोड़ खर्च होता है। 

2. जब किसी भी व्यक्ति, अपराधी की गैरकानूनी तरीके से सरकार द्वारा हत्या होती है या करायी जाती है तो बहुत सारे अपराध किये जाते हैं। जैसे मुख्तार के परिजनों का आरोप है कि मुख्तार अंसारी को धीमा जहर दिया गया है। यदि परिजनों के आरोप में थोड़ी भी सच्चाई तो एक मुख्तार अंसारी को मारने के लिए कितना बड़ा षड्यंत्र किया गया होगा। मसलन जेल अधीक्षक, रसोइया, डाक्टर आदि आदि एक आदमी को मारने के लिए कई लोगों को अपराध में शामिल किया गया होगा। इसी तरह अतीक अहमद व उसके भाई की हत्या में भी यही हाल हुआ होगा। कई लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित किया गया होगा। जाहिर है इससे अपराध मुक्त नहीं बल्कि और ज्यादा अपराध युक्त प्रदेश बनता जा रहा है। 

3. मुख्तार अंसारी एक गैंगस्टर था तथा उसका गैंग भी था, उसके गैंग के लगभग सभी बड़े सदस्यों को मार दिया गया। किन्तु पूर्वांचल में इसकी अदावत एक दूसरे माफिया से थी जिसका नाम बृजेश सिंह है। बृजेश सिंह भी खूंखार और बड़े आपराधिक गिरोह का सरगना है त्रिभुवन सरीखे कई अपराधी उसके गैंग में शामिल हैं। मुख्तार की तरह ही इसके परिवार के भी सदस्य विधायक व अन्य पदों पर हैं। जिसमें इसके चाचा चुलबुल सिंह, भाई सुशील सिंह, पत्नी अन्नपूर्णा आदि हैं। किन्तु सरकार पर इस गैंग के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय इसे संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। सोशल मीडिया पर प्रदेश के अपराधिक व्यक्तियों की एक सूची वायरल हो रही है जिसमें इनके नाम और उन पर दर्ज मुकदमों की संख्या है। जो निम्न है-
1. बृजेश सिंह - 106 मुकदमा, 2. धनंजय सिंह - 46 मुकदमा, 3. राजा भइया- 31 मुकदमा, 4. डा. उदयभान सिंह- 83 मुकदमा, 5. अशोक चंदेल- 37 मुकदमा, 6. बिनीत सिंह- 34 मुकदमा, 7. बृजभूषण सिंह- 84 मुकदमा, 8. चुलबुल सिंह- 53 मुकदमा, 9. सोनू सिंह- 57 मुकदमा, 10. मोनू सिंह- 48 मुकदमा, 11. अजय सिंह सिपाही- 81 मुकदमा, 12. पिंटू सिंह- 23 मुकदमा, 13. सनी सिंह- 48 मुकदमा, 14. संग्राम सिंह- 58 मुकदमा, 15. चुन्नू सिंह- 42 मुकदमा, 16. बादशाह सिंह- 88 मुकदमा आदि।
    
इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम नहीं है। जिन पर दंगा भड़काने, हत्या के प्रयास आदि तरह के गंभीर दर्जनों मुकदमे दर्ज रहे हैं। एक अपराधिक व्यक्ति खुद शासक बनकर अपने विरोधी अपराधियों को खत्म करे और अपने गुट के अपराधियों (अपना मतलब धार्मिक रूप से या अपनी गोल गोलइती की दृष्टि से) को संरक्षण दे या वह काम सरकार खुद करे जो अपराध करके किया जाता हो। तो इससे अपराध मुक्त प्रदेश कभी नहीं बन सकता जैसा कि भाजपा समर्थक दावा करते हैं। इस तरह अपने विरोधी गुट को केवल समाप्त करना कैसे अपराध व अपराधी मुक्त प्रदेश हो गया।

4. इस तरह के राबिनहुड की छवि वाले अपराधियों को बनाने में यह व्यवस्था ही जिम्मेदार है। मुख्तार अंसारी के मौत के बाद जनाजे में उमड़ी भीड़ व सोशल मीडिया पर उसको बहुत सारे लोग माफिया की जगह मसीहा बता रहे हैं। गाजीपुर के खास तौर से मुहम्मदाबाद तहसील के अगल बगल के गांवों के लोगों के अनुसार उसके फाटक (फाटक का मतलब घर को कहा जाता है) पर जो भी व्यक्ति अपना काम लेकर जाता है वह निराश होकर नहीं लौटता है। कई लोगों के अनुसार यहां की जनता को शासन-प्रशासन पर कम फाटक पर भरोसा ज्यादा होता था कि उसे न्याय यहीं से मिल जायेगा। यदि शासन व प्रशासनिक अमला आम जनता के लिए होता जैसा कि यह व्यवस्था अपने बारे में परिभाषित करती है कि ‘‘लोकतंत्र जनता के लिए, जनता की, और जनता द्वारा चुनी हुई व्यवस्था है’’। यदि वास्तव में शासन प्रशासन जनता के हित में कार्यरत हो तो क्या लोग शासन-प्रशासन में न जाकर गाजीपुर जिले के फाटक पर जाते अपनी फरियाद लेकर? पब्लिक जानती है कि आफिस थाने व कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते हम मर जायेंगे किन्तु हमारा मसला हल होने वाला नहीं है। इसलिए तुरंत न्याय व अपना काम कराने के वास्ते ऐसे ही माफियाओं के दरबार में पहुंच जाती है। 
    
ऐसे में जनता को हर तरह के अपराध, अपराधियों व ऐसे लोगों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष संरक्षण देने वाले शासन-प्रशासन का खात्मा तथा जनता की वास्तविक सत्ता कायम करने हेतु (जो वास्तव में, जनता की होगी) संघर्ष करते हुए क्रांति के मंजिल तक पहुंचना होगा। तभी वास्तव में मिट्टी में माफिया शब्द का अर्थ जमीन पर उतरेगा। अभी तो सत्ता पर काबिज एक दबंग ने विरोधी माफिया को मिटाया है इससे न तो अपराध खत्म होना है न माफियागिरी।             -लालू तिवारी, बलिया

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