वक्त चुनाव का है। वायदों-गारंटियों की बौछार हो रही है। इन बौछारों में एक दिन खुद को सुपरमैन मानने वाले मोदी जी को गांवों-देहातों के मजदूरों की याद आई। याद आया कि इनका भी तो वोट है। उनका मन तिलमिलाया कि इन कांग्रेसियों ने किसको-किसको वोट का अधिकार दे दिया। जिसके पास खाने-पहनने को भी नहीं है उसे भी वोटर कार्ड थमा दिया। किया कांग्रेसियों ने झेलना पड़ेगा मोदी को। खैर! इस बार किसी तरह इनका वोट ले लूं, अगली बार तक इनका वोट ही छीन लूंगा। न रहेगा वोट और न करनी पड़ेगी वोटरां की चिंता।
सो मोदी जी ने झटपट अपनी बुद्धि दौड़ाई अपने कारिंदे को बुलवाया। उससे पूछा बताओ गांवों में कैसी और किसकी लहर है। कारिंदा बोला हुजूर मंदिर निर्माण से गांव के मजदूर खुश तो बहुत हैं पर इस खुशी में पगलाये नहीं हैं। मंदिर का जादू उनके सिर से उतर चुका है। अब वे महंगाई-बेकारी पर आपको कोस रहे हैं। कह रहे हैं कि मोदी तो अंबानी-अडाणी के लिए जीता है उसे मजदूरों से क्या मतलब। मोदी झट बोले- ठीक ही तो कह रहे हैं मैं तो दिन रात यही करता हूं। फिर उन्हें अचानक याद आया कि चुनावी मौसम है और गांव से वोट बटोरना है। तुरंत बात बदलकर कारिंदे से पूछा मतलब कि हालात हमारे लिए अच्छे नहीं हैं? क्या कुछ हिन्दू-मुस्लिम करवा दें? कारिंदा बोला- हुजूर करवा तो दें पर उससे भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा। बात यूं है कि एक तो हमारे हिन्दू-मुस्लिम के चक्कर में ये मजदूर आते नहीं। ये एक दिन भी काम नहीं छोड़ते। काम छोड़ दें तो जो सूखी रोटी मिल भी रही है वो भी नहीं मिलेगी। और कहीं हिन्दू-मुस्लिम के चक्कर में दो चार दिन काम बंद हो गया और दो-चार मजदूर भूख से मर गये तो और आपको कोसने लग जायेंगे। मोदी बोले- अरे भूख से कैसे मरेंगे, हम मुफ्त राशन तो बांट रहे हैं। कारिंदा बोला- अरे हुजूर वो मुफ्त राशन तो आपकी पार्टी वाले कोटेदार मजदूर तक पहुंचने ही नहीं देते। कहीं पहुंचता भी है तो 5 किलो घटकर 2-3 किलो रह जाता है। अगर 5 किलो भी पहुंच जाये तो इतने से भला कितने दिन पेट भरेगा। मोदी घबराये कारिंदे से पूछा फिर तुम ही बताओ क्या किया जाए? कारिंदा चालू पुर्जा था उसने तुरंत दिमाग दौड़ाया बोला हुजूर मजदूरां की मजदूरी बढ़ा दो। मोदी को तुरंत गुस्सा आया तेरा दिमाग तो नहीं खराब है। मजदूरी बढ़ायी तो अंबानी-अडाणी नाराज नहीं हो जायेंगे। कारिंदा बोला हुजूर सारे मजदूरों की मजदूरी मत बढ़ाओ, उनकी बढ़ा दो जिनकी मजदूरी सरकारी खजाने से दी जाती है। मनरेगा की मजदूरी बढ़ा दो। मोदी फिर गुर्राये - अरे मजदूरी बढ़ जायेगी तो यह अतिरिक्त पैसा आयेगा कहां से? कारिंदा धैर्य के साथ समझाते हुए बोला- हुजूर आप उसकी चिंता मत करो। बस मजदूरी बढ़ने की घोषणा कर दो, बजट चाहे और कम कर लो। बजट होगा नहीं तो काम कम ही दिन मिलेगा पर आपका नाम हो जायेगा कि आपने मजदूरी बढ़ा दी, कि आप मजदूर हितैषी हो। मोदी मुस्कराये बोले कारिंदा तू तो बड़ा अक्लमंद है।
अगले दिन अखबार की पहली खबर थी मोदी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ायी। खबर सुन कर मोदी की काशी का एक मजदूर खुशी से उछल पड़ा। बोला अब मोदी को हमारी याद आयी। खुद अनपढ़ था इसलिए बगल के मजदूर से पूरी खबर पढ़ कर सुनाने को दौड़ा। खुशी-खुशी सोचता गया कि अब हमारे दिन बहुरेंगे। पढ़े-लिखे मजदूर ने पूरी खबर पढ़ी। खबर थी मोदी सरकार ने उत्तराखण्ड-उ.प्र. के मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ा कर 237 रु. कर दी। पहले यह मजदूरी 230 रु. थी। खबर सुन कर अनपढ़ मजदूर की खुशी काफूर हो गयी। बोला- याक थू! 7 रु. की बढ़ोत्तरी। गुस्से से वह लाल हो गया। बोला 7 रु. में इस महंगाई में क्या आता है। इससे तो सरकार मजदूरी नहीं बढ़ाती तो ही अच्छा था। कम से कम मजदूरी बढ़ने की आस तो रहती, अब तो वो भी खत्म हो गयी।
मोदी का मजदूर प्रेम
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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को