शिक्षा पर बढ़ता संघी प्रभाव

संघ-भाजपा की बीते 10 वर्षों के शासन में शिक्षा व्यवस्था को फासीवादी ताकतों ने खास तौर पर अपना निशाना बनाया है। सभी तरह की सरकारी शिक्षा को विद्या भारती के शिशु मंदिरों-विद्या मंदिरों की तर्ज पर ढालने के लिए मोदी सरकार सक्रिय रही है। इसके साथ ही वह संघी लोगों को कालेजों-विश्वविद्यालयों में कुलपति-शिक्षक बनाने में भी जोर शोर से जुटी रही है। इसके साथ ही वह मदरसों पर हमलावर रही है। 
    
बीते दिनों रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने एक खबर प्रकाशित की जिससे पता चलता है कि संघ-भाजपा से जुड़े लोगों ने सैनिक स्कूलों के संचालन के 40 से अधिक समझौते सरकारों के साथ किये। यानी आज तमाम सैनिक स्कूल सीधे संघ-भाजपा से जुड़े लोग संचालित कर रहे हैं। इन स्कूलों का संचालन रक्षा विभाग द्वारा सशस्त्र बल में भेजे जाने योग्य छात्र तैयार करने के लिए किया जाता रहा है। यानी अब सरकारी धन से चलने वाले सैनिक स्कूल संघ के लड़ाके तैयार करने का जरिया बनते जा रहे हैं। यहां यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संघ अपने संसाधनों से खुद के सैनिक स्कूल संचालित करने का न केवल इच्छुक रहा है बल्कि कुछ मामलों में इस दिशा में कदम भी बढ़ा चुका है। 
    
संघ संचालित स्कूलों में मुस्लिमों के प्रति परोसी जाने वाली नफरत एकदम स्पष्ट है। यहां पढ़ने वाले छात्रों को बचपन से साम्प्रदायिक वैमनस्य, हिन्दू श्रेष्ठता बोध का पाठ पढ़ाया जाता रहा है। इनकी पुस्तकों का पाठ्यक्रम भी न केवल साम्प्रदायिक, ढेरों मिथकों युक्त होता है बल्कि सवर्ण जातीय श्रेष्ठता बोध से भी लैस होता है। इतिहास के नाम पर तो यहां खुलेआम संघ की सोच का पाठ किया जाता है। महान व्यक्तित्वों में संघी नेता खुलेआम जगह पाते रहे हैं। दलितों-मुस्लिमों के साथ महिला विरोधी व्यक्तित्व इनके स्कूलों में तैयार किये जाते रहे हैं। अब सैनिक स्कूलों का संघ द्वारा संचालन एक और कदम आगे बढ़कर प्रशिक्षित संघी लड़ाके तैयार करने का इंतजाम करना है। 
    
विद्या भारती के तहत अब तक 7 सैनिक स्कूल संचालित किये जाने की छूट मिल चुकी है। इसके अलावा विद्या भारती अपने लगभग 12 हजार स्कूलों में 31.5 लाख छात्रों को संघी पढ़ाई पढ़ा रही है। जहां सैनिक स्कूल भगवा रंग में रंगकर संघी हिंसक वाहिनी तैयार करेंगे वहीं ये सशस्त्र बलों में युवाओं को भेज उनके भी भगवाकरण का जरिया बनेंगे। 2023 में ऐसे ही एक सैनिक स्कूल का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वृंदावन में उद्घाटन किया। इस स्कूल का नाम गुरूकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल था। इसकी संचालिका साध्वी ऋतम्भरा हैं जो राम मंदिर आंदोलन के वक्त जहरीले बयानों के लिए जानी जाती थीं। अभी तक 62 प्रतिशत सैनिक स्कूल केन्द्र सरकार ने संघी नेताओं को सौंप दिये हैं। इस सम्बद्धता हेतु जब रक्षा मंत्रालय से जवाब आरटीआई के तहत मांगा गया तो जवाब में आवेदकों के विवरण देने से इंकार करते हुए बताया गया कि 500 आवेदन मिले व जांच कर सैनिक स्कूल आवंटित हुए। साथ ही यह भी बताया गया कि संचालकों की राजनैतिक या वैचारिक संबद्धता चयन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करती। स्पष्ट है कि रक्षा मंत्रालय कागजी खानापूरी करते हुए सैनिक स्कूलों को संघी प्रभाव में ढकेल रहा है। 
    
शिक्षा को संघी रंग में रंगने का एक अन्य प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत ‘‘अभ्यास के प्रोफेसर’’ नियुक्त करने की शुरूआत करके किया गया है। इन नियुक्त हुए प्रोफेसरों के लिए शैक्षिक योग्यता में पीएचडी या नेट पास करने या रिसर्च पेपर प्रकाशित करने के प्रावधानों से छूट दी गयी है। कोई भी अपने पेशे में 15 वर्ष से सक्रिय सफल व्यक्ति ‘अभ्यास का प्रोफेसर’ बनाया जा सकता है। यह कक्षा में व्याख्यान देगा। छात्रों को असाइनमेंट देगा। 
    
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास पाठ्यक्रम सुधारों पर सरकार का स्व नियुक्त सलाहकार है। इसने सरकार को स्कूलों-कॉलेजों में वैदिक गणित पढ़ाने का सुझाव दिया है। हिमाचल प्रदेश के केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने एक संघ के प्रचारक को ‘अभ्यास के प्रोफेसर’ के रूप में नियुक्त किया है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी को हिन्दू अध्ययन में अभ्यास का प्रोफेसर बनाया गया है। 
    
स्पष्ट है कि ‘अभ्यास के प्रोफेसर’ प्रावधान का इस्तेमाल कर संघी प्रचारकों को सीधे नामी विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बनाने की शुरूआत कर दी गयी है। आने वाले दिनों में अन्य प्रचारक भी इस पद के लिए होड़ करते देखे जा सकते हैं। 
    
एक ओर संघी ताकतों को सरकारी शिक्षा में जबरन ठूंसा जा रहा है तो दूसरी ओर मुस्लिम मदरसों पर संघी सरकारें हमलावर हैं कहीं मुस्लिम छात्रों की छात्रवृत्ति घटायी जा रही है तो कहीं जांच के नाम पर मदरसों पर छापे मारे जा रहे हैं। इसी कड़ी में बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम 2004 को ही असंवैधानिक घोषित कर दिया। इस अधिनियम के तहत उ.प्र. में 10 हजार मदरसों में 26 लाख छात्र पढ़ते थे। 
    
हाईकोर्ट ने उक्त अधिनियम को असंवैधानिक बताने के निर्णय में कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिनियम को पढ़ने में हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने गलती की। यह अधिनियम धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा नहीं देता बल्कि अरबी-फारसी शिक्षा पर जोर देता है। 
    
अगर धर्मनिरपेक्षता व धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के तर्क पर ही बात की जाए तो अदालतों को सबसे पहले संघ द्वारा संचालित स्कूलों पर रोक लगानी चाहिए जहां हिन्दू साम्प्रदायिक व्यक्तित्व तैयार किये जा रहे हैं। पर आज के मोदी-शाह के काल में भला किस अदालत में इतनी हिम्मत है कि वो संघी स्कूलों पर प्रतिबंध लगा सके। 
    
कुल मिलाकर शिक्षा को संघी वाहिनी हर दिशा से डसती जा रही है। उसका जहर समाज में मासूम बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में तेजी से ले रहा है। 

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