उत्पीड़न के विरुद्ध भोजनमाताओं का विरोध-प्रदर्शन

रामनगर (नैनीताल) में 22 मार्च को प्रगतिशील भोजनमाता संगठन के बैनर तले बहुत सी भोजनमातायें उप जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष एकत्रित हुईं और स्कूलों में किये जा रहे उनके उत्पीड़न के विरुद्ध जोरदार विरोध-प्रदर्शन किया। तदुपरांत उपजिलाधिकारी की अनुपस्थिति में एक ज्ञापन तहसीलदार को प्रेषित किया।

अपने ज्ञापन में भोजनमाताओं ने आरोप लगाया कि स्कूलों में उनके लिये तय काम-खाना बनाना और बांटना तथा बर्तन धोना- के अतिरिक्त अन्य बहुत सा काम उनसे कराया जाता है और इससे इंकार करने पर उन्हें परेशान किया जाता है और किसी मामले में फंसा देने अथवा निकालने की धमकी दी जाती है।

भोजनमाताओं ने इसकी जांच कराने व दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की। गौरतलब है कि विभिन्न स्कीम वर्कर्स- भोजनमाताओं एवं आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सरकार न्यूनतम वेतन भी देने को तैयार नहीं है और मामूली मानदेय पर उनसे बेगारी कराई जा रही है जिसके विरुद्ध सभी स्कीम वर्कर्स को अपने संगठनों को मजबूत बनाने एवं व्यापक एकजुटता कायम करने की जरूरत है। भोजनमाताओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स को चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी का दर्जा हासिल करने एवं उसी अनुरूप वेतन पाने का पूरा हक़ है और इसके लिये उन्हें अपने आंदोलन को तेज करना होगा। -एक पाठक, रामनगर

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।