युद्ध विराम समझौता

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काफी ना-नुकुर और षड्यंत्रकारी हील-हवाली के बाद इजरायल के नाजी जियनवादी क्रूर शासक, हमास के साथ ‘युद्ध विराम’ के लिए राजी हुए। और अंततः 19 जनवरी को युद्ध विराम समझौता लागू होना शुरू हुआ। तब से दो खेपों में हमास ने 7 बंधकों को तो इजरायल ने करीब 290 फिलिस्तीनियों को छोड़ा जिन्हें वर्षों से इजरायल ने अपनी जेलों में बंद रखा हुआ था। इसके साथ हूतियों ने भी 153 युद्धबंदियों को एक तरफा तौर पर रिहा कर दिया। 
    
इस युद्ध विराम ने गाजा पट्टी के फिलिस्तीनवासियों को ही तात्कालिक राहत नहीं दी बल्कि इजरायल के उन लोगों को भी राहत दी जो इस युद्ध के खिलाफ थे और चाहते थे कि हमास द्वारा बंधक बनाये गये लोग, सकुशल घर वापस लौट आयें। साथ ही इस युद्ध विराम ने दुनिया भर के उन लोगों को थोड़ी खुशी दी जो फिलिस्तीनियों के नरसंहार का विरोध कर रहे थे और चाहते थे कि अमेरिकी साम्राज्यवादी अपने लठैत इजरायल को फिलिस्तीनियों पर हमले करने से रोके। 
    
युद्ध विराम तब ही संभव हो पाया जब अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने ऐसा चाहा। इजरायल का धूर्त, क्रूर और भ्रष्ट प्रधानमंत्री नेतन्याहू भले ही कितने तेवर दिखा रहा हो परन्तु समय ने साबित किया कि वह अमेरिका के इशारों पर नाचने वाला जोकर है। ट्रम्प ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ही जो घोषणा की थी वह उसके शपथ लेने के एक दिन पहले लागू हो गयी। ट्रम्प ने 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली और फिर अपने जलवे दिखाने शुरू कर दिये। नया राष्ट्रपति इस युद्ध विराम को अपनी बड़ी उपलब्धि, तो विदा होता राष्ट्रपति अपने ऐतिहासिक कारनामे के रूप में पेश कर रहा था। युद्ध विराम की अमेरिकी व इजरायली शासकों की चाहत कोई नेक इच्छा का परिणाम नहीं थी बल्कि उन्हें पूरी दुनिया की आम जनता ने ऐसा करने के लिए मजबूर किया। 
    
कोई भी समझौता क्यों होता है। समझौता होता ही इसलिए है कि कोई भी पक्ष युद्ध जीतने में सक्षम नहीं है। और इस युद्ध विराम समझौते में जहां एक ओर अमेरिकी-इजरायली शासक थे तो दूसरी ओर हमास और उनके समर्थन में खड़े गाजा पट्टी के लोग थे। क्योंकि युद्ध अमेरिका और इजरायल ने गाजा पट्टी पर थोपा हुआ था और हमास व वहां के लोग इस युद्ध का प्रतिरोध कर रहे थे तो युद्ध विराम समझौता तब ही हो सकता था जब वे युद्ध को रोकें। अपने हमलों को रोके। 
    
हमास ने इजरायल के शासकों की नाक में तब भी दम किया हुआ था जब उसके कई प्रमुख नेता इजरायली सेना द्वारा मार डाले गये थे। हमास के साथ जमीनी लड़ाई में कई सौ इजरायली सैनिक मारे गये और हजारों सैनिक घायल हो गये। इजरायली सैनिकों के लिए गाजा पट्टी की बरबाद इमारतें कब्रगाह में तब्दील होती जा रही थीं। हमास के लड़ाकों ने अमेरिका के पैसे पर पलने वाली इजरायली सेना व टैंक और बुलडोजरों के परखच्चे उड़ाना जारी रखा हुआ था। 15 माह से चल रही लड़ाई ने इजरायली सैनिक व अफसरों के साथ इजरायली शासक वर्ग खासकर नेतन्याहू के होश फाख्ता किये हुए थे। जब तक इजरायल गाजापट्टी पर हवाई हमले कर रहा था तब तक उसका वर्चस्व था परन्तु जब उसके सिर से पैर तक हथियारों से लैस सिपाही जमीनी हमले के लिए उतरे तब उन्हें हमास और अन्य फिलिस्तीनी लड़ाकों ने गुरिल्ला लड़ाई में तेजी से छकाना शुरू कर दिया। चंद महीनों में ही इजरायल के फौजी कमाण्डरों को समझ में आने लगा कि हमास या अन्य फिलिस्तीनी लड़ाकों को जमीनी लड़ाई में नहीं हराया जा सकता है। और यह भावना युद्ध व हमले के हर दिन बीतने के साथ बढ़ती चली गयी। और इसके ऊपर इजरायल के शासकों का यह दर्प कि वे कहीं भी कभी भी अपनी सेना और जासूसी संस्था मोसाद के दम पर कुछ भी कर सकते हैं, चूर-चूर हो गया। इजरायली शासक बंधक बनाये लोगों को न तो छुड़ा सके और न उनका पता लगा सके। 
    
समझौता होता ही इसलिए है कि समझौते करने वाली दूसरी ताकत मौजूद है और उसकी ताकत को एक मान्यता समझौता करने वाले को झक मारकर देनी ही पड़ती है। और हमास को यह मान्यता युद्धोन्मादी अमेरिकी और उसके टुकड़ों पर इतराने वाले इजरायली शासकों को आखिर में देनी पड़ी।
    
अमेरिकी-इजरायली शासकों को समझौते की मेज पर आने के लिए बाध्यकारी करने में दुनिया भर की इंसाफ पसन्द, शांतिप्रिय परन्तु फिलिस्तीन की समर्थक जनता खासकर छात्र-युवाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके साथ ही इजरायल के भीतर पनपते जनाक्रोश ने अपने ढंग से ही इजरायल के नाजीवादी जियनवादी शासकों पर दबाव डाला। नेतन्याहू की हेकड़ी हर बीते दिन के साथ निकलती जा रही थी। सिपाही मारे जा रहे थे और हर शनिवार को बंधकों की रिहाई के लिए होने वाले प्रदर्शनों में हजारों लोग जुट रहे थे। 
    
ठीक इसी तरह फिलिस्तीन की जनता के साथ खड़े लेबनानी संगठन हिजबुल्ला और यमन के हूती लड़ाकों ने इजरायल को घेरा हुआ था। इजरायल को हिजबुल्ला और हूतियों के हमलों ने अच्छा-खासा नुकसान पहुंचाया। नेतन्याहू की ‘मि. सिक्योरिटी’ की साख मिट्टी में मिल गयी। हिजबुल्ला के साथ समझौता कर इजरायल ने सोचा कि वह हमास से आसानी से निपट लेगा पर उसके मंसूबे धरे के धरे रह गये। और हूतियों को खत्म करने के अमेरिका-ब्रिटेन-इजरायल के मंसूबे भी कामयाब नहीं हो पाये। हूतियों के हमले तब ही रुके जब इजरायल और हमास के बीच युद्ध विराम का समझौता हो गया। 
    
युद्ध विराम समझौता होने के बाद इजरायल की राजनीति में व्यापक उथल-पुथल होनी ही थी और हुयी। धुर दक्षिणपंथी व नाजीवादी जियनवादी पार्टियों ने नेतन्याहू सरकार से अपना समर्थन वापस लिया और इजरायल की सेना के प्रमुख ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अब बारी खुद नेतन्याहू की है। और एक हालिया सर्वे में केवल 15 फीसदी ही लोग चाहते हैं कि नेतन्याहू सत्ता में रहें। और करीब 70 फीसदी लोग चाहते हैं कि जैसे ही युद्ध खत्म हो वैसे ही आम चुनाव होने चाहिए। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा नेतन्याहू अब अपने राजनैतिक पतन की ओर बढ़ रहा है। इस युद्ध ने इजरायल की अर्थव्यवस्था पर भी भारी दबाव पैदा किया है और जैसे ही युद्ध विराम समझौता हुआ है वैसे ही इजरायल के आम लोगों का गुस्सा नेतन्याहू के खिलाफ और भड़का है। महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा तेजी से उभरना है। इसलिए भी नेतन्याहू युद्ध जारी रखने और युद्ध विराम समझौते को न होने देने के लिए पूरी ताकत लगाये हुआ था। जो बाइडेन उसके साथ था परन्तु ट्रम्प को समझ में आ गया कि अगर युद्ध जारी रखा जाता है तो इजरायल को अधिक हथियार और पैसा देना पड़ेगा और उसके बाद भी न तो हमास, न हिजबुल्ला और न हूतियों का अंत किया जा सकता है। 
    
यह एक पहेली रही है कि हमास के पास हथियार कहां से आ रहे हैं जबकि पूरी गाजापट्टी को इजरायल ने घेरा हुआ है। इसका एक जवाब एक अमेरिकी अखबार ने ही दिया था कि हमास को हथियार इजरायली सेना से छीनकर हासिल हो रहे थे। 15 माह के इस युद्ध में भी हमास ने अपने नये-नये हथियार गुरिल्ला लड़ाई के तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर इजरायली सैनिकों से ही हासिल किये। हमास को हथियार न तो हिजबुल्ला और न ही हूती और न ही ईरान, इजरायल की घेराबंदी के कारण दे सकते थे परन्तु हमास ने अपने हथियार इजरायल की सेना से छीने और जो अनफटे बम थे वे इजरायल के खिलाफ इस्तेमाल किये। 
    
यह युद्ध विराम समझौता स्थायी युद्ध समाप्ति की ओर जायेगा इसमें सबसे बड़ी बाधा इजरायली शासक खासकर नेतन्याहू एण्ड कम्पनी है। ये अभी ही हिजबुल्ला के साथ हुए समझौते को तोड़ने पर उतारू हैं। और इसी तरह उन्होंने इस समय भले ही गाजा पट्टी पर हमला रोका हुआ हो परन्तु वे वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों का कत्लेआम जारी रखे हुए हैं। नरभक्षी, खून के प्यासे इजरायली शासकों के मुंह को खून की लत लगी हुयी है। इनका इलाज तभी हो सकता है जब मजदूर वर्ग के नेतृत्व में कोई जनक्रांति इनका पूर्णतया सफाया कर दे। ये मजदूर क्रांति ही हमास, हिजबुल्ला, हूती जैसे धार्मिक कट्टरपंथियों को जनता से अलगाव में डाल सकती है, उनका भी खात्मा कर सकती है। इस क्रांति की जद में न केवल इजरायल बल्कि जब पश्चिम एशिया सहित पूरी दुनिया आयेगी तब ही दुनिया में स्थायी शांति कायम हो सकती है। युद्धों का खात्मा हो सकता है। जब तक दुनिया में साम्राज्यवाद है, पूंजीवाद है तब तक युद्धों का भी खात्मा नहीं हो सकता है। ऐसे समझौते होते रहेंगे और टूटते रहेंगे। 

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