जंगली जानवरों के आतंक से निजात दिलाने की मांग के साथ 18 फरवरी को ग्राम कानिया (रामनगर) में आयोजित जन सम्मेलन में सैंकड़ों की तादात में ग्रामीणों ने भागीदारी की। सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले ही ग्राम ढेला की कला देवी को आदमखोर बाघ ने अपना निवाला बना लिया था इस कारण ग्रामीण महिलाएं दुःख व गुस्से से भरी थीं; उन्होंने इस आदमखोर बाघ को तत्काल गोली मारे जाने की मांग की। गौरतलब है कि संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा 14 दिसम्बर को कार्बेट के ढेला-झिरना गेट की बंदी के दौरान कार्बेट प्रशासन ने दो दिनों के भीतर इस बाघ को पकड़ लेने का आश्वासन ग्रामीणों को दिया था लेकिन आज दो महीने से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद ये आदमखोर बाघ खुला घूम रहा है और कई महिलाओं को अपना निवाला बना चुका है।
जन सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि आज न सिर्फ कार्बेट से सटे इलाकों अपितु पूरे भाबर क्षेत्र, तराई और पहाड़; पूरे उत्तराखंड में जंगली जानवरों का आतंक चरम पर है, इसका कारण केंद्र की मोदी और प्रदेश की धामी सरकार की पर्यटन और पर्यावरण नीति है, जो कि एकदम जन विरोधी है। सरकार उत्तराखंड को पर्यटकों की ऐशगाह के रूप में विकसित कर रही है और पूंजीपतियों व होटल रिसोर्ट लॉबी के हितों में काम कर रही है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये बाघों और गुलदारों की संख्या को बढ़ाया जा रहा है और आज कार्बेट पार्क एवं पूरे उत्तराखंड में ही इनकी संख्या तय मापदंड से कई अधिक हो चुकी है, परिणामस्वरूप ये ग्रामीण क्षेत्रों में आकर इंसानों और उनके मवेशियों को अपना निवाला बना रहे हैं।
वक्ताओं ने कहा कि आज उत्तराखंड में बाघों की संख्या 560 जबकि गुलदारों की संख्या 3 हजार से भी ज्यादा हो चुकी है और अब ये विलुप्त प्रजाति नहीं रह गए हैं; ऐसे में बाघ, गुलदार और जंगली सुअर को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1973 की संरक्षित प्रजाति सूची से बाहर किया जाना चाहिये तथा इन हिंसक जानवरों के आबादी क्षेत्र में आने पर इन्हें पकड़ने या मारने का अधिकार मुख्य जीव प्रतिपालक की जगह रेंज स्तर के अधिकारी अथवा जन प्रतिनिधि को दिया जाना चाहिए। वक्ताओं ने मांग की कि सरकार उत्तराखंड में जंगली जानवरों की संख्या को सीमित करे; जिन देशों को इनकी जरूरत है इन्हें वहां भेजे और दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर इनकी बैलेंस हंटिंग करे।
वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह जंगली जानवरों के हमले में गरीब मजदूर-मेहनतकश जन अपनी जान गंवा रहे हैं; उनके मवेशी मारे जा रहे हैं और खेती चौपट हो रही है, उसी तरह पूरे देश में ही मजदूर-मेहनतकश जनता तबाह हाल है; देश में औद्योगिक दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौत की घटनायें लगातार बढ़ रही हैं; दिल्ली के बार्डरों पर किसानों के साथ सरकार ऐसा व्यवहार कर रही है मानो वे आतंकवादी हों। इस सबका कारण ये मुनाफाखोर पूंजीवादी व्यवस्था है।
इसके अलावा वक्ताओं ने संघर्ष से गायब राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को भी खूब लताड़ा और आने वाले लोकसभा चुनावों में उन्हें कटघरे में खड़ा करने का आह्वान किया।
जन सम्मेलन में जंगली जानवरों से सुरक्षा व मुआवजे की राशि बढ़ाने आदि मांगों को लेकर 10 सूत्रीय मांग पत्र भी पारित किया गया तथा कंडी सड़क को आम यातायात हेतु खोले जाने; वन ग्राम, गोट, खत्ते व गुर्जर खत्तों को राजस्व ग्राम का दर्जा देने; वनाधिकार कानून, 2006 के तहत प्रस्तुत दावों को स्वीकार करने एवं किसान आंदोलन के समर्थन में प्रस्ताव भी पारित किये गये।
सम्मेलन में तय हुआ कि वे अपना मांग पत्र उत्तराखंड के सांसदों एवं विधायकों को सौंपेंगे एवं 22 फरवरी को उनके कार्यालयों पर धरना प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को भी मांग पत्र सौंपा जायेगा।
संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक ललित उप्रेती ने कहा कि पिछले 3 महीने से कार्बेट पार्क क्षेत्र में आदमखोर बाघ को पकड़ने अथवा गोली मारने की मांग हो रही है और देखते-देखते चार मौतें हो चुकी हैं और अब ये आदमख़ोर बाघ फिर किसी को मारेगा। उन्होंने कहा कि तीन दिन के भीतर यदि आदमखोर बाघ को पकड़ा या मारा नहीं गया तो संघर्ष समिति को मजबूर होकर अनिश्चितकाल के लिए कार्बेट पार्क बंद करने का निर्णय लेना पड़ सकता है।
सम्मेलन को चाफी की हेमा जोशी, भीमताल की भावना तिवारी, काशीपुर के मनोज डोबरियाल, सल्ट के अजय जोशी, अंजू देवी, तुलसी बेलवाल, प्रेम राम, महिला एकता मंच की ललिता रावत, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की बिंदु गुप्ता, भाकपा माले के कैलाश पांडे, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी, चिंताराम, संयुक्त किसान मोर्चा के नेता धर्मपाल, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी, इंकलाबी मजदूर केंद्र के रोहित, महेश जोशी, संजय मेहता, तारा बेलवाल, वन गूजर नेता मौ. सफी, जनवादी लोकमंच के हेम, आइसा के सुमित, रेखा, देवीलाल, आनंद नेगी, पनीराम, सोबन तड़ियाल, ललित मोहन व समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार आदि ने संबोधित किया।
-रामनगर संवाददाता
जन सम्मेलन की घोषणा के तहत 22 फरवरी को रामनगर के विधायक दीवान सिंह बिष्ट के कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया। बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से जुटे ग्रामीणों खासकर महिलाओं ने विधायक महोदय को धरना स्थल पर आकर ज्ञापन लेने के लिये मजबूर कर दिया। इस दौरान हुई सभा में वक्ताओं ने केंद्र व राज्य सरकार की पर्यटन और पर्यावरण नीति को जनविरोधी करार देते हुये वन जीव संरक्षण अधिनियम, 1973 से बाघ और तेंदुओं जैसे हिंसक जानवरों को बाहर किये जाने की मांग की।