पिछले दिनों गजब हो गया। गूगल के जैमिनी ए आई मशीन से मोदी के बारे में पूछा गया तो उसने मोदी को ‘‘फासीवादी’’ बता दिया। क्यों हैं मोदी फासीवादी तो इसका जवाब था कि ‘भाजपा की हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा, अपने से भिन्न मत रखने वालों पर किये जाने वाले हमलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के प्रयोग की वजह से ऐसा है।
मोदी को गूगल जैमिनी ए आई मशीन द्वारा फासीवादी बताने की देर थी कि भारत सरकार जिसे आजकल मोदी सरकार कहा जाता है, हिल गयी। हिलने के साथ तिलमिला गयी। मोदी जी के एक मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने गूगल को धमकाया कि यह भारत के फलाने-फलाने कानून का उल्लंघन है। गूगल को मोदी सरकार के मंत्री ने धमकाया तो गूगल ने सफाई दी कि जैमिनी हमेशा भरोसेमंद जवाब नहीं देता है।
बेचारी गूगल कम्पनी और क्या कर सकती थी। सफाई-दुहाई देने के अलावा चारा क्या है जब उसे भारत में धंधा करना है। जल में रहकर मगर से बैर किया तो मगर उसे ही निगल जायेगा।
मोदी के मंत्री के गूगल कम्पनी को धमकाने से तो वही साबित हुआ जो जैमिनी ए आई मशीन ने कहा था। प्रमाण मोदी के मंत्री ने तुरंत दे दिया कि मोदी फासीवादी है कि नहीं।
मशीन ने झूठ नहीं बोला
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को