मजदूरी बढ़ाने को बेचैन मजदूर

जे.के. कम्पनी है जो बरेली जिला के औद्योगिक क्षेत्र परसाखेड़ा में स्थित है। इस फैक्टरी में घरों को सजाने का सामान बनता है। यह सामान अमेरिका, ब्रिटेन, दुबई जैसे बड़े देशों को सप्लाई किया जाता है। इस फैक्टरी में अभी 50-60 स्थाई व ठेके के मजदूर काम करते हैं। स्थाई मजदूर 8 घंटे काम करते हैं जिनका वेतन 10,500-11,500 रुपये के लगभग है। 
    

एक मजदूर राजू से बातचीत हुई तो उसने बताया कि मुझे 17 वर्ष हो गये। महंगाई कहां से कहां पहुंच गई लेकिन वेतन 10,500 रुपये ही मिलता है। अभी कुछ दिन पहले मालिक से बात हुई। मालिक ने 1 जनवरी 2023 का श्रम विभाग का कागज मजदूरों को दिया है। उसके हिसाब से मालिक ने कहा मैं आप को कानून के हिसाब से वेतन दे रहा हूं। इससे ज्यादा नहीं दूंगा चाहे तुम कहीं चले जाओ।
    

इस बात को लेकर मजदूर राजू ने इमके के साथी से बात की। साथी ने बताया कि फैक्टरी में जितने मजदूर हैं उन सभी मजदूरों की मीटिंग करके तय करना पड़ेगा। कि वे कितने लड़ने को तैयार हैं या नहीं। इस बात से तय होगा कि आपका वेतन कितना बढ़ सकता है। फिलहाल राजू मजदूरों को एकजुट कर संघर्ष के लिए तैयार कर रहा है। 
    

इस पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों को क्रांतिकारी तरीके से तैयार होना पड़ेगा व मालिकों के खिलाफ व सरकार के काले कानूनों के खिलाफ क्रांतिकारी संघर्ष करने पडेंगे। तभी हम सरकार को झुका सकते हैं और तभी वेतन वृद्धि करवा सकते हैं। 
        

-एक पाठक, बरेली

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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