हिंसा, नफरत और झूठे वायदों के 9 साल

मोदी सरकार के 9 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन 9 वर्षों में सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर गिनाने को कुछ नहीं है। पर फिर भी 2024 के चुनावों के मद्देनजर पूरे देश में 9 वर्ष के शासन की उपलब्धियों को गिनाने का भाजपा ने अभियान लिया है। इस मामले में भी भाजपा हिटलर के नक्शे कदम पर चल कर झूठी उपलब्धियों को इतनी बार दोहरा लेना चाहती है कि वे सच लगने लगें। 
    

जहां उपलब्धियों के नाम पर सरकार के पास गिनाने को कुछ नहीं है वहीं 9 वर्षों के बदनुमा दाग इतने ज्यादा हैं कि वे सरकार द्वारा छिपाने के सारे प्रयासों के बावजूद नहीं छिपेंगे। नोटबंदी, जी एस टी, कोविड में तुगलकी लॉकडाउन, गंगा में तैरती लाशें, साम्प्रदायिक वैमनस्य आदि कुछ ऐसे कारनामे इस सरकार के रहे हैं जिन्हें आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है। 
    

9 साल के मोदी सरकार के कामों की असलियत एकमात्र इस तथ्य से समझी जा सकती है कि संघ संचालित पांचजन्य अखबार भी मानता है कि महज 9 वर्षों के काम के आधार पर 2024 का चुनाव नहीं जीता जा सकता है। चुनाव जीतने के लिए सरकार को चुनावी वर्ष में कुछ बड़े ‘राष्ट्रवादी’ कदम उठाने पड़ेंगे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि संघी ‘राष्ट्रवाद’ या तो पुलवामा सरीखी घटनाओं से या पड़ोसी देश के साथ छोटे-मोटे युद्ध-सर्जिकल स्ट्राइक आदि से ही परवान चढ़ सकता है। 
    

मोदी सरकार के नेतागण अपनी बढ़ाई के नाम पर पूंजीवादी मीडिया द्वारा परोसा यह झूठ ही बारम्बार दोहरा सकते हैं कि मोदी काल में देश का कद दुनिया में ऊंचा हो रहा है। जहां तक आर्थिक मोर्चे का प्रश्न है तो अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत का बखान नेतागण काफी धूर्तता से ही कर सकते हैं। बेलगाम बेरोजगारी किसानों की खस्ता हालत, मजदूरों की कंगाली आदि ऐसे सच हैं जो मोदी काल में सारे तामझाम के बावजूद नहीं छिप रहे हैं। इसी तरह लव जिहाद, लैंड जिहाद, गौ हत्या के झूठे शोर से बढ़ती साम्प्रदायिक हिंसा, अल्पसंख्यकों-दलितों पर अत्याचार ऐसे सच हैं जिन्हें मोदी सरकार छिपा नहीं सकती। मोदी शासन के 9 वर्षों की उपलब्धि यही है कि हर तीसरा युवा बेरोजगार है। मजदूर 12-12 घण्टे बेहद कम वेतन में खटने को मजबूर हैं। सरकार अपने हर विरोधी को कुचलने पर उतारू है। सरकार का विरोध अपराध बन चुका है। सरकारी बुलडोजर न्यायपालिका को धता बता खुद न्याय कर रहा है। संघी लम्पट-गुण्डे चारों ओर हिंसा, झूठ, जोर-जबर्दस्ती का तांडव कर रहे हैं। 
    

मोदी शासन की असलियत तब एक बार फिर और सामने आ गई जब तमिलनाडु में गृहमंत्री अमित शाह सेंगोल की पुनर्स्थापना के बदले जनता से वोट मांगते नजर आये। सामंती राजदण्ड का बखान करना ही दिखलाता है कि गृहमंत्री पर वास्तव में गिनाने को कोई उपलब्धि नहीं है। 
    

कुल मिलाकर मोदी शासन के 9 वर्ष देश की जनता को इतने जख्म दे चुके हैं कि हर कोने अंतरे से खून रिस रहा है। 9 वर्षों के ये जख्म मीडिया द्वारा पूरी कोशिश से छुपाने के बावजूद जनमानस के सामने आ ही जा रहे हैं। ये 9 वर्ष यही सबक दे रहे हैं कि जितनी जल्दी यह सरकार विदा हो उतना बेहतर है।  
    

पर कोई है जो इस सरकार पर फिदा है। जिसका मीडिया इस सरकार के कुकर्मों का भी गुणगान कर रहा है। यह इस देश का बड़ा पूंजीपति वर्ग है जिसे 9 वर्षों में लूट के अथाह मौके मिले हैं। 
    

ऐसे में मेहनतकश जनता की बेहतरी केवल मोदी सरकार की रुखसती से नहीं आने वाली है। जनता की बेहतरी के लिए जरूरी है कि फासीवादी सरकार को पालने वाले पूंजीपति वर्ग की शासन सत्ता भी समाप्त हो और मजदूरों का राज कायम हो। 

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।