11 वर्षीय बच्ची की हत्या-बलात्कार के विरोध में संघर्ष जारी

फरीदाबाद/ समाज में बढ़ती महिला हिंसा व यौन अपराधों की शिकार आम तौर पर मजदूर-मेहनतकश वर्ग की महिलाएं-बच्चियां होती रही हैं। इसी के हिस्से के बतौर 11 अगस्त 2022 को रक्षाबंधन के दिन एक नाबालिग 11 वर्षीय बच्ची की सामूहिक बलात्कार कर निर्मम हत्या कर दी जाती है। बच्ची फरीदाबाद के आजाद नगर झुग्गी बस्ती में परिवार के साथ रहती थी जो शाम को शौच करने रेलवे पटरी पर जाती है और वापस नहीं आती। देर रात परिजनों को बच्ची की लाश रेलवे पटरी के किनारे मिलती है जिससे परिवार के साथ-साथ पूरे आजाद नगर बस्ती में आक्रोश का माहौल पैदा हो जाता है।
    

तब से लेकर अभी तक इस अपराध में लिप्त अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर, बस्ती में सार्वजनिक शौचालय बनाने, पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देने व बस्ती में अवैध नशे के कारोबार को बंद करने को लेकर लगातार संघर्ष जारी है। इस मामले में शुरू से लेकर शासन-प्रशासन का रवैया बस्ती की आक्रोशित जनता के गुस्से को पुलिसिया आतंक के बल पर दबाने का रहा। बस्ती में भय का माहौल बनाने का रहा। और इसमें वह एक हद तक सफल भी रहा। दूसरे आंदोलित जनता के बीच में प्रशासन ने सुनियोजित तरीके से पीड़ित परिवार के बारे में दुष्प्रचार करने का भी काम किया।
    

इंकलाबी मजदूर केंद्र के कार्यकर्ताओं ने लगातार इस मुद्दे को जिंदा रखने के लिए फरीदाबाद के स्तर पर सभी सामाजिक संगठनों से संपर्क कर आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया। जिसमें 28 दिसंबर को एक धरना-प्रदर्शन इंकलाबी मजदूर केंद्र के बैनर तले डीसी आफिस में किया गया जिसमें कुछ सामाजिक संगठनों द्वारा भी भागीदारी की गई। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए फरीदाबाद के अन्य राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की एक बैठक की गयी। जिसमें इस मुद्दे के लिए एकता कायम कर लड़ने की अपील की गई और आजाद नगर संघर्ष समिति का गठन किया गया। 
    

आजाद नगर संघर्ष समिति ने गठित होने के साथ ही सी पी कार्यालय पर प्रदर्शन किया। जिसमें फरीदाबाद के लगभग 25 संगठनों के प्रतिनिधि पहुंचे। कार्यक्रम अपेक्षाकृत सफल रहा व प्रशासन-शासन को चेतावनी देने में भी कुछ हद तक कामयाब रहा। इसी क्रम में आजाद नगर संघर्ष समिति द्वारा कई बैठकें आजाद नगर में आयोजित की गई। साथ ही बस्ती के लोगों के अंदर से पुलिसिया आतंक कम करना व पीड़िता के पक्ष में एकजुटता कायम करने को लेकर भी प्रयास किए गए। जिसके लिए कुछ बैठकों में आजाद नगर बस्ती के प्रबुद्ध जनों को शामिल कराया गया। 
    

इसके अलावा पर्चा वितरित करते हुए घटना के विरोध में बस्तीवासियों को पुनः एकजुट करने का प्रयास किया गया। अभियान चलाकर नुक्कड़ सभाएं की गईं जिसने एक हद तक सकारात्मक परिणाम भी दिए। 5 अप्रैल 2023 को डीसी आफिस पर एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम आजाद नगर संघर्ष समिति के बैनर तले रखा गया।
    

कार्यक्रम की सूचना मिलते ही पूरा शासन-प्रशासन कार्यक्रम ना होने देने के लिए सक्रिय हो गया। जिसका सीधा उदाहरण यह है कि आजाद नगर संघर्ष समिति से जुड़े अन्य सामाजिक संगठनों को फोन करके पुलिस द्वारा प्रदर्शन में आने से रोकने का काम किया गया। दूसरा प्रदर्शन के दिन सुबह से ही आजाद नगर बस्ती के सभी नुक्कड़ जहां से लोग निकलते हैं पर पुलिस ने अपनी गाड़ियां खड़ी कर नजर रखनी शुरू कर दी। साथ ही बच्ची की मां को भी पुलिस प्रशासन द्वारा सुबह ही अपनी गाड़ी में बिठाकर अन्यत्र स्थान पर ले जाया गया।
    

इन सभी दबावों के बावजूद बस्ती से इमके कार्यकर्ताओं के साथ लगभग 20-25 महिलाएं प्रदर्शन के लिए निकलीं। भले ही पुलिस द्वारा लगातार लोगों को रोकने का प्रयास किया गया और सीधे-सीधे आटो में बैठने से मना किया गया। पहले तो पुलिस आटो को रोक रही थी, बाद में आटो को निकालने के साथ-साथ पुलिस ने आगे जाकर महिलाओं समेत आटो को थाने में अंदर करवा लिया। हालांकि काफी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को और इमके कार्यकर्ताओं को तो जाने दिया मगर आटो को वहीं रोक दिया गया। 
    

किसी तरह महिलाएं धरना-प्रदर्शन में पहुंचीं। धरना संख्यात्मक और गुणात्मक दोनों रूपों में सफल रहा और शासन-प्रशासन के हाथ-पांव फुलाने में कामयाब रहा। कार्यक्रम का ही असर रहा कि शासन और प्रशासन हरकत में आने पर मजबूर हुआ। आधे दिन में ही बच्ची की मां को छोड़ दिया गया और वह भी धरना प्रदर्शन में शामिल हुई। 
    

कार्यक्रम के अगले दिन ही डीसी कार्यालय ने पीड़ित परिवार व समिति के कार्यकर्ताओं को बुलाया व घटना की जांच के आश्वासन के साथ ही परिवार को आर्थिक सहायता के लिए कागजी कार्यवाही की। इसकी अगली कड़ी में बस्ती में सार्वजनिक शौचालय बनाए जाने के लिए भी निरीक्षण हेतु टीम दो से ज्यादा बार बस्ती में आई।
    

संघर्ष के दम पर ही बस्ती के सार्वजनिक शौचालय में एक वैकल्पिक टॉयलेट की व्यवस्था की गई है और पुराने शौचालय में थोड़ा बहुत पानी की व्यवस्था कर इस्तेमाल करने लायक बनाया गया है, हालांकि अभी वह नाकाफी है। इसके साथ ही शासन-प्रशासन नए शौचालय बनाने की बात भी कर रहा है। हालांकि इसमें जो तेजी दिखानी चाहिए ऐसा शासन-प्रशासन द्वारा नहीं किया जा रहा है और हर बार टैंडर ना पड़ने की बात कही जा रही है। 
    

इस धरना-प्रदर्शन से हरियाणा सरकार भी हरकत में आई और उसका सीधा उदाहरण है कि हरियाणा के परिवहन मंत्री और फरीदाबाद के विधायक मूलचंद शर्मा द्वारा एक लाख की राशि पीड़िता की मां को दी जाती है। 5 अप्रैल को धरना प्रदर्शन और इसके अलावा सीपी व डीसी आफिस में लगातार प्रतिनिधि मंडल जाते रहने व शासन-प्रशासन से लगातार बातचीत चलने के कारण एक हद तक पीड़ित परिवार को मुआवजे व सार्वजनिक शौचालय बनाने की बात तो की जा रही है, लेकिन अपराधी पकड़े जाएं इस पर कम जोर लगाया जा रहा है। 
    

आजाद नगर संघर्ष समिति द्वारा बच्ची के हत्यारे-बलात्कारियों को गिरफ्तार करने का जो संघर्ष किया जा रहा है उसने एक हद तक केंद्र व राज्य सरकार की जुमलेबाजी की भी पोल खोली है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत आए दिन खुले में शौच से मुक्त भारत की बात करने वाली भाजपा सरकार इस बात पर चुप्पी साधे बैठी हुई है कि आज खुले में शौच जाने के कारण ही एक 11 वर्षीय बच्ची को अपनी जान गंवानी पड़ती है। जिसका सीधा मतलब है कि आज भी भारत में हजारों बस्तियां ऐसी हैं जहां लोग खुले में शौच करने के लिए विवश हैं। उन बस्तियों में सार्वजनिक शौचालय बनाना तो दूर की बात है जो पहले से भी इन बस्तियों में बने हुए थे उनको भी ठप कर दिया गया है या बंद कर दिया गया है। ऐसे में यह संघर्ष पीड़िता को न्याय दिलाने के साथ-साथ ऐसी हजारों बस्तियों में सार्वजनिक शौचालय की मांग को भी उठाता है। संघर्ष अभी जारी है। -फरीदाबाद संवाददाता
 

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।