विद्युत विभाग को आप और हम सर्व प्रथम उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के नाम से जानते थे जिसकी स्थापना वर्ष 1959 में हुई थी। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के गठन के समय बिजली विभाग में तीन प्रकार से कर्मचारियों की तैनाती करना तय हुआ। जिसके तहत नियमित कर्मचारियों से, मस्टर रोल के तहत या दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों से कार्य कराने की नीति बनाई गई। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद के गठन के समय सरकारी कर्मचारियों की संख्या अधिक थी और मस्टररोल व दैनिक वेतन भोगी के तहत नाम मात्र के लिए कर्मचारी रखे जाते थे। तब एक आम नागरिक भी विद्युत विभाग की कार्यशैली से प्रभावित था। आज विद्युत विभाग की कार्यशैली से परेशान होकर लोग लड़ाई-झगड़े पर आमादा हो जाते हैं।
धीरे-धीरे हालात बदलते गए और 14 जनवरी सन् 2000 में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना हुई। इसके बाद नियमित प्रकार के कार्यों में कांट्रैक्ट एक्ट लागू न होने के बावजूद भी मस्टररोल व दैनिक वेतन भोगी व्यवस्था को समाप्त कर निविदा (ठेका) प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई और छोटी-छोटी फर्मों को ठेका देना शुरू कर दिया गया। ठेकेदारों ने मनमानी करते हुए कर्मचारियों का आर्थिक और मानसिक शोषण करना शुरू कर दिया। कर्मचारियों को अनुबंध के अनुसार पूरा वेतन देना तो दूर की बात रही सुरक्षा उपकरण के नाम पर उसके साथ धोखा किया गया जिसके कारण हमारे हजारों साथी हमसे छीन लिए गए और हजारों नौजवान अपंग होकर दूसरों के सहारे जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए। लेकिन सरकार व प्रबंधन में बैठे लोगों ने इनकी कोई सुध नहीं ली। ठेका मजदूरों के साथ सौतेला व्यवहार शुरू कर दिया गया जिसके तहत एक ही प्रकार का कार्य करने वाले एक्स सर्विसमैनों का अनुबंध 22 हजार रुपए किया जाने लगा और संविदाकारों के माध्यम से तैनात कर्मचारियों का अनुबंध 11 हजार रुपए किया जाने लगा। इससे भी मन नहीं भरा तो राजनैतिक उथल-पुथल के चलते सरकार व प्रबंधन ने तानाशाह रवैया अपनाते हुए बड़ी-बड़ी कंपनियों को ठेका देकर निविदा/संविदा कर्मचारियों को विभाग में समायोजित करने के बजाए निजीकरण की ओर धकेल दिया।
सरकारी कर्मचारियों व सरकारी श्रमिक संगठनों के सहारे ठेकेदारी कर रहे लोगों ने अपना काम निकालने के लिए निविदा कर्मचारियों का केवल इस्तेमाल ही नहीं किया बल्कि उनकी मांगों को हमेशा सबसे नीचे रखकर नजरअंदाज कर उनके संख्या बल का नाजायज फायदा उठाया। वर्तमान समय में पावर कारपोरेशन में सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम और निविदा संविदा/कर्मचारियों की संख्या अधिक है। यही कारण रहा कि निविदा/संविदा कर्मचारियों ने पावर कारपोरेशन में ठेका मजदूरों की लड़ाई लड़ने का ढिंढोरा पीटने वाले तमाम श्रमिक संगठनों की कूटनीति को समझते हुए वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ का गठन कर लिया, जिसके गठन होते ही संविदा कर्मचारियों में जागरूकता फैल गई और आए दिन हो रहे शोषण में काफी बदलाव नजर आने लगा। आज उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ का तृतीय द्विवार्षिक सम्मेलन हो रहा है। नूतन वर्ष 2024 में संघ की स्थापना का सातवां वर्ष है। इन सात वर्षों में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ लगातार विद्युत आउटसोर्स कर्मियों की विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु अपनी क्षमता के अनुसार संघर्ष कर रहा है, विद्युत निविदा कर्मियों के हर दुख-दर्द में शामिल हो रहा है। सरकार की घोर निविदा कर्मचारी विरोधी नीतियों का पर्दाफाश करते हुए संघर्ष के जरिए कर्मचारियों को अन्याय-उत्पीड़न के खिलाफ और हक-अधिकारों के लिए एकजुट करने का काम करता रहा है।
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ क्रांतिकारी मजदूर शहीदों के विचारों पर चलने वाला संघ है। निविदा कर्मचारियों में लगातार क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार करता रहता है। हम आपको बताना चाहते हैं कि जब देश अंग्रेजों का गुलाम था तब किसानों, मजदूरों और आदिवासियों ने मिलकर अंग्रेज शासकों के शोषण, उत्पीड़न, अन्याय, अत्याचार और जुल्म के खिलाफ लगातार संघर्ष किया और उन्हीं के आदर्शों पर उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ लगातार निविदा कर्मियों के आर्थिक और मानसिक शोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहा है। विद्युत निविदा कर्मियों को समान कार्य का समान वेतन दिलाने हेतु संघ द्वारा उच्च न्यायालय का सहारा लिया गया और उच्च न्यायालय ने संघ के पक्ष में अपना फैसला दिया फिर भी कारपोरेशन ने समान कार्य का समान वेतन आज तक लागू नहीं किया है। इसके अतिरिक्त संघ द्वारा कई रिटें न्यायालय में दायर की गईं जो कि लंबित हैं। कारपोरेशन द्वारा निविदा कर्मियों के स्थानांतरण के प्रकरण में न्यायालय से स्टे लिया गया जो आज भी कर्मचारियों के लिए कारगर साबित हो रहा है। इसके बाद कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं को लेकर शक्ति भवन का घेराव कर जबरदस्त प्रदर्शन किया। संघ ने कर्मचारियों के बल पर विधानसभा भवन का घेराव कर दिया जिससे सरकार व कारपोरेशन में हड़कंप मच गया। सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग करते हुए कर्मचारियों को इको गार्डन पहुंचा दिया जहां चार माह 40 दिन तक आंदोलन चला। कारपोरेशन ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए कैश काउंटर से हजारों की तादाद में कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसको लेकर मध्यांचल स्तर से लेकर शक्ति भवन पर कई दौर का प्रदर्शन जारी रहा। संघ द्वारा सैकड़ों मृतकों के परिजनों को विभाग से मिलने वाली तात्कालिक सहायता राशि दिलाते हुए मृतक आश्रितों को विभाग में सम्मिलित करने का काम किया गया वहीं विभिन्न जनपदों में लंबे समय से निष्कासित कर्मचारियों को बहाल कराया गया।
इसी बीच निजीकरण की बात सामने आने लगी और निजीकरण को रोकने के लिए कई सरकारी श्रमिक संगठनों ने मिलकर आंदोलन किया और संविदा कर्मचारियों को बरगला कर आगे करने की कोशिश की जा रही थी जबकि सरकारी श्रमिक संगठनों के मांग पत्र में संविदा कर्मचारियों की किसी भी मांग को स्थान नहीं दिया गया है। यही कारण रहा कि बिना संविदा कर्मचारियों के आंदोलन असफल रहा। इसके बाद मार्च 2023 में समिति के संयोजक आदरणीय शैलेंद्र दुबे जी ने संघ के महामंत्री देवेंद्र कुमार पांडे को संयुक्त संघर्ष समिति में शामिल होने का न्यौता दिया और सभी निविदा कर्मचारियों की राय जानने के बाद संघ ने मजबूती के साथ मार्च 2023 के आंदोलन को सफल बनाया लेकिन यहां निविदा कर्मचारियों का भारी नुकसान हुआ जिसकी भरपाई करने के लिए संघ लगातार प्रयास कर रहा है। वर्तमान सरकार और कारपोरेशन ने यह मान लिया था कि कारपोरेशन के सभी श्रमिक संगठन धराशाई हो गए हैं। अब कोई आंदोलन नहीं करेगा लेकिन उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ ने पूर्व नोटिस के तहत 5 फरवरी 2024 को हजारों की संख्या में शक्ति भवन पहुंचकर प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री और कारपोरेशन प्रशासन को यह बता दिया कि निविदा कर्मियों को न्याय नहीं मिल जाता तब तक संघ के जरिए संघर्ष जारी रहेगा। संघ विश्वास दिलाता है कि आगामी दिनों में मार्च 2023 में हटाए गए कर्मचारी बहाल होंगे और न्यूनतम वेतन लागू कराया जाएगा और उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ आए दिन हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाता रहेगा। -हर्षवर्धन, प्रदेश उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ
उत्तर प्रदेश के विद्युत विभाग में कर्मचारियों के शोषण-उत्पीड़न और दमन की दास्तान
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को