राजनीति

भइया ! इसे कहते हैं अक्ल बेचकर खाना

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अक्ल बेचकर कोई खायेगा तो इसका परिणाम क्या निकलेगा। दुनिया भर के पूंजीवादी नेताओं का यही हाल है। क्या हमारा देश और क्या इटली। हमारे देश में एक ओर बलात्कारियों के लिए आये द

फ्रांस-जर्मनी : दक्षिणपंथियों-नवफासीवादियों के बढ़ते कदम

फ्रांस का पूंजीपति वर्ग फासीवादी सरकार को स्वीकारने के बेहद करीब पहुंच चुका है

दक्षिणपंथी ताकतें पूरी दुनिया के पैमाने पर उभार पर हैं। शासक वर्ग का इनको समर्थन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और इस समर्थन पर सवार हो अपने विभाजनकारी मुद्दों के जरिये ये जनता

भारत में बदनाम अडाणी केन्या में निशाने पर

अडाणी और केन्या के मजदूर-कर्मचारी

जैसे भारत में विदेशी (अमेरिकी-ब्रिटिश-जापानी) पूंजीपति रात-दिन भारत की प्राकृतिक संपदा व मजदूरों के श्रम का दोहन करते हैं ठीक वैसे ही भारत के सबसे बड़़े पूंजीपतियों में शा

फ्रांस : सरकार गठन में रोडे़

फ्रांस में सरकार गठन

फ्रांस में चुनाव हुए 2 माह से अधिक का समय हो चुका है पर नई सरकार का गठन अभी तक नहीं हो पाया है। फ्रांस में 30 जून और 7 जुलाई 2024 को चुनाव हुए थे। दूसरे दौर के चुनाव में

अमरीका में लोकतंत्र का प्रहसन और धनतंत्र का खेल

अमरीकी ‘‘लोकतंत्र’’ की यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि इस ‘‘लोकतंत्र’’ में हर चार साल बाद यह तय करना होता है कि अमरीकी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के किस गुट को शासन हेतु चुना जाए। इस ‘‘लोकतंत्र’’ में मजदूर-मेहनतकश आबादी के ऊपर कौन सा गुट शासन करेगा, इस चुनाव में भी हमेशा की तरह यही फैसला होगा। 

फ्रांस : त्रिशंकु संसद

फ्रांस में हुए चुनाव में एक त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आयी है और 3 प्रमुख दलों में से किसी को बहुमत हासिल नहीं हुआ है। हालांकि फ्रांस की जनता ने नवफासीवादी पार्टी को तीसर

नेपाल : प्रचंड की रुखसती

नेपाल की राजनीति में जुलाई माह की शुरूआत में हुए नाटकीय घटनाक्रम के चलते प्रधानमंत्री प्रचंड ने संसद में बहुमत खो दिया है। अब उनकी जगह कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल यूनिफाइड

ब्रिटेन चुनाव : ऋषि सुनक हारे, कियर स्टार्मर जीते

4 जुलाई को ब्रिटेन में हुए चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। इन चुनावों में ऋषि सुनक यानी कंजरवेटिव (टोरी पार्टी) को करारी हार का सामना करना पड़ा है वहीं कियर स्टार्मर यानी लेबर

असांजे की रिहाई

आस्ट्रेलियाई नागरिक जूलियन असांजे अंततः रिहा हो गये। वे बीते 5 वर्ष से बेलमार्श जेल में थे। उन पर अमेरिका की युद्ध से संदर्भी खुफिया फाइलों को विकीलीक्स पर लीक करने का आर

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।