जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए संघ-भाजपा ने वह सब कुछ किया जो वे कर सकते थे। कश्मीर में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। और साथ ही उसके द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को भी मुंह की खानी पड़ी। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को अच्छी सफलता मिली। नेशनल कांफ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। उसे कुल 42 सीटें मिलीं। भाजपा को 29, कांग्रेस को 6 और पीडीपी को 3 सीटें मिलीं। कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन को विधानसभा में बहुमत हासिल हो गया। यद्यपि जो सरकार बनेगी वह उपराज्यपाल के अंगूठे के नीचे होगी।
जम्मू कश्मीर में भाजपा की हार न केवल राजनैतिक बल्कि उसके साथ ही नैतिक हार भी है। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर के साथ जितना अधिक बुरा किया जा सकता था उतना बुरा किया था। धारा-370 व 35-A के तहत जो कुछ भी स्वायत्तता उसे हासिल थी उसे छीन लिया गया। जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दिया गया। उसका राज्य का दर्जा छीन कर उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। विधानसभा के राजनीतिक-प्रशासनिक अधिकार छीनकर वहां की सरकार को एक तरह से केंद्र द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल के अधीन कर दिया गया। विधानसभा की सीटों का इस ढंग से पुनर्गठन किया गया कि भाजपा को अधिकतम चुनावी लाभ मिल सके। 2019 से वहां जारी शासन में नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। लद्दाख की स्थिति भी कम खराब नहीं है।
यह विधानसभा चुनाव भाजपा के क्रूर शासन व नीतियों पर एक जनमत संग्रह भी था। कश्मीर घाटी में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलना बतलाता है कि वहां के निवासी भाजपा के बारे में क्या राय रखते हैं। इससे पहले आम चुनाव में भाजपा की हालत इतनी खराब थी कि उसने कश्मीर घाटी में चुनाव लड़ने की हिम्मत तक नहीं की।
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा के चुनाव पर न केवल देश की बल्कि दुनिया की निगाह लगी थी। और इसीलिए विदेशी मीडिया में भी भाजपा की करारी हार चर्चा का विषय थी। नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन की जीत, भाजपा-पूर्व अलगाववादी, मुस्लिम कटटरपंथियों की हार का संदेश यही है कि आम मतदाताओं ने अपने ही ढंग से भाजपा-संघ के हिंदू फासीवादी एजेंडे को माकूल जवाब दिया है। भाजपा ने धारा-370 के मुद्दे को आम चुनाव में भुनाने के लिए नारा दिया था 'अबकी बार भाजपा 370 पार' परंतु आम चुनाव में उसे साधारण बहुमत भी नहीं मिला और वह 240 पर सीमित कर रह गई थी। भाजपा के जम्मू-कश्मीर के एजेंडे को देश ने नकारा और अब जम्मू-कश्मीर की जनता ने भी नकार दिया।
जहां तक जम्मू-कश्मीर की मजदूर-मेहनतकश जनता के महंगाई, बेरोजगारी, विकास, सेब-केसर जैसी फसलों के वाजिब दाम आदि प्रमुख मुद्दों का सवाल है उनका समाधान न तो भाजपा और न ही नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के पास है क्योंकि यह चुनाव धारा-370 जैसे राजनीतिक मुद्दे के इर्द-गिर्द केंद्रित था इसलिए भाजपा-संघ की हार का राजनीतिक अर्थ ही इसकी प्रमुख बात है