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जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी ढीली नेकर को संभालता फिरता है ठीक वैसे ही भाजपा, हरियाणा में अपनी सरकार संभालती रही। कहीं इस डर से कि ठीक चुनाव के पहले सरकार न गिर जाए उसने हरियाणा विधानसभा का सत्र तक नहीं बुलाया। कानूनन हर छः माह में कम से कम एक बार विधानसभा का सत्र बुलाना जरूरी है। यानी एक सत्र से दूसरे सत्र के बीच छः माह से ज्यादा का समय नहीं गुजरना चाहिए।
हरियाणा विधानसभा में भाजपा, दुष्यंत चौटाला के अलग होने के बाद बहुमत खो चुकी थी। वह कुछ निर्दलीय विधायकों के दम पर बहुमत का दावा करती रही परन्तु विधानसभा में बहुमत साबित करने की हिम्मत खो चुकी थी। और अब उसे संवैधानिक संकट के उठ खड़े होने से बचने के लिए ठीक चुनाव के पहले अपनी सरकार का क्रियाकर्म करना पड़ा। ढीली नेकर संभालते-संभालते थक गये बच्चे की तरह उसकी ‘शेम-शेम’ हो गई।
ध्यान देने की बात यह है कि भाजपा की नेकर ऐसी-वैसी नहीं खालिस खाकी नेकर है। अपने चाल-चरित्र की दुहाई देने वाली भाजपा जो खाकी नेकर पहनती है उसकी हकीकत चुनाव के ठीक पहले टिकट को लेकर मची जूतमपैजार, रोने-धोने में खुल चुकी है। परिवारवाद का खेल भी ढीली पड़ चुकी खाकी नेकर वाली भाजपा में खूब खेला जा रहा है। हालत यह है कि मोदी जी भी हरियाणा में भाजपा की नेकर को संभालने अभी तक नहीं पहुंचे हैं। वे भी सोच रहे होंगे काहे को जाकर अपना नाम बदनाम करें। जीत का श्रेय वे ले सकते हैं लेकिन हार की माला में मुंह लटकाये चेहरे तो सैनी, बड़ोली, खट्टर आदि के ही ठीक हैं। जब ‘शेम-शेम’ हो रही हो तब वह क्या अपना ‘नेम-नेम’ करें। क्या मोदी-मोदी करें।