एम्स के गार्डों का संघर्ष

उत्तराखण्ड के ऋषिकेश स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान एवं रिसर्च सेन्टर व मेडिकल कालेज (एम्स), उत्तराखण्ड सरकार द्वारा संचालित होता है। जहां मेडिकल छात्र पढ़ते हैं और उत्तराखण्ड एवं अन्य राज्यों से भी लोग ईलाज के लिए आते हैं।

एम्स में एम्स गार्ड नाम से 214 कर्मचारी पूरे संस्थान को सुरक्षा के घेरे में लिए पूरे दिन-रात मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करते हैं। इन कर्मचारियों पर हर दम नौकरी से हटाये जाने की तलवार लटकी रहती है। आठ-दस सालों से नौकरी करने वाले ये गार्ड कर्मचारी अपनी नौकरी बचाने हेतु पिछले एक सप्ताह से एम्स के सामने संस्कृत महाविद्यालय के बाहर धरने पर बैठे हैं।

इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। कर्मचारियों की व्यथायें दर्द भरी हैं। एम्स में काम करते हुए भी उनके इलाज की कोई सुविधा नहीं है। एक कर्मचारी गिरने से चोटिल हुआ और पसलियां टूटने के कारण अपना इलाज जौली ग्राण्ट में कराने को मजबूर हुआ। बाकी लोगों का भी कहना यही है कि उनके परिवार को एम्स में इलाज नहीं मिलता।

सुबह पांच बजे से बाहर से आये लोगों को एंट्री कार्ड देने से लेकर 12-12 घण्टे की ड्यूटी करने के बाद भी इन्हें कोई सुविधा एम्स प्रशासन नहीं देता है। ऊपर से ठेका प्रथा में काम करने के कारण इन्हें कभी भी काम से निकाला जा सकता है। कुछ गार्ड अभी भी ड्यूटी कर रहे हैं। इन्हें नौकरी खोने के भय के साथ प्रशासन के 28 फरवरी को सुनवाई के आश्वासन से उम्मीद है। इस तरह गार्ड पूरी तरह एकजुट नहीं हैं। यह चीज इनकी लड़ाई को कमजोर कर रही है।

प्रदर्शन करने वाले इस उम्मीद में धरने पर बैठे हैं कि शायद प्रशासन को होश आ जाये। ये नहीं जानते कि भारत सरकार से लेकर राज्यों तक समस्त सरकारें अंधी-बहरी हैं। इनके कानों में खाली बैठे रहने से आवाज नहीं पहुंचेगी। अपने प्रदर्शनों को संगठित करना होगा। अभी तक कोई भी यूनियन यहां नहीं पहुंची है। पर्वतवाणी नाम के चैनल वाले बाइट ले रहे थे। प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की शीला शर्मा जब उनको देखने गयीं तो संगठन की तरफ से उनकी मांगों का समर्थन किया। रिपोर्ट लिखे जाने तक लोग धरने पर बैठे हैं। -शीला शर्मा

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।