इण्टरनेट-सोशल मीडिया पर बढ़ती सरकारी पहरेदारी

    भारत सरकार ने 6 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी कर इण्टरनेट व सोशल मीडिया पर अपनी पहरेदारी में भारी वृद्धि कर ली। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 नामक इस अध्यादेश के जरिए भारत सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों, इण्टरनेट वेबसाइटों, समाचार पोर्टलों आदि से अपने बारे में आलोचनात्मक सामग्री हटाने का अधिकार हासिल कर लिया है। इस तरह इस अध्यादेश के जरिये सरकार ने जनता के अभिव्यक्ति के जनवादी अधिकार पर नये सिरे से हमला बोला है। 
    इस अध्यादेश के तहत किये गये नये प्रावधान केन्द्र सरकार को एक फैक्ट चैकिंग यूनिट गठित करने का अधिकार देते हैं। यह यूनिट केन्द्र सरकार, उसकी किसी शाखा आदि के बारे में गलत, भ्रामक या झूठी ऑनलाइन सामग्री की पहचान करेगी। साथ ही यह यूनिट जो भी सोशल मीडिया मध्यस्थ (मसलन फेसबुक, ट्विटर आदि) या समाचार पोर्टल ऐसी सामग्री प्रदर्शित, प्रसारित कर रहे होंगे उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए सूचित करेगी। 
    दरअसल इस अध्यादेश के जरिए मोदी सरकार इस बात का इंतजाम करना चाहती है कि अखबारों-टी वी चैनलों की तरह इण्टरनेट-सोशल मीडिया प्लेटफार्म न्यूज पोर्टल, यू ट्यूब चैनल भी मोदी सरकार की वाहवाही से भरे हों, वहां भी मोदी सरकार की कोई आलोचना न हो। सरकार इण्टरनेट व सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के बढ़ते उपयोग से परिचित है और उसे पता है कि आज आम जनता का एक बड़ा हिस्सा समाचार चैनलों की जगह यू ट्यूब-ट्विटर-फेसबुक पर खबरें देखने लगा है। खुद सरकार ने अपने द्वारा पेश हलफनामे में बताया कि 2021 में पारम्परिक माध्यमों से 41 प्रतिशत लोगों ने समाचार देखे, वहीं यू ट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम से 35 प्रतिशत व फेसबुक से 37 प्रतिशत लोगों ने खबरें देखीं। 
    स्टैण्ड अप कामेडियन कुणाल कामरा जब इस अध्यादेश के खिलाफ बम्बई हाईकोर्ट गये तो वहां केन्द्र सरकार ने अध्यादेश के समर्थन में 130 पेज का हलफनामा पेश किया और बताया कि इण्टरनेट, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से गलत, भ्रामक जानकारी हटाना क्यों जरूरी है। 
    गौरतलब है कि इससे पूर्व आई टी एक्ट की धारा 66-A को सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताकर निरस्त कर दिया था। इस धारा के तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, उत्तेजक, भावनाएं भड़काने वाली सामग्री डालने पर मुकदमा दर्ज कर व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सकती थी। वास्तविकता यह है कि 66-A निरस्त होने के बावजूद सम्मान को चोट पहुंचाने (धारा 469), सामाजिक-धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने (153A), धार्मिक भावनाएं आहत करने (धारा 298) आदि के तहत बड़े पैमाने पर मुकदमे थानों में दर्ज होने जारी हैं। 
    धारा 66-Aके खत्म होने के बाद सोशल मीडिया, इण्टरनेट प्लेटफार्म को अपने नियंत्रण में लाने के लिए सरकार नया अध्यादेश लेकर आयी है। इस अध्यादेश का समाचार पोर्टल-सोशल मीडिया प्लेटफार्म सभी विरोध कर रहे हैं। 
    जाहिर है केन्द्र सरकार ने अपने बारे में भ्रामक सूचना तय करने का अधिकार खुद की फैक्ट चैकिंग इकाई को दे दिया है। यह इकाई दरअसल इण्टरनेट पर मोदी सरकार की हर आलोचना, व्यंग्य, साहित्य को निशाना बना उन्हें जबरन हटवाने का काम करेगी। इस तरह सोशल मीडिया-इण्टरनेट पर भी मोदी सरकार का कराहता भारत विश्व गुरू बनता-विकसित भारत बनता नजर आयेगा। 
    प्रचार माध्यमों पर पूर्ण नियंत्रण कायम करने का महत्व मोदी सरकार को पता है। इसीलिए 2024 के चुनावों के मद्देनजर उसने इन संशोधनों को संसद में ले जाने के बजाय अध्यादेश के जरिये लागू कर दिया। जनता के मुंह पर ताला जड़ने का यह एक और फासीवादी कदम है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।