
आजकल हिन्दू फासीवादी बहुत खुश हैं कि वे जल्दी ही देश में राम राज्य कायम कर लेंगे। कुछ को तो अभी से लगने लगा है कि उत्तर प्रदेश में राम राज्य कायम हो चुका है। इससे अच्छी बात इनके लिए क्या होगी कि देश में हिन्दू राष्ट्र और राम राज्य कायम हो जाये।
राम राज्य के बारे में वर्णन वाल्मिकी रामायण के उत्तरकाण्ड में पढ़ने को मिलता है। विद्वानों की राय है कि उत्तरकाण्ड वाल्मिकी रामायण में बाद में जोड़ा गया, बालकाण्ड की तरह। इस उत्तरकाण्ड के राम राज्य में कुछ ऐसा था जो तुलसीदास को इतना दिक्कततलब लगा कि उन्होंने अपना रामचरितमानस राम के रावण पर विजय और अयोध्या वापसी पर ही समाप्त कर दिया। वे अपने मर्यादा पुरुषोत्तम पर राम राज्य की तोहमत नहीं लगाना चाहते रहे होंगे।
राम राज्य में ऐसा क्या था जो तुलसीदास को अपने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए ठीक नहीं जान पड़ा। इसे राम राज्य की तीन घटनाओं से समझा जा सकता है। ये हैं- शम्बूक वध, सीता की समाधि और अंत में स्वयं राम की समाधि। पहले दोनों आम जनों में काफी जाने-पहचाने हैं पर अंतिम उतना नहीं।
शम्बूक प्रकरण इस प्रकार है। एक ब्राह्मण के छोटे बेटे की असमय मौत हो गई। राम राज्य में वह इस अनहोनी पर रोता-बिलखता राम के दरबार में पहुंचा और राम से गुहार लगाई। तब राम के दरबारी विद्वानों ने राम को बताया कि किसी बड़े अधर्म के कारण ही इस तरह की अनहोनी हो सकती है। सारे राज्य में इसके बारे में पता किया गया। अंत में पता चला कि शम्बूक नामक एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यह बड़े अधर्म का काम था क्योंकि कोई भी शूद्र तपस्या नहीं कर सकता था। वर्ण व्यवस्था के हिसाब से यह बहुत बड़ा अधर्म था क्योंकि धर्म का मतलब था हर वर्ण के लोगों को अपने वर्ण के लिए तय नियम के हिसाब से चलना। इस अधर्म के खात्मे और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जरूरी था कि शूद्र शम्बूक को उसके किये का दंड मिले। वर्ण व्यवस्था के नियमों के इस तरह खुलेआम उल्लंघन की एक ही सजा हो सकती थी- मौत। और यही राम ने किया। उन्होंने स्वयं जाकर शम्बूक का वध किया। शम्बूक के मरते ही ब्राह्मण का बेटा जिन्दा हो गया। धर्म की पुनर्स्थापना हो गयी थी।
दूसरे प्रकरण में स्वयं राम की पत्नी सीता मुख्य किरदार थीं। रावण पर विजय के बाद जब सीता लंका से वापस लाई गईं तो उनकी पवित्रता के लिए उनकी अग्नि परीक्षा ली गई थी। उसमें वे खरी उतरी थीं। सीता जब गर्भवती थीं तब एक व्यक्ति ने यह ताना देकर अपनी पत्नी को घर से बाहर कर दिया कि वह राम नहीं है कि एक संदेहास्पद चरित्र वाली औरत को घर में रख ले। जब यह बात राम तक पहुंची तो उन्हें इसका समाधान यही लगा कि सीता को घर से बाहर कर दिया जाये। गर्भवती सीता को घर से निकाल दिया गया। बाद में वे वाल्मिकी के आश्रम में रहीं और वहीं जुड़वां बच्चों- लव और कुश- को जन्म दिया। बड़े होने पर लव-कुश ने राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को रोका और इस तरह फिर सीता का राम से सामना हुआ। लेकिन एक बार- फिर सीता के चरित्र का सवाल उठा और अब सीता की सहनशीलता जवाब दे गई। उन्होंने अपनी मां धरती से प्रार्थना की कि यदि वे पवित्र हैं तो धरती उन्हें अपनी गोद में ले ले। धरती फटी और सीता धरती में समा गईं। इस तरह सीता के चरित्र पर लगातार उठने वाले सवाल का अंतिम समाधान यही निकला कि वे हमेशा-हमेशा के लिए अपने मायके चली गईं।
तीसरे प्रकरण में कई साल तक रामराज्य में राज करने के बाद राम ने अपने भाईयों के साथ सरयू में जल समाधि ले ली। कई लोग इसे पारिवारिक आत्महत्या मानते हैं। जो भी हो, इतना तो तय है कि राम का जन्म आम लोगों की तरह ही हुआ था पर मृत्यु आम लोगों की तरह नहीं हुई। भारतीय परंपरा में भी राजाओं का जल समाधि लेना कोई आम बात नहीं है।
इन प्रकरणों में जो कुछ था शायद इसीलिए तुलसीदास ने अपने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कहानी को उत्तरकाण्ड तक आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। पर आज के हिन्दू फासीवादियों की बात और है। जिन लोगों ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मदिन को यानी रामनवमी को मुसलमानों पर हमला करने का सबसे अच्छा दिन मान लिया हो वे अपने सपनों का राम राज्य कायम करके ही मानेंगे।
इनके राम राज्य में मुसलमान विधर्मी हैं और अपने होने मात्र से अधर्मी हैं। मुसलमान जो कुछ भी करेंगे वह अधर्म होगा। इसीलिए उन्हें उसी अवस्था में पहुंचाया जाना चाहिए जहां परंपरागत वर्ण व्यवस्था में शूद्र थे। वैसे भी देश के ज्यादातर मुसलमान पीढ़ियों पहले मुसलमान बनने से पहले शूद्र ही थे। राम राज्य में उनका बाकियों की तरह नागरिक होना और नागरिक अधिकारों का उपभोग करना घोर अधर्म होगा। इसलिए उन्हें इस अधर्म की सजा मिलनी चाहिए- ‘इनकाउंटर’ या ‘बुलडोजर’ के जरिये। ‘समान नागरिक संहिता’, ‘तीन तलाक कानून’, ‘लव-जिहाद कानून’, ‘गो-रक्षा कानून’, ‘राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर’, इत्यादि के जरिये उनके नागरिक अधिकार छीन लिये जाने चाहिए। उन्हें बस दूसरों के लिए काम करने तथा जिन्दा रहने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।
राम राज्य में भूतपूर्व शूद्रों (मुसलमानों) के साथ यह किया जा रहा है तो वर्तमान शूद्रों और स्त्रियों को भी नहीं बख्शा जायेगा। दलित-पिछड़े व स्त्रियों सभी को उनका ‘धर्म’ सिखाया जायेगा। उत्तर प्रदेश में भांति-भांति से सिखाया भी जा रहा है। मायावती और बसपा सिकुड़ कर दुबक गये हैं। ‘ठाकुर राज’ की बातें आम हैं।
अभी राम राज्य कायम हो रहा है। पूरा कायम हो पाता है या नहीं, यह देखना होगा। तब भी एक बात अभी से कही जा सकती है। इस राम राज्य का अंत सुखद नहीं होगा। राम राज्य वालों को जलसमाधि या किसी अन्य तरह की समाधि लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा। हजार सालों का पवित्र साम्राज्य कायम करने की मंशा वाले नाजियों का हस्र दुनिया पहले ही देख चुकी है।