ठेका मजदूर एकता रैली

मानेसर/ 21 अप्रैल 2023 को प्रोटेरियल, इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, (आईएमटी मानेसर, हरियाणा स्थित कंपनी) के ठेका मजदूरों ने अपनी यूनियन, प्रोटेरियल (हिताची) ठेका मजदूर यूनियन के नेतृत्व में ‘ठेका मजदूर एकता रैली’ निकाली। इससे पहले व्यापक पैमाने पर ठेका मजदूरों को एकजुट करने के लिए गुड़गांव, मानेसर में पर्चे बांटे गए और रैली में शामिल होने के आह्वान के साथ पोस्टर लगाए गए। रैली की शुरुआत मारुति गेट नंबर 4 से जोशीले नारे लगाकर की गई। जब रैली मारुति गेट से होते हुए प्रोटेरियल कंपनी के गेट तक पहुंची तो कंपनी गेट के बाहर खड़े प्रबंधन व ठेकेदार के गुंडों ने रैली में शामिल मजदूरों को डराने-धमकाने की कोशिश की जिसका रैली में शामिल मजदूरों ने प्रतिरोध किया और कंपनी परिसर के बाहर जबरदस्त नारे लगाए और अपनी एकता जाहिर की। मजदूरों की यह एकता देखकर प्रबंधन व ठेकेदार के गुंडे सहम गए और चुपचाप एक तरफ हो गए। इसके बाद मजदूरों ने अपनी रैली को जारी रखा और रैली मानेसर के विभिन्न कंपनियों और चौराहों से होते हुए मानेसर तहसील तक पहुंची जहां पर एक सभा का आयोजन किया। 
    सभा को संबोधित करते हुए हिताची के मजदूरों ने प्रबंधन व ठेकेदार के द्वारा रैली को बाधित करने की कार्रवाई की कड़ी निंदा की और शासन-प्रशासन से जवाब-तलब किया कि जब यूनियन ने ठेका मजदूर एकता रैली की सूचना पहले से ही प्रबंधन को दी थी तो किसकी शह पर यह गुंडे रैली को बाधित करने के लिए पहुंचे। मजदूरों ने प्रबंधन/ठेकेदार की इस कार्यवाही पर शासन-प्रशासन से तुरंत कठोर कार्रवाई करने की मांग की। यूनियन के नेतृत्वकारी मजदूरों ने बताया कि हम लम्बे समय से प्रबंधन और शासन-प्रशासन को अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन व शिकायत पत्र दे चुके हैं पर अभी तक प्रबंधन और श्रम विभाग इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। मजदूरों को ही परेशान कर निकाला जा रहा है। बेलसोनिका यूनियन के महासचिव अजीत ने हिताची ठेका मजदूर यूनियन द्वारा ठेका मजदूर एकता रैली के आयोजन के लिए यूनियन की सराहना की। उन्होंने बताया कि ठेका मजदूरों का मुद्दा आज सभी औद्योगिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मुद्दा बनता है। आज ठेका मजदूरों को स्थाई करने की मांग न सिर्फ हिताची के मजदूरों की है बल्कि सभी औद्योगिक क्षेत्रों में यह महत्वपूर्ण मांग है। बेलसोनिका यूनियन भी लंबे समय से ठेका मजदूरों को स्थाई करने की मांग कर रही है पर शासन-प्रशासन और प्रबंधन इस पर कोई कार्रवाही नहीं कर रहा है। बल्कि यूनियन को ही कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया।
    इसके अलावा सभा को इंकलाबी मजदूर केंद्र, मजदूर सहयोग केंद्र और मारुति से निकाले गए मजदूरों के प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया। 
    सभा के अंत में तहसीलदार मानेसर को अपनी मांगों के संदर्भ में एक ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में मुख्य मांग थी कि कंपनी द्वारा निकाले गए सभी मजदूरों को तत्काल काम पर वापस लिया जाए, कंपनी में जारी अनुचित श्रम प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए, स्थाई काम पर स्थाई रोजगार और समान काम का समान वेतन दिया जाए, सभी ठेका मजदूरों को स्थाई किया जाए और मजदूर विरोधी 4 लेबर कोडों को रद्द किया जाए। -मानेसर संवाददाता

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।