द ओवरसीज फ्रेंड्स आफ बी जे पी

    द ओवरसीज फ्रेंड्स आफ बी जे पी एक वैश्विक संगठन है। यह संगठन दुनिया के अलग-अलग देशों में भाजपा के समर्थन का काम करता है। प्रधानमंत्री मोदी की इन देशों की यात्राओं के वक्त यह संगठन वहां प्रचार व भीड़ जुटाने का काम करता है। साथ ही यह भाजपा-संघ के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने में संलग्न रहता है। 
         यह संगठन अभी चर्चा का मुद्दा इसलिए बन गया कि आस्ट्रेलिया की इसकी शाखा के संस्थापक सदस्य बालेश धनखड ऐसे आरोपों में दोषी ठहराये गये हैं जिनकी भाजपा चर्चा तक नहीं करना चाहती। बालेश धनखड़ महिलाओं को नशीला पदार्थ पिलाने, बलात्कार करने, 5 कोरियाई महिलाओं से बलात्कार, उसकी रिकार्डिंग बनाने आदि मामलों में दोषी पाया गया है। उसे कुल 39 मामलों में दोषी ठहराया गया है इनमें 13 आरोप बलात्कार, 6 आरोप बलात्कार के इरादे से नशीला पदार्थ देने, 17 आरोप सहमति के बिना अंतरंग वीडियो रिकार्ड करने व 3 अभद्र हमले के मामले थे। 
    2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी सिडनी गये थे तब बालेश धनखड़ ने ओवरसीज फ्रेंड्स आफ बीजेपी की आस्ट्रेलियाई इकाई की स्थापना की थी। 2014 में मोदी के स्वागत समारोह के आयोजन में धनखड़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मोदी के साथ उसकी फोटो इसका प्रमाण है। हालांकि जब धनखड़ पर बलात्कार आदि के आरोप लगे तो कहा गया कि उसने 2018 में ही संगठन से इस्तीफा दे दिया है। 
    कोरियाई महिलाओं के साथ धनखड़़ द्वारा किया गया सलूक व उनके वीडियो इस हद तक घृणित थे कि वीडियो देखते हुए जूरी भी विचलित हो गयी। बालेश धनखड़ को इस साल के अंत में सजा सुनाई जायेगी। 
    भाजपा के इस ‘आस्ट्रेलियाई मित्र’ ने दिखा दिया कि संघ-भाजपा के लोग न केवल देश के भीतर घोर महिला विरोधी हैं बल्कि देश के बाहर भी वे बड़े पैमाने पर महिला विरोधी हैं। हिटलर के वंशजों के लिए महिलायें पुरुषों के पैरों की जूती, बच्चे पैदा करने की मशीन से भिन्न हो भी नहीं सकती हैं। अपनी इसी अक्ल व महिला विरोधी चरित्र का प्रदर्शन भाजपा नेता व उनके मित्र कभी देश के भीतर तो कभी देश के बाहर करते रहते हैं। 

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।