श्रीलंका : आतंकवाद विरोधी बिल के विरोध में हड़ताल

    25 अप्रैल को श्रीलंका का उत्तरी व पूर्वी प्रांत पूरी तरह ठप रहा। दोनों प्रांतों के लोग राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के नये आतंकवाद विराधी कानून के विरोध में हड़ताल व चक्का जाम पर थे। इस नये कानून के तहत जो प्रावधान किये गये हैं उसमें हर सरकार विरोधी राजनैतिक गतिविधि को आतंकवाद के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है। साथ ही ऐसी गतिविधियों के लिए उम्र कैद व फांसी की सजा का भी प्रावधान है। 
    श्रीलंका के तमिल व मुस्लिम बाहुल्य दोनों प्रांत इस आतंकवाद विरोधी बिल के खिलाफ उठ खड़े हुए। यहां के नागरिकों ने ठीक ही समझा कि नये बिल के निशाने पर मुस्लिम व तमिल हैं। 25 अप्रैल को मजदूरों ने भी बिल के विरोध में व्यापक हड़ताल की घोषणा की थी। पर बाद में ट्रेड यूनियन नेता सरकार के बिल को टालने के निर्णय से हड़ताल से पीछे हट गये। 
    इस तरह दो प्रांतों की हड़ताल नौ तमिल राष्ट्रवादी पार्टियों द्वारा आहूत की गयी थी। नया आतंकवाद विरोधी बिल 1979 से लागू आतंकवाद निरोधक कानून की जगह लागू होगा। 1979 से लागू कानून का इस्तेमाल सरकारों ने तमिल जनता को कुचलने के लिए किया था। 2009 में लिट्टे की हार तक हजारों तमिलों की सरकार ने दमन-हत्या की थी। 
    पिछले वर्षों में श्रीलंका की सिंहली फासीवादी सरकार ने सिंहली बौद्धों को मुस्लिम व तमिल आबादी के खिलाफ लामबंद किया था। पर बीते वर्ष अप्रैल-जून माह में सिंहली-तमिल व मुस्लिम सभी एकजुट होकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। बाद में विक्रमसिंघे द्वारा सत्ता संभाली गयी व आई एम एफ से कर्ज हेतु वार्ताएं शुरू की गयीं। आई एम एफ द्वारा कर्ज के एवज में कटौती कार्यक्रम थोपे जाने के खिलाफ श्रीलंकाई जनता एक बार फिर सड़कों पर उतरने को मजबूर होने लगी। 
    25 अप्रैल की हड़ताल में शामिल लोग केवल आतंकवाद के नये बिल का ही विरोध नहीं कर रहे थे, वे कटौती कार्यक्रमों से जीवन में पैदा हुई बदहाली का भी विरोध कर रहे थे। 
    जनता कटौती कार्यक्रमों व अपनी गिरती हालातों के चलते लगातार सड़कों पर उतरना जारी रखे हुए है। राष्ट्रपति विक्रमसिंघे एक के बाद एक दमनकारी उपायों के जरिए जनता को भयभीत करना चाहते हैं। मौजूदा आतंकवाद विरोधी बिल भी इन्हीं उपायों का एक हिस्सा है। ऐसे ही शिक्षकों के संभावित कार्य बहिष्कार को रोकने के लिए उन्होंने शिक्षा को आवश्यक सेवा घोषित कर दिया। अब हड़ताल करने पर शिक्षकों को जेल, जुर्माना सभी कुछ झेलना पड़ेगा। 
    श्रीलंकाई सरकार के इन नये हमलों के खिलाफ पुरानी ट्रेड यूनियनें व उनके पूंजीवादी नेता कुछ खास प्रतिरोध नहीं कर पा रहे हैं। वे दिखावटी प्रतिरोध से आगे बढ़ कर वास्तविक संघर्ष को तैयार नहीं हैं। मजदूर वर्ग जहां बड़े पैमाने पर संघर्ष को उत्सुक हो रहा है वहीं उनके ट्रेड यूनियन नेता मजदूरों की पहलकदमी रोकने का काम कर रहे हैं। 
    ऐसे में श्रीलंका के मजदूर-मेहनतकश पूंजीवादी नेताओं के चंगुल से बाहर आ कर ही शासकों के हमलों का मुंह तोड़ जवाब दे सकते हैं।  

आलेख

/syria-par-atanki-hamalaa-aur-takhtaapalat

फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

/bharatiy-arthvyawastha-ki-gati-aur-niyati

यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं। 

/izrail-lebanaan-yudha-viraam-samjhauta-sthaayi-samadhan-nahin-hai

इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

/ek-baar-phir-sabhyata-aur-barbarataa

कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।