अमेरिका : आटो मजदूरों की हड़ताल

15 सितम्बर को अमेरिका की तीन बड़ी कंपनियों जनरल मोटर्स, फोर्ड और स्टेलेन्टिस (पूर्व में क्रिसलर) के 13,000 मजदूर अपनी यूनियन यूनाइटेड आटो वर्कर (यू ए डब्ल्यू) के नेतृत्व में हड़ताल पर चले गये। ये प्लांट मिसौरी, मिसीसिपी और ओहियो में हैं। ये मजदूर अपने वेतन में वृद्धि चाहते हैं। इसके अलावा मजदूरों के लिए पेंशन और स्वास्थ्य की भी मांग है।
    
जब एक सप्ताह तक भी कोई समझौता नहीं हुआ तो फोर्ड को छोड़कर जनरल मोटर्स और स्टेलेन्टिस के 38 पुर्जा वितरण केंद्रों के 5000 से ज्यादा मजदूर भी हड़ताल में शामिल हो गये। इस तरह अब हड़ताली मजदूरों की संख्या बढ़कर 18,000 हो गयी है। यूनियन के अध्यक्ष का कहना है कि चूंकि फोर्ड कंपनी के साथ उनकी मांगों को लेकर सकारात्मक बात चल रही है इसलिए उसके यहां हड़ताल का विस्तार नहीं किया गया है। 
    
ज्ञात हो कि आटो वर्कर्स का 2019 में किया गया समझौता 14 सितम्बर को खत्म हो गया है। मजदूर वेतन में 40 प्रतिशत की वृद्धि चाहते हैं लेकिन कंपनी 20 प्रतिशत वेतन वृद्धि की बात कर रही है। लेकिन इस बार के समझौते में मजदूरों के लिए काम के घंटे 32 से बढ़ाकर 40 करने की बात की जा रही है। यू ए डब्ल्यू भी इसके लिए तैयार है।        

मजदूरों की इस हड़ताल में अब पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प और वर्तमान राष्ट्रपति की भी एंट्री होने जा रही है। ट्रम्प ने बुधवार 27 सितम्बर को मिसीसिपी की पिकेट लाइन पर पहुंच कर मजदूरों की हड़ताल को समर्थन देने की और जो बाइडेन ने उससे पहले 26 सितम्बर को ही मिसीसिपी जाने की घोषणा कर दी। यूनियन के अध्यक्ष शावन फैन ने ही राष्ट्रपति बाइडेन को मजदूरों का साथ देने के लिए आने का निमंत्रण भेजा था। कुछ मजदूरों ने बाइडेन के आने का स्वागत किया है लेकिन वहीं कुछ मजदूरों ने इसका विरोध किया और किसी भी राजनीतिक दल को दूर रखने की बात की। 
    
वहीं दूसरी तरफ इन दोनों ही लोगों का मजदूरों के संघर्ष में साथ आना इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि 2024 में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हैं और दोनों ही एक बार फिर से अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। 
    
आटो कम्पनियों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 3 प्रतिशत का योगदान है। आटो मजदूरों की इस हड़ताल से तीनों ही कंपनियों को एक सप्ताह में 16 अरब डालर का नुकसान हो चुका है। जनरल मोटर्स और स्टेलेन्टिस के शेयर में 0.5 प्रतिशत की गिरावट हो चुकी है। हालांकि फोर्ड के अन्य प्लांटों में हड़ताल न होने की वजह से उसके शेयर पर उतना असर नहीं पड़ा है।
    
इस बार की हड़ताल में यूनियन ने स्टैंड अप रणनीति का प्रयोग किया। स्टैंड अप रणनीति के तहत कंपनी के सभी प्लांटों में एक साथ हड़ताल शुरू नहीं की जाती बल्कि पहले स्थानीय स्तर पर हड़ताल शुरू होती है और बाद में हड़ताल फैलती है।  यूनियन का कहना है कि इस रणनीति से कंपनी मालिकों को यह समझ में नहीं आएगा कि आगे क्या होने वाला है। लेकिन वहीं मज़दूरों का कहना था कि हड़ताल सभी प्लांटों में एक साथ शुरू हो।
    
मजदूरों की बात सही थी क्योंकि एक साथ हड़ताल होने से मालिकों पर ज्यादा दबाव पड़ता है क्योंकि उत्पादन एकदम ठप हो जाता है जबकि स्टैंड अप रणनीति से मालिकों को अपना उत्पादन बढ़ाने का मौका मिल जाता है और साथ ही जहां हड़ताल पहले शुरू होती है उन मजदूरों के लिए लड़ाई और लम्बी हो जाती है। इससे पता चलता है कि कहीं न कहीं यूनियन हड़ताल में मालिकों की सहायता कर रही है। इसके अलावा यूनियन ने अपनी 40 प्रतिशत वेतन वृद्धि की मांग को भी कम करके 36 प्रतिशत कर दिया है। 
    
यू ए डब्ल्यू का इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि वे मजदूरों के बजाय मालिकों का साथ देते हैं और बदले में उनसे रिश्वत लेते हैं। मजदूरों के आक्रोश को शांत करने के लिए ही वे हड़तालों का सहारा लेते हैं। और येन केन प्रकारेण हड़तालों को असफल करने का प्रयास करते हैं।
    
इस बार की हड़ताल कब तक चलती है क्या हासिल करती है यह इसी बात पर निर्भर करेगा कि मजदूर मालिकों के साथ-साथ यूनियन नेतृत्व को कितना मजबूर कर पाते हैं।
    
27 सितम्बर को जब जो बाइडेन हड़ताली मजदूरों के बीच आये तो अपने 87 सेकेण्ड के सम्बोधन में उन्होंने मजदूरों से कहा कि यू ए डब्ल्यू ने 2008 में उद्योग को बचाया था। मजदूरों ने बहुत कुर्बानी दी थी। मजदूर अपनी मांगों- वेतन बढ़़ोत्तरी व अन्य मांगों पर डटे रहें क्योंकि उन्हें इसका हक है। हमने कम्पनियों को बचाया था अब वक्त है कि कम्पनियां हमें बचायें। 
    
बाइडेन जब मजदूरों के साथ खुद को जोड़कर ‘हम’ सम्बोधन कर रहे थे तो वे दिखा रहे थे कि मालिक-मजदूर सम्बन्ध में वे मजदूरों के साथ खड़े हैं। जबकि हकीकत उल्टी है। ओबामा सरकार में आटो इण्डस्ट्री का पुनर्गठन हुआ था जिसके तहत मजदूरों की संख्या में कटौती, वेतन, पेंशन में कटौती हुई थी और मालिकों का मुनाफा बढ़ गया था। उस वक्त बाइडेन उप राष्ट्रपति थे। इसी तरह मंदी के वक्त कम्पनियों को बचाने के लिए भारी बेल आउट दिया गया था पर मजदूरों को कुछ नहीं दिया गया। 
    
बाइडेन की चापलूसी करते हुए यू ए डब्ल्यू के नेता फेन ने बाइडेन के आने को ऐतिहासिक करार दिया और बताया कि देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति हड़ताली मजदूरों के साथ खड़ा हुआ है। वे अमेरिकी हीरो और मजदूरों के मददगार हैं। 
    
बाइडेन किस कदर मजदूर विरोधी हैं इसका पता इसी से चलता है कि उनके जनरल मोटर्स, फोर्ड सभी कम्पनियों से अच्छे सम्बन्ध हैं और राष्ट्रपति चुनाव में इन कम्पनियों ने लाखों डालर बाइडेन को दिये थे। यू ए डब्ल्यू की नौकरशाही आज सरकार के तलवे चाट रही है। ऐसे में किसी जुझारू संघर्ष की संभावना केवल अमेरिकी मजदूरों पर टिकी है कि वे संघर्ष के लिए यूनियन नेतृत्व को कितना मजबूर कर पाते हैं। अमेरिकी मजदूर अतीत में भी वक्त-वक्त पर जुझारू संघर्ष करते रहे हैं वर्तमान में भी उनसे यही उम्मीद है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।