पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने देशी-विदेशी पूंजीपतियों की इच्छा के अनुरूप मजदूरों पर बड़ा हमला बोलते हुए फैक्टरी एक्ट, 1948 में बदलाव कर दिया है। इसके तहत अब राज्य में 12 घंटे कार्यदिवस को लागू करने की कई कानूनी अड़चनों को हटा दिया गया है। इस तरह मोदी सरकार द्वारा पारित चार नये घोर मजदूर विरोधी लेबर कोड्स, जो कि केंद्रीय स्तर पर अभी लागू भी नहीं हुये हैं, की रोशनी में श्रम कानूनों में बदलाव करने वाला पंजाब देश का एक और राज्य हो गया है। विभिन्न भाजपाई और कांग्रेसी राज्य सरकारें पहले ही श्रम कानूनों में कमोबेश इस तरह के बदलाव कर चुकी हैं। अर्थात क्या तो भाजपा और क्या कांग्रेस या फिर आम आदमी पार्टी; सभी पूंजीपतियों का आशीर्वाद हासिल करने के लिये एक-दूसरे से होड़ कर रही हैं।
भगवंत मान सरकार द्वारा श्रम विभाग के मार्फत 20 सितम्बर, 2023 को जारी नोटिफिकेशन के तहत किसी एक दिन में विश्राम सहित काम के घंटों (स्प्रेड ओवर टाइम) को 10 से बढ़ाकर 13 कर दिया गया है और एक तिमाही में कुल ओवरटाइम के घंटों को 75 से बढाकर 115 कर दिया गया है। हालांकि एक हफ्ते में काम के अधिकतम घंटों की संख्या (समेत ओवरटाइम) 60 ही रखी गयी है। गौरतलब है कि कोरोना काल के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा एक तिमाही में कुल ओवरटाइम के घंटों की संख्या को 50 से बढाकर 75 पहले ही किया जा चुका था।
यूं तो देश में आज मजदूरों की बहुसंख्या को आठ घंटे के काम का इतना कम वेतन दिया जाता है कि वे अपने परिवार की गुजर-बसर के लिये खुद ही दिन में 12 घंटे अथवा उससे भी अधिक काम करने को मजबूर हैं और आठ घंटे कार्यदिवस का कानूनी अधिकार व्यवहार में गंवाते जा रहे हैं। लेकिन, एक दिन में स्प्रेड ओवर टाइम, तिमाही ओवरटाइम और एक हफ्ते में काम के अधिकतम घंटों की कानूनी सीमा इस सब को पूंजीपतियों के लिये गैरकानूनी बना देती है, इसलिए वे चाहते हैं कि उक्त सीमाओं को ढीला कर दिया जाये और जो चल रहा है उसे ही कानून का रूप दे दिया जाये, ताकि कानूनन और कानून से परे जाकर मजदूरों का और अधिक निर्मम शोषण किया जा सके। और पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने पूंजीपतियों को यह सौगात प्रदान कर दी है।
दूसरे, पूंजीपति चाहते हैं कि इसी प्रक्रिया को और आगे बढ़ाकर मजदूरों से आठ घंटे के कानूनी अधिकार को सीधे-सीधे ही छीन लिया जाये, ताकि पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों को जब चाहें तब उनकी इच्छा के विरुद्ध ओवरटाइम के नाम पर जबरन काम पर रोकने और उसका कानूनन दोगुनी (डबल) दर के बजाय एकल (सिंगल) दर से भुगतान करने जैसे जो गैर कानूनी कृत्य किये जाते हैं, उन्हें वे भी न करने पड़ें और ये सारा कुछ जो गोरखधंधा चल रहा है उसे भी कानूनी जामा पहना दिया जाये। अर्थात 8 के बजाय 12 घंटे का कार्यदिवस घोषित कर दिया जाये। घोर मजदूर विरोधी चार लेबर कोड्स को देश स्तर पर लागू कर केंद्र की मोदी सरकार इसी ओर बढ़ना भी चाहती है। वैसे भी देश में पूंजीपतियों के लिये अमृत काल चल रहा है।
पंजाब में श्रम कानूनों में घोर मजदूर विरोधी बदलाव
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।