- बीते 4 वर्षों में अमेरिका में कुल अरबपतियों की संख्या 614 से बढ़कर 737 हो गई। इनकी कुल सम्पत्ति इस दौरान 88 प्रतिशत बढ़कर 294.7 अरब डालर से बढ़कर 552.9 अरब डालर हो गयी।
- अमेरिका के शीर्ष 10 अरबपतियों में 8 सूचना प्रौद्यागिकी उद्योग या इसकी शाखाओं से जुड़े हैं। 4 सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस (192.8 अरब डालर सम्पत्ति), एलन मस्क (188.5 अरब डालर), मार्क जुकरबर्ग (169 अरब डालर) व लैरी एलिसन (154.6 अरब डालर) हैं।
- बीते 4 वर्षों में एलन मस्क की सम्पत्ति 6 गुना, फेसबुक के मालिक जुकरबर्ग व ओरेकल के एलिसन की सम्पत्ति 3 गुना हो गई। अमेजन के जेफ बेजोस दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गये।
- शीर्ष 10 लोगों की सम्पत्ति के एक तिहाई से कुल अमेरिकी छात्र ऋण को चुकाया जा सकता है। इसके 7वें हिस्से से कक्षा 12 तक की पढ़ाई का सारा खर्च किया जा सकता है। इस राशि के 150वें हिस्से से वैश्विक स्तर पर भूखमरी खत्म करने का सालाना खर्च जुटाया जा सकता है। यह राशि अमेरिका की औसत आय से 17.8 करोड़ गुना अधिक है। और अमेरिकियों की औसत बचत से 70 करोड़ गुना अधिक है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अरबपतियों का रुख सर्वप्रथम अमेरिका की दो पार्टी व्यवस्था को बनाये रखना है। यानी फासीवादी ट्रम्प व जो बाइडेन दोनों का ही अरबपति समर्थन करते हैं।
- पर जो बाइडेन की तुलना में अरबपतियों का ट्रम्प को समर्थन कम है। क्योंकि अमेरिकी विदेश नीति पर ट्रम्प का मनमानापन व रूस-यूक्रेन युद्ध पर ट्रम्प का रुख उन्हें आशंकित करता है। पर अमेरिकी कुलीन तंत्र का एक हिस्सा ट्रम्प के साथ खड़ा है।
- 6 अप्रैल को ट्रम्प के लिए फण्ड जुटाने के कार्यक्रम की अमेरिकी हेज फण्ड के मालिक अरबपति जॉन पालसन मेजबानी करेंगे। रीयल स्टेट निवेशक राबर्ट बिगलो, शैल गैस व तेल क्षेत्र के अरबपति हैराल्ड हम भी इस कार्यक्रम के अन्य प्रमुख पूंजीपति रहेंगे। इस कार्यक्रम में 8.14 लाख डालर देकर ट्रम्प के साथ रात्रिभोज किया जा सकता है। वित्तीय सटोरिये (राबर्ट व रेबेख मर्सर, स्काट बेसेंट, जर्फी स्प्रेचर), जुआघर व मनोरंजन के क्षेत्र के पूंजीपति (स्टीव विन, फिल राफिन, लींडा मैकमोहन) इस कार्यक्रम में सहयोग करने वाले अन्य पूंजीपति हैं।
- जो बाइडेन व कमला हैरिस का वाल स्ट्रीट के अधिकतर बड़े पूंजीपति समर्थन कर रहे हैं। प्रमुख बैंक भी इनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ खड़े हैं। जाहिर है पैसा जुटाने में जो बाइडेन आगे रहेंगे, इसकी संभावना है।
- पर जो बाइडेन जहां गाजा पर इजरायली हमले, अमेरिका में बढ़ती गरीबी आदि मसले पर जनाक्रोश झेल सकते हैं वहीं ट्रम्प अप्रवासियों पर सख्ती, कालों से भेदभाव सरीखे फासीवादी एजेण्डों पर वोट हासिल कर सकते हैं। पूंजी के इन दो प्यादों पर दांव लग चुका है। देखना यह है कि अमेरिकी मतदाता किसे चुनते हैं। 5 नवम्बर 2024 को चुनाव होने हैं।
अमेरिकी चुनाव और अरबपति : कुछ आंकड़े
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को