एक लम्बे समय तक बेरोजगारी की भयावह समस्या से आंख मूंदने के बाद अंततः भारत की शासक वर्गीय पार्टियों ने इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने हालिया लोकसभा चुनावों में जारी अपने घोषणापत्र में इसे स्थान देते हुए इसके समाधान का अपना नुस्खा पेश किया। सत्ताधारी भाजपा चुनावों के दौरान इस पर चुप रही पर अब इसकी सरकार ने जो केन्द्रीय सरकार का बजट पेश किया है उसमें न केवल बेरोजगारी की समस्या को स्वीकार किया गया है बल्कि इसके समाधान के लिए कुछ प्रावधान भी किये गये हैं।
बजट पेश होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कांग्रेस के नुस्खों को चुरा लिया है हालांकि वह कांग्रेसी नुस्खों के मर्म को नहीं समझ पाई।
अब बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रस्तावित नुस्खों के पीछे कोई गूढ़ सिद्धान्त छिपा हुआ है, वह इससे पहले किसी को नहीं पता था। कांग्रेसियों ने भी कभी इसकी भनक नहीं दी। अब वे किसी मर्म की बात कर रहे हैं।
इस छिपे हुए मर्म से कांग्रेसियों का जो भी आशय हो, पर एक बात साफ है। कांग्रेसी और भाजपाई दोनों बेरोजगारी की समस्या के समाधान का जिम्मा निजी क्षेत्र पर डाल देना चाहते हैं। भाजपा सरकार तो खुलेआम कह रही है कि रोजगार देना निजी क्षेत्र का काम है। सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण में रोना रोया गया है कि भारी-भरकम मुनाफे के बावजूद निजी क्षेत्र रोजगार नहीं दे रहा है। इसके पहले सरकार के आर्थिक सलाहकार कह चुके हैं कि रोजगार देना सरकार का काम नहीं है। बल्कि उन्होंने तो और आगे की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि बेरोजगारी की समस्या से निपटना सरकार का काम नहीं है। यह अलग बात है कि इन चुनावों में आंशिक पराजय के बाद भाजपा सरकार को भी इस मामले में कुछ करने का दिखावा करना पड़ रहा है।
और जो करने का दिखावा किया जा रहा है उसका मतलब क्या है? उसका मतलब यह है कि सरकार पूंजीपतियों को आकस्मिक रोजगार देने के लिए सब्सिडी देगी। भाजपा सरकार यह सब्सिडी ऊपर की पांच सौ कंपनियों को देने की बात कर रही है तो कांग्रेसी छोटे-मझोले पूंजीपतियों को।
यह खासा रोचक है। सरकार पूंजीपतियों को पैसा देगी कि वे लोगों को कुछ समय के लिए काम पर रखें। यानी काम पर रखे गये लोग पूंजीपतियों के लिए काम करेंगे पर उन्हें तनख्वाह सरकार देगी (यह तनख्वाह अत्यन्त कम होगी)। लोगों को रोजगार देने के लिए (अत्यन्त कम पैसे वाला थोड़े दिनों का रोजगार) पूंजीपतियों का धेला भी खर्च नहीं होगा। यानी उन्हें मुफ्त में काम करने वाले लोग मिल जायेंगे।
अब ऐसे में कोई भी सवाल पूछ सकता है कि जब पैसा सरकार को ही खर्च करना है तो वह लोगों को खुद काम पर क्यों नहीं रखती? सरकार को ऐसा करने से कौन रोक रहा है। सरकारी खर्च का फायदा पूंजीपति क्यों उठायें? और उससे भी आगे, सरकार तमाम संविदा कर्मचारियों को स्थाई क्यों नहीं करती? क्यों वह भोजनमाताओं, आशा तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बेगार करवा रही है?
स्पष्ट है कि कांग्रेसी और भाजपाई दोनों की रोजगार पर घोषणाएं धोखाधड़ी के सिवा कुछ नहीं हैं। यदि उनमें कुछ भी सारतत्व है तो बस यही कि सरकारी पैसे को फिर पूंजीपतियों की जेब में डाला जा रहा है- बस दूसरे तरीके और दूसरे नाम से!
बेरोजगारी की समस्या का अद्भुत समाधान
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
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