देश के नागरिकों पर निगरानी तंत्र का फंदा और व्यापक हुआ

डिजिटल निजी डाटा संरक्षण कानून, 2023

डिजिटल निजी डाटा संरक्षण विधेयक, 2023 के संसद के दोनों सदनों- लोक सभा और राज्य सभा- से पारित होने के साथ ही भारतीय राज्य द्वारा ‘‘राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और अपराधों की रोकथाम ...’’ के नाम पर एवं ‘‘राज्य द्वारा परमिट, लाइसेंस, लाभ एवं सेवा प्रदान करने ....’’ के नाम पर देश के हरेक नागरिक की निजी सूचनाओं को उनकी सहमति के बिना एकत्र करने का कानूनी अधिकार हासिल कर लिया गया है। इस तरह केंद्र की सत्ता पर काबिज हिंदू फासीवादी सरकार ने देश की जनता पर अपने निगरानी तंत्र के फंदे को कहीं अधिक व्यापक बना लिया है। 
    
लेकिन वहीं दूसरी ओर इसी कानून के तहत निजी सूचनाओं की गोपनीयता के नाम पर सूचना के अधिकार कानून के पर कतर दिये गये हैं।
    
सूचना के अधिकार कानून में एक धारा है- 8(प)(र), जो कि सरकारों के लिये, भ्रष्ट नेता-मंत्रियों और अफसरों के लिये भारी परेशानी का सबब बनी हुई थी, क्योंकि इसके तहत विभिन्न आर टी आई एक्टिविस्ट और सामाजिक संस्थायें निजी सूचनायें एकत्र कर विभिन्न सरकारी योजनाओं में जारी गड़बड़ियों, नेता-मंत्रियों और अफसरों के भ्रष्टाचार, सरकारी नौकरियों में भाई-भतीजावाद, वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों, बैंकों से भारी-भरकम लोन लेकर उसे हजम कर जाने वालों के नाम... इत्यादि को उजागर कर देते थे। 
    
लेकिन डिजिटल निजी डाटा संरक्षण कानून, 2023 के तहत अब सूचना के अधिकार कानून की उक्त धारा में बदलाव कर दिये हैं, जिसके तहत अब सूचना अधिकारी किसी व्यक्ति के संबंध में निजी सूचनायें उपलब्ध कराने के लिये बाध्य नहीं होगा। यदि कोई आर टी आई एक्टिविस्ट या सामाजिक संस्था यह दावा करती है कि उसे जनहित में ये सूचनायें चाहिये तो उन्हें इससे संबंधित एक फार्म भरना होगा और तब संबंधित व्यक्ति, जिसके बारे में जानकारी हासिल की जा रही है, की सहमति के बाद ही उन्हें सूचनायें उपलब्ध कराई जायेंगी। इसमें भी यदि हासिल सूचनाओं का कोई दुरुपयोग किया गया तो इस पर 500 करोड़ रु. तक के भारी-भरकम जुर्माने का प्रावधान रखा गया है। साथ ही क्या दुरुपयोग माना जायेगा और क्या नहीं इसे तय करने का अधिकार जिस डाटा संरक्षण बोर्ड को होगा, वह भी पूरी तरह सरकारी होगा। 
    
मौजूदा दौर में जबकि केंद्र में हिंदू फासीवादी सरकार विराजमान है तब इसका व्यवहारिक परिणाम यही निकलेगा कि सरकार के अपने अथवा पसंदीदा व्यक्ति और संस्थायें तो अपने राजनीतिक विरोधियों के बारे में सूचनायें हासिल कर उनका दुरुपयोग करने के लिये स्वतंत्र होंगे जबकि सरकार के विरोधी अथवा उसकी आंख में खटकने वाले व्यक्ति और संस्थायें यदि दस बाधाओं के बावजूद सरकार के लिये दिक्कततलब सूचनायें हासिल करने में कामयाब हो गये और उन सूचनाओं के आधार पर उनके द्वारा सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई तो उक्त डाटा संरक्षण बोर्ड सूचनाओं के दुरुपयोग के आरोप में उलटे इन्हीं को अपराधी करार देगा। 
    
इस तरह यह डिजिटल निजी डाटा संरक्षण कानून, 2023 भारतीय राज्य को असीमित अधिकार प्रदान करते हुये नागरिकों की निजता के हनन को कानूनी मंजूरी प्रदान करता है, जो कि निजता के अधिकार के संबंध में 2017 में आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का खुला उल्लंघन है। साथ ही यह कानून निजी सूचनाओं को हासिल करने की गोपनीयता के नाम पर असल में जन अधिकारों को छीनता है और मोदी सरकार के फासीवादी मंसूबों को आगे बढ़ाता है।

आलेख

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