गुजरात माडल - 1
आजकल गुजरात माडल की कोई चर्चा नहीं होती। संघी प्रधानमंत्री और उसके प्रचार तंत्र के तोते भी इसकी कोई चर्चा नहीं करते। इसका मतलब यह नहीं है कि गुजरात माडल अब गायब हो गया है। इसके ठीक उलट अब गुजरात माडल पूरे देश में इस तरह फैल गया है कि कोई इसे चर्चा के लायक नहीं समझता। यह हवा-पानी की तरह हो गया है।
यदि गुजरात माडल देश में इस तरह फैला न होता तो भला लोग कैसे खुद को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करवा लेते? यह कैसे होता कि पढ़े-लिखे लोग भी यह मान लेते कि कोई जांच अधिकारी उनसे इंटरनेट के माध्यम से जांच-पांच पड़ताल कर रहा है और उन्हें घर में अपने फोन या कम्प्यूटर के पास बने रहना है? कैसे वे खुद को बचाने के लिए एक अनजान व्यक्ति को करोड़ों रुपये दे देते?
‘डिजिटल अरेस्ट’ या आनलाइन वसूली के इस धंधे की खासियत यह नहीं है कि कुछ ठग-बदमाश इस तरह की ठगी कर रहे हैं। इस तरह के ठग-बदमाश हमेशा से रहे हैं। खासियत यह है कि पढ़े-लिखे समझदार लोग भी इस तरह के ठगों के शिकार हो रहे हैं। यह तभी संभव है जब लोग यह विश्वास करें कि ऐसा हो सकता है।
आखिर लोग यह विश्वास कैसे करने लगे हैं कि किसी जांच एजेन्सी के अधिकारी इस तरह आनलाइन जांच करेंगे और किसी संभावित अपराध में फंसने से बचाने के लिए लाखों-करोड़ों की वसूली करेंगे? यह विश्वास पूरे समाज में एक खास तरह के माहौल की मांग करता है। इस माहौल में लोग यह मानने लगते हैं कि कुछ भी संभव है। कि कोई सरकारी जांच अधिकारी किसी को भी फंसा सकता है। कि इस तरह से फंसाये जाने के बाद व्यक्ति कहीं से भी राहत नहीं पा सकता- अदालत से भी नहीं। ऐसे में सबसे अच्छा रास्ता यही है कि वसूली का भुगतान कर बच लो।
लेकिन इस ठगी को गुजरात माडल क्यों कहा जाये? इसलिए कि इस माडल का आविष्कार गुजरात में हुआ। उसके निर्माताओं ने ही उसे सारे देश में फैलाया और आज भी सारे देश में गुजरात ही इसमें अव्वल है।
अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई कि गुजरात में एक ठग पांच साल से ज्यादा समय से एक फर्जी अदालत चला रहा था और वह भी शापिंग माल में। वहीं से यह भी खबर आई कि वहां फर्जी टोल नाका चल रहा था। अपने को पीएमओ का अधिकारी बताने वाले न जाने कितने फर्जी लोग देश भर में पकड़े जा रहे हैं जिनमें ज्यादातर गुजराती हैं। देश में कहीं भी ठगी की कोई बड़ी घटना की खबर आने पर पहली प्रतिक्रिया यही होती है कि इसके तार गुजरात से जुड़े होंगे।
स्वयं गुजरात माडल में यह गुजरात माडल 2002 के बाद पैदा हुआ। उसके पहले सारे देश की तरह गुजरात में भी अपराध पर्याप्त फल-फूल रहा था। पर अब उसमें गुणात्मक छलांग लग गई। ठगी-बदमाशी के लिए खुला खेल फरुर्खाबादी हो गया। प्रदेश शासन के सर्वोच्च स्तर से यह घोषित हो गया कि प्रदेश में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। अब हर कोई जितना चाहे भ्रष्टाचार कर सकता था। चूंकि प्रदेश में भ्रष्टाचार खत्म हो गया था इसलिए न तो कोई काम भ्रष्टाचार था और न ही किसी को इसके लिए पकड़ा जाना था।
2014 के बाद यही गुजरात माडल पूरे देश में लागू हो गया। पूरे देश में भ्रष्टाचार खत्म घोषित हो गया। सारे भ्रष्टाचारी भी खत्म हो गये, सिवाय विपक्षी नेताओं के। अब हम ‘अमृतकाल’ में यानी ‘डिजिटल अरेस्ट’ के युग में आ पहुंचे।
गुजरात माडल - 2
अब कनाडा सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह आरोप लगा दिया है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की हत्या में भारत के गृहमंत्री अमित शाह का हाथ है। कनाडा की संसदीय समिति के सामने कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मारिसन ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने ही वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार को अमित शाह का नाम बताया था। इस तरह अभी तक जो बात ईशारों-ईशारों में या ‘सूत्रों’ के हवाले से कही जा रही थी अब वह आधिकारिक तौर पर कह दी गयी है।
इस खबर का ही एक हिस्सा यह है कि इन हत्याओं को एक अपराधिक गिरोह (बिश्नोई गिरोह) के माध्यम से अंजाम दिया गया।
यह गौरतलब है कि भारत सरकार कनाडा सरकार के इन आरोपों को खारिज करती रही है पर अमरीकी सरकार के द्वारा इसी तरह के आरोपों पर न केवल चुप्पी साधती रही है बल्कि अमरीकी सरकार के साथ ‘जांच में सहयोग’ भी करती रही है। यह तब जब इन मामलों में अमरीकी और कनाडाई सरकारें बिलकुल एक जमीन पर हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
यहां इस मसले के अन्य पहलुओं को छोड़कर केवल एक पहलू पर ही ध्यान दिया जाये। यदि कनाडाई सरकार का दावा सच है तो इसका मतलब यह होगा कि गुजरात माडल न केवल देश बल्कि दुनिया के पैमाने तक विस्तारित हो गया है। जो 2002 से 2014 तक गुजरात में हुआ वह 2014 के बाद पूरे देश के पैमाने पर और फिर पूरी दुनिया के पैमाने पर होने लगा।
सोहराबुद्दीन के बारे में कहा जाता है कि वह राजस्थान की संगमरमर की खानों की खदानों में वसूली का धंधा करता था। जब गुजरात के पूर्व गृहमंत्री हरेन पांड्या की मोदी से ठनक गयी तो उन्हें रास्ते से हटाने के लिए सोहराबुद्दीन और उसके सहयोगी तुलसी प्रजापति का इस्तेमाल किया गया। बाद में जब यह मामला उलझने लगा तो ये दोनों भी रास्ते से हटा दिये गये। अंत में यह सब 2015 में जज लोया की मौत तक गया। दस-बारह साल का यह घटनाक्रम आज भी किस्से-कहानियों के रूप में ही मौजूद है क्योंकि देश की अदालतें सही-गलत का फैसला करने में अक्षम साबित हुईं। शायद कोई भी न्यायाधीश लोया की नियति को नहीं प्राप्त होना चाहता था।
महत्वपूर्ण बात है कि इन किस्से-कहानियों पर न केवल मोदी-शाह के विरोधी बल्कि उसके समर्थक भी विश्वास करते हैं। आज ये समर्थक खुल कर तारीफ कर रहे हैं कि भारत इतना ताकतवर हो गया है कि कनाडा-अमेरिका में भी घुसकर मार रहा है। यह सरकार सारी दुनिया में भारत विरोधियों को ठिकाने लगा रही है। ये समर्थक बिश्नोई गिरोह की शान में भी कसीदे गढ़ रहे हैं। यानी मोदी-शाह भले ही औपचारिक तौर पर कनाडा सरकार के आरोपों से इंकार करें पर उनके समर्थक न केवल इन्हें स्वीकार करते हैं बल्कि इस पर शान दिखाते हैं। यही गुजरात में भी हुआ था। मोदी-शाह वहां अदालतों में अपने गुनाह से इंकार करते थे पर उनके समर्थक उन पर इतराते थे। राजनीति के लिए महत्व औपचारिक इंकार का नहीं बल्कि समर्थकों द्वारा इतराने का था। आज देश की राजनीति के लिए भी महत्व इसी इतराहट का है हालांकि यह सब देश के दूरगामी हितों के मद्देनजर अत्यन्त खतरनाक है।
गुजरात माडल - 3
कभी महात्मा गांधी के जिंदा रहते ही एडगर स्नो ने कहा था कि गांधी की सफलता का राज इसमें है कि उन्होंने एक ही साथ पूंजीपति वर्ग के लिए गाडफादर की तथा आम जनता के लिए संत की भूमिका निभाई। यानी वे पूंजीपति वर्ग के लिए गाडफादर (अभिभावक) थे तो आम जन के लिए संत।
एडगर स्नो एक अमरीकी पत्रकार थे। उनका कार्यक्षेत्र एशिया था। चीनी क्रांति के शुरूआती दिनों पर लिखी उनकी किताब ‘रेड स्टार ओवर चाइना’ दुनिया भर में मशहूर हुयी। बाकी दुनिया को माओ, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी तथा चीनी क्रांति के बारे में भी इसी किताब से पहली बार विस्तार से जानकारी मिली। चीनी क्रांति को समझने के लिए आज भी यह किताब एक जरूरी किताब है।
एडगर स्नो ने महात्मा गांधी तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को भी नजदीक से देखा था। इसे समझने का प्रयास किया था। महात्मा गांधी के बारे में उनकी जो समझदारी बनी वह उपरोक्त कथन में सघन रूप में अभिव्यक्त है। आज भी वह महात्मा गांधी के राजनीतिक व्यक्तित्व का शायद सबसे अच्छा मूल्यांकन है।
महात्मा गांधी एक गुजराती बनिया परिवार की पृष्ठभूमि के थे और आजादी के बाकी नेताओं से इस मामले में भिन्न थे कि उन्होंने देश के पूंजीपतियों से नजदीकी व्यक्तिगत संबंध बनाये। उनके नेतृत्व काल में देश के पूंजीपतियों के न केवल कांग्रेस पार्टी से संस्थागत संबंध थे बल्कि स्वयं गांधी से व्यक्तिगत संबंध भी थे। घनश्याम दास बिडला, पुरुषोत्तम दास ठाकुरदास, जमनालाल बजाज, इत्यादि इसमें प्रमुख थे। इन पूंजीपतियों के गांधी से व्यक्तिगत पत्राचार के गठ्ठर के गठ्ठर मौजूद हैं। यह मजेदार है कि दुकानों पर अक्सर टंगा रहने वाला ग्राहक और दुकानदार के संबंध का उपदेश गांधी का ही लिखा हुआ है।
महात्मा गांधी की हत्या के करीब तीन साल बाद पैदा होने वाला व्यक्ति, जो स्वयं को फकीर घोषित करता है वह भी गुजराती बनिया पृष्ठभूमि का ही है। यदि गांधी देश की आजादी के आंदोलन के नेता थे तो वह अब उस आंदोलन का नेता है जो हिन्दुओं की आजादी की बात करता है। गांधी अपने ऐतिहासिक कारनामों की वजह से इतिहास में दर्ज हो गये। यह व्यक्ति स्वयं को इतिहास में दर्ज कराने के लिए हजारों जतन कर रहा है।
यहां भी एक गुजरात माडल है जो स्वयं को दोहरा रहा है, पर हमेशा की तरह प्रहसन के रूप में। गांधी पूंजीपतियों से नजदीकी संबंध रखते थे पर गाडफादर के रूप में। मोदी भी पूंजीपतियों से संबंध रखते हैं पर उनके चाकर के रूप में। गांधी ने आधुनिक वेश-भूषा त्यागकर एक गरीब किसान का भेष धारण कर लिया और गरीब किसानों ने उन्हें संत या फकीर मान लिया। मोदी ने साधारण कपड़े त्यागकर लखटकिया सूट धारण किया और स्वयं को फकीर घोषित कर दिया। पूंजीपति वर्ग के लिए गाडफादर और आम जन के लिए संत की भूमिका निभाते हुए गांधी ने देश की आजादी के आंदोलन का जो नेतृत्व किया वह एक प्रगतिशील कार्य था। पूंजीपति वर्ग के चाकर की भूमिका निभाते हुए मोदी भले खुद को फकीर बताएं पर वे देश को जिस हिन्दू राष्ट्र की ओर ले जा रहे हैं वह प्रतिगामी है और देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। अभी भी वह चुका ही रहा है।
गुजरात माडल
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को